बड़े बदलाव किसी तारीख के मोहताज नहीं होते, लेकिन कुछ तारीखें जरूर ऐसी होती हैं जिन्हें कभी इसीलिए नहीं भुलाया जा सकता कि वहां से बदलाव का कारवां शुरू हुआ था। 24 जुलाई 1991 एक ऐसी ही तारीख है जिसे अगर हम थोड़ा निरपेक्ष होकर देखें तो लगेगा कि उस दिन कुछ भी नया नहीं हुआ। वह महज वित्त वर्ष के बाकी बचे आठ महीनों का एक बजट था जिसे उस दिन वित्त मंत्री मनमोहन सिंह ने संसद में पेश किया।

नरसिंह राव और मनमोहन सिंह ने उदारीकरण की नीतियों को लागू किया तो कुछ ही साल में भारत का आर्थिक परिदृश्य पूरी तरह बदल गया लेकिन उदारीकरण ने देश की बहुत सारी उन समस्याओं को हल नहीं किया जिसकी उससे उम्मीद थी।
लेकिन यह दिन अर्थव्यवस्था के इतिहास की एक बड़ी घटना इसलिए बन गया कि आज जिसे हम उदारीकरण के नाम से जानते हैं उसका पहला प्रस्थान बिंदु वही है।
राव के पास थी कमान
यह सब एक ऐसी सरकार के समय शुरू हुआ जिससे बहुत ज्यादा उम्मीदें नहीं बांधी गईं थीं। यह महज एक संयोग था कि चुनाव के बाद सत्ता कांग्रेस के बुजुर्ग नेता नरसिंह राव के हाथ आ गई। एक ऐसे नेता के हाथ जो आपस में उलझे कांग्रेस के किसी भी गुट के लिए कोई खतरा नहीं थे और जिन्हें आम चुनाव के दौरान पार्टी ने टिकट देने लायक भी नहीं समझा था।