फडणवीस की ऐसी घोषणा का समय बहुत महत्वपूर्ण है। महाराष्ट्र में चंद महीनों बाद राज्य विधानसभा चुनाव हैं। फडणवीस राज्य में मुख्यमंत्री रहे हैं। उन्होंने एक तरह से विधानसभा चुनाव को लेकर अभी से आलाकमान पर तमाम मुद्दों को लेकर दबाव बनाना शुरू कर दिया है। फडणवीस को अमित शाह का खास माना जाता है।
चुनाव नतीजे अभी मंगलवार को ही आए हैं और महाराष्ट्र में भाजपा ने बुधवार से ही समीक्षा शुरू कर दी। समीक्षा बैठक में प्रदेश भाजपा प्रमुख चंद्रशेखर बावनकुले सहित शीर्ष भाजपा नेताओं ने भाग लिया। प्राथमिक एजेंडा पार्टी के प्रदर्शन का विश्लेषण करना और भविष्य की रणनीतियों पर चर्चा करना था। भाजपा और उसके सहयोगियों ने महाराष्ट्र की 48 लोकसभा सीटों में से 17 सीटें हासिल कीं। लेकिन 2019 के नतीजों की तुलना में इस बार सीटों की संख्या में जबरदस्त गिरावट है।
पिछले लोकसभा चुनाव में बीजेपी ने महाराष्ट्र में 23 सीटें जीती थीं। लेकिन इस बार, भाजपा पर विपक्षी महा विकास अघाड़ी (एमवीए) भारी पड़ा। एमवीए में कांग्रेस, शिवसेना (यूबीटी), और एनसीपी (शरदचंद्र पवार) शामिल हैं। एमवीए ने सामूहिक रूप से 30 सीटें जीतीं, जो गठबंधन की कामयाबी का बहुत बड़ा सबूत है। कांग्रेस को तो जबरदस्त फायदा हुआ। 2019 में कांग्रेस जहां सिर्फ एक सीट जीती थी, इस बार 13 सीटों पर जीत हासिल की है। शिवसेना (यूबीटी) ने नौ सीटें हासिल कीं, जबकि एनसीपी (शरदचंद्र पवार) ने आठ सीटें हासिल कीं।
योगी को लेकर चर्चा क्यों
यूपी में भी भाजपा को पिछले चुनाव के मुकाबले जबरदस्त नाकामी मिली है। पिछले चुनाव में भाजपा ने यूपी में अकेले 62 सीटें जीती थीं। इस बार अकेले उसकी 33 सीटें आई हैं। यानी यूपी में भाजपा को इस बार 29 सीटों का नुकसान हुआ है। भाजपा के सहयोगी दल फिसड्डी साबित हुए, उन्हें कोई सीट नहीं मिली। सपा ने 37 सीटें जीती हैं और उसे 32 सीटों का फायदा हुआ है। कांग्रेस ने 6 सीटें जीती हैं, उसे पांच सीटों का फायदा हुआ है।
लोकसभा चुनाव के दौरान यह चर्चा शुरू हो गई थी कि लोकसभा चुनाव के बाद योगी को सीएम पद से हटा दिया जाएगा, क्योंकि आलाकमान पहले ही यूपी को लेकर सशंकित था। फिर जेल से बाहर आम आदमी पार्टी प्रमुख केजरीवाल ने भी इस अफवाह को आगे बढ़ाया। केजरीवाल ने कहा कि लोकसभा चुनाव के बाद योगी को हटा दिया जाएगा। लेकिन अब पार्टी की करारी हार के बाद इन आशंकाओं को और हवा मिल रही है।
भाजपा सूत्रों का कहना था कि यूपी से तमाम विधायक भाजपा आलाकमान के पास शिकायतें पहुंचा रहे थे कि योगी उनकी सुनते नहीं हैं। विधायक की कोई भी सिफारिश नहीं मानी जाती है। यूपी में योगी सरकार के टॉप रैंक अफसरों की नियुक्ति में पीएमओ का दखल 2017 से ही चला आ रहा है। चीफ सेक्रेटरी तक पीएमओ से सलाह करते हैं। ऐसे में योगी खुद भी परेशान रहते हैं लेकिन उन्होंने हिम्मत नहीं हारी। लेकिन लोकसभा चुनाव में करारी हार के बाद सवाल तो उठ ही रहे हैं। फडणवीस ने इस्तीफे की पेशकश कर एक तरह से योगी आदित्यनाथ पर भी दबाव बना दिया है। समझा जाता है कि केंद्र में नई सरकार का गठन होने के बाद यूपी से बड़ी खबरें आ सकती हैं।