कन्हैया कुमार के ख़िलाफ़ राजद्रोह का मुक़दमा चलाने की अनुमति देकर दिल्ली सरकार ने बिहार में बीजेपी और नीतीश कुमार को थोड़े समय के लिए राहत की साँस लेने का मौक़ा दे दिया है। कन्हैया इन दिनों बिहार में ‘जन-गण-मण यात्रा’ के ज़रिए राजनीतिक खलबली तो मचा ही रहे थे, बिहार में लगभग मृत पड़ी कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ़ इंडिया यानी सीपीआई को संजीवनी देने की कोशिश कर रहे थे। कन्हैया पर देशद्रोह का यह मामला 9 फ़रवरी, 2016 को जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय यानी जेएनयू में एक सभा के दौरान तथाकथित देशद्रोह नारे लगाने को लेकर चलाया जायेगा। दिल्ली सरकार ने क़रीब 13 महीनों तक चुप रहने के बाद मुक़दमा चलाने की अनुमति दी है। हालाँकि कन्हैया पहले ही कह चुके हैं कि जिस सभा को लेकर यह मुक़दमा दर्ज किया गया है उनमें वह मौजूद नहीं थे। बहरहाल इस बीच कन्हैया 2020 में लोकसभा का चुनाव लड़ कर हार चुके हैं। नागरिकता संशोधन क़ानून यानी सीएए और राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर यानी एनआरसी को लेकर बिहार में भी खलबली शुरू हुई तो कन्हैया ने ‘जन-गण-मण यात्रा’ की शुरुआत की। उनकी सभाओं में ज़बरदस्त भीड़ बिहार की बीजेपी और जेडीयू सरकार के लिए सरदर्द बन रही थी।

क्या एनआरसी और एनपीआर के ख़िलाफ़ प्रतीकात्मक विरोध से नीतीश अपनी ज़मीन बचा पाएँगे? यह एक बड़ा सवाल है। यह समस्या राम विलास पासवान और उनके बेटे चिराग पासवान के खेमे में भी है। इसलिए पिता-पुत्र एक ही प्रेस कॉन्फ़्रेंस में माँग रखते हैं कि दिल्ली में उत्तेजक भाषण देने वाले बीजेपी नेताओं के ख़िलाफ़ कार्रवाई होनी चाहिए। नीतीश और पासवान दोनों ही अल्पसंख्यकों के बीच घटती लोकप्रियता से परेशान दिखायी दे रहे हैं।
कन्हैया के साथ ही प्रशांत किशोर की 'बात बिहार की' यात्रा और तेजस्वी यादव की ‘बेरोज़गार यात्रा’ ने नवंबर में होने वाले बिहार विधानसभा चुनाव की रणभेरी बजा दी है।
शैलेश कुमार न्यूज़ नेशन के सीईओ एवं प्रधान संपादक रह चुके हैं। उससे पहले उन्होंने देश के पहले चौबीस घंटा न्यूज़ चैनल - ज़ी न्यूज़ - के लॉन्च में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। टीवी टुडे में एग्ज़िक्युटिव प्रड्यूसर के तौर पर उन्होंने आजतक