पूर्व केंद्रीय मंत्री आरसीपी सिंह ने अपनी एएसए पार्टी का प्रशांत किशोर की पार्टी जन सुराज में विलय कर दिया है, जिसका लक्ष्य बिहार के आगामी चुनावों में नीतीश कुमार को चुनौती देना है। सवाल ये है कि ये लोग कितना कामयाब हो पाएंगेः
प्रशांत किशोर और आरसीपी सिंह
बिहार की राजनीति में एक बड़ा उलटफेर देखने को मिला जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और जद (यू) के पूर्व नेता रामचंद्र प्रसाद सिंह (आरसीपी सिंह) ने अपनी पार्टी 'आप सबकी आवाज' (एएसए) का विलय प्रशांत किशोर की जन सुराज पार्टी में कर लिया। यह कदम बिहार विधानसभा चुनाव से पहले जन सुराज पार्टी के लिए एक महत्वपूर्ण नैतिक बढ़ावा माना जा रहा है।
पटना में आयोजित एक संवाददाता सम्मेलन में प्रशांत किशोर ने आरसीपी सिंह का स्वागत करते हुए उन्हें अपना "बड़ा भाई" बताया और कहा कि वह बिहार के समाज और राजनीति को समझने वाले सबसे बेहतरीन व्यक्तियों में से एक हैं। किशोर ने कहा, "आरसीपी सिंह का हमारी पार्टी में शामिल होना हमारे लिए गर्व की बात है। उनका अनुभव और समझ बिहार के लिए नए बदलाव की दिशा में महत्वपूर्ण योगदान देगी।"
प्रशांत किशोर ने इस मौके पर बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की सरकार पर तीखा हमला बोला। उन्होंने नीतीश के शासन को "लंबे समय तक भ्रष्टाचार और अराजकता का पर्याय" करार दिया और कहा कि जन सुराज पार्टी बिहार में एक नया विकल्प पेश करने के लिए तैयार है। किशोर ने दावा किया कि उनकी पार्टी जातिगत पहचान से ऊपर उठकर शिक्षा, स्वास्थ्य और रोजगार जैसे मुद्दों पर ध्यान केंद्रित करेगी।
आरसीपी सिंह का नीतीश कुमार से लंबे समय से तनाव रहा है। जद (यू) के राष्ट्रीय अध्यक्ष रह चुके सिंह ने 2022 में पार्टी छोड़ दी थी और अपनी अलग पार्टी 'आप सबकी आवाज' बनाई थी। नीतीश के करीबी सहयोगी रहे सिंह का जद (यू) से अलगाव तब शुरू हुआ जब उन्हें केंद्रीय मंत्रिमंडल से हटाया गया और पार्टी में उनकी भूमिका सीमित कर दी गई।
आरसीपी सिंह के जन सुराज में शामिल होने पर जद (यू) ने तीखी प्रतिक्रिया दी। जद (यू) के प्रवक्ता राजीव रंजन प्रसाद ने कहा, "आरसीपी सिंह राजनीति में शून्य हैं, और जन सुराज या प्रशांत किशोर भी शून्य हैं। शून्य और शून्य का जोड़ भी शून्य ही होता है।"
प्रशांत किशोर, जो पहले एक मशहूर चुनावी रणनीतिकार रहे हैं, ने पिछले साल अक्टूबर में जन सुराज को एक राजनीतिक दल के रूप में लॉन्च किया था। उन्होंने पहले ही घोषणा कर दी है कि वह खुद पार्टी का नेतृत्व नहीं करेंगे, बल्कि एक दलित नेता को इसका प्रमुख बनाया जाएगा। किशोर का दावा है कि उनकी पार्टी बिहार की राजनीति को बदलने के लिए तैयार है और वह पारंपरिक जाति-आधारित राजनीति से हटकर विकास पर ध्यान देगी। लेकिन अब तक जिस भी चुनाव या उपचुनाव में उनकी पार्टी ने हिस्सा लिया, नाकाम रही है।
विश्लेषकों का मानना है कि आरसीपी सिंह का जन सुराज में शामिल होना बिहार विधानसभा चुनाव में एक नया समीकरण बना सकता है। सिंह के पास कुर्मी समुदाय में प्रभाव है, जो बिहार की राजनीति में एक महत्वपूर्ण वोट बैंक है। हालांकि, नीतीश कुमार अभी भी बिहार में कुर्मियों के एकमात्र नेता के रूप में स्थापित हैं। उनकी जगह वहां कोई ले नहीं सका है।
यह घटनाक्रम बिहार की राजनीति में नई हलचल पैदा करने वाला है, और सभी की निगाहें अब जन सुराज की अगली रणनीति और बिहार विधानसभा चुनाव पर टिकी हैं।