सूरदास के नाम अकबर का यह संदेश इस अर्थ में बहुत महत्वपूर्ण है कि मुग़ल बादशाह ने उनकी शिकायत पर तत्परता से ग़ौर किया और कार्रवाई की। यहाँ तक कि उन्हें नया हाकिम तय करने का अधिकार भी दिया।
'परमात्मा को पहचानने वाले ब्राह्मणों, योगियों, संन्यासियों, महापुरुषों के शुभ चिंतन और तपस्या से ही बादशाहों का कल्याण होता है। साधारण-से-साधारण बादशाह भी अपनी मति के विपरीत भगवद-भक्तों की आज्ञा का पालन करते हैं। तब जो बादशाह धर्म, नीति और न्यायपरायण है, वह तो भक्तों की इच्छा के विपरीत चल ही नहीं सकता। मैंने आपकी विद्या और सद्बुद्धि की प्रशंसा निष्कपट आदमियों से सुनी है। आपको मैंने अपना मित्र माना है। कितने ही विद्वानों और सत्यनिष्ठ ब्राह्मणों की परीक्षा हुई है और आप उसमें खरे उतरे हैं। आपको परम धर्मज्ञ जानकर हम आपको अपना परम मित्र समझते हैं। आपके पत्र से पता चला कि काशी के करोड़ी (जिस सूबे का कर ढाई लाख रुपये होता था, वहाँ का हाकिम करोड़ी कहलाता था) का बर्ताव अच्छा नहीं है'।"
‘बादशाह को यह सुनकर बहुत बुरा लगा। बादशाह ने उसकी बर्खास्तगी का फ़रमान लिख दिया है। अब नये करोड़ी की नियुक्ति का भार सम्राट ने आपके ऊपर छोड़ा है। इस तुच्छ अबुल फ़ज़ल को हुक्म हुआ है कि आपको इसकी सूचना दे। आशा है आप ऐसा करोड़ी चुनेंगे कि जो ग़रीब और दुखी प्रजा का समस्त भार सम्हाल सके। आपकी सिफ़ारिश आने पर बादशाह उसकी नियुक्ति करेंगे। बादशाह आप में ख़ुदा की रहमत देखते हैं इसलिए आपको यह तकलीफ़ दी है। काशी में ऐसा हाकिम होना चाहिए, जो आपकी सलाह के मुताबिक़ काम करे। कोई खत्री जिसे आप क़ाबिल समझें, ऐसा व्यक्ति जो ईश्वर को पहचान कर न्याय और प्रेम से प्रजा का लालन-पालन करे, उसका नाम आपकी तरफ़ से आने पर उसे करोड़ी बना दिया जाएगा। परमेश्वर आपको सत्कर्म करने की श्रद्धा दे और आपको सत्कर्म के ऊपर स्थिर रखे।’
विशेष सलामआपका दासअबुल फ़ज़ल