खलक ख़ुदा का, मुलुक बाश्शा का

जय प्रकाश नारायण।
70 के दशक में सत्ताई तानाशाही के ख़िलाफ़ संघर्ष का बिगुल फूंकने सड़क पर उतरे जय प्रकाश नारायण की आज जयंती है। लेकिन ऐसा लगता है कि जेपी का आंदोलन सिर्फ़ सत्ता परिवर्तन का हथियार ही साबित होकर रह गया। जिस सामाजिक, राजनीतिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और शैक्षणिक क्रांति का जेपी ने आह्वान किया था वैसा आज भारत में कहीं नज़र नहीं आता।
हुकुम शहर कोतवाल का...
हर ख़ासो-आम को आगाह किया जाता है
कि ख़बरदार रहें और अपने-अपने किवाड़ों को अन्दर से कुंडी चढ़ाकर बन्द कर लें
गिरा लें खिड़कियों के परदे
और बच्चों को बाहर सड़क पर न भेजें
क्योंकि एक बहत्तर बरस का बूढ़ा आदमी अपनी काँपती कमजोर आवाज़ में सड़कों पर सच बोलता हुआ निकल पड़ा है!
शहर का हर बशर वाक़िफ है
कि पच्चीस साल से मुजिर है यह
कि हालात को हालात की तरह बयान किया जाए
कि चोर को चोर और हत्यारे को हत्यारा कहा जाए
कि मार खाते भले आदमी को
और असमत लुटती औरत को
और भूख से पेट दबाये ढाँचे को
और जीप के नीचे कुचलते बच्चे को
बचाने की बेअदबी की जाय!