राजस्थान सरकार के एंटी-कन्वर्जन बिल पर विवाद तेज हो गया है। विपक्ष और संगठनों का कहना है कि यह धार्मिक स्वतंत्रता का उल्लंघन करता है। जानें पूरा विवाद।
राजस्थान के एंटी-कन्वर्जन बिल के प्रावधानों पर विवाद हो गया है। राजस्थान विधानसभा ने 'राजस्थान अवैध धर्मांतरण निषेध विधेयक, 2025' को ध्वनिमत से पारित कर दिया है। इस बिल के तहत जबरन या धोखे से धर्मांतरण को अपराध माना गया है, जिसमें अंतर-धार्मिक विवाहों को विशेष रूप से निशाना बनाया गया है। यदि विवाह का मुख्य उद्देश्य धर्मांतरण साबित हो जाता है तो अदालत इसे रद्द कर सकती है। साथ ही, यह साबित करने की ज़िम्मेदारी आरोपी पर होगा कि धर्मांतरण स्वैच्छिक था और इसमें कोई जबरदस्ती, लालच या धोखा नहीं था। यह बिल भाजपा सरकार की 'लव जिहाद' और 'घर वापसी' जैसी नीतियों को मजबूत करने का प्रयास माना जा रहा है, लेकिन विपक्ष ने इसकी आलोचना की है।
राजस्थान में एंटी-कन्वर्जन क़ानून की मांग लंबे समय से चली आ रही है। 2006 और 2008 में राज्य सरकार ने ऐसे बिल पेश किए थे, लेकिन राज्यपाल और राष्ट्रपति की मंजूरी न मिलने से वे लागू नहीं हो सके। 2017 में राजस्थान हाईकोर्ट ने अंतर-धार्मिक विवाहों पर जाँच के लिए दिशानिर्देश जारी किए थे, जिसके तहत विवाह से पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देनी पड़ती है। लेकिन बीजेपी सरकार ने इसे अपर्याप्त मानते हुए नया बिल लाने का फैसला किया।
इस साल की शुरुआत में भी ड्राफ्ट पेश किया गया, लेकिन आलोचनाओं के बाद सरकार ने इसे वापस ले लिया थी और सितंबर 2025 में सत्र में सख्त संस्करण पेश किया। 3 सितंबर को विधानसभा में पेश होने के बाद बहस हुई और 9 सितंबर को ध्वनिमत से पारित हो गया। गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढ़म ने कहा, 'यह बिल कमजोर वर्गों को जबरन धर्मांतरण से बचाने के लिए आवश्यक है।' अब बिल राज्यपाल के पास भेजा जाएगा, जो राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद कानून बनेगा।
बिल का मुख्य उद्देश्य 'अवैध धर्मांतरण' को रोकना है, जिसकी परिभाषा में जबरदस्ती, धोखा, अनुचित प्रभाव, लालच, धोखाधड़ी या विवाह के माध्यम से धर्मांतरण शामिल है। कोई व्यक्ति यदि धर्म परिवर्तन करना चाहता है, तो उसे जिला कलेक्टर को पहले सूचना देनी होगी। सूचना मिलने के बाद जांच होगी, और यदि अवैध पाया गया, तो धर्मांतरण अमान्य हो जाएगा। बिल में साफ़ कहा गया है कि विवाह या वैवाहिक संबंध के नाम पर धर्मांतरण अवैध होगा। यदि साबित हो जाता है कि विवाह धोखे या लालच से हुआ, तो विवाह रद्द हो सकता है।
द प्रिंट की रिपोर्ट के अनुसार बिल में कहा गया है कि साबित करने की ज़िम्मेदारी उस व्यक्ति पर होगी जिसने 'धर्मांतरण करवाया' है या जिसमें से कोई व्यक्ति ने यह सुविधा दी है। आरोपी को यह साबित करना होगा कि धर्मांतरण स्वैच्छिक था और इसमें कोई अवैध साधन इस्तेमाल नहीं हुआ। यह 'दोषी सिद्ध न होने तक निर्दोष' के सिद्धांत को उलट देता है, जिसकी आलोचना हो रही है।
गृह राज्य मंत्री जवाहर सिंह बेढम ने विधानसभा में कहा, 'यह बिल एससी/एसटी, महिलाओं और नाबालिगों को जबरन धर्मांतरण से बचाने के लिए है। कई मामलों में अल्पसंख्यक समुदायों के लोग बहुसंख्यक महिलाओं को लुभाकर धर्मांतरण करवा लेते हैं।' मुख्यमंत्री भजन लाल शर्मा ने इसे 'सामाजिक न्याय' का कदम बताया। सरकार का दावा है कि बिल धार्मिक स्वतंत्रता का सम्मान करता है, लेकिन अवैध प्रक्रियाओं को रोकता है। भाजपा विधायकों ने कहा कि यह 'लव जिहाद' जैसे मामलों को रोकेगा, जहां अंतर-धार्मिक विवाहों का इस्तेमाल धर्मांतरण के लिए किया जाता है।
विपक्ष ने बिल को 'संवैधानिक अधिकारों पर हमला' बताया। नेता प्रतिपक्ष टीकाराम जूली इस बिल के विरोध में थे। उन्होंने सरकार पर सवाल खड़ा करते हुए कहा कि जब कानून लाना ही था तो पहले क्यों नहीं लाया गया। एनडीटीवी की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा, 'एक तरफ यह कहते हैं कि राजस्थान में कोई लव जिहाद के केस नहीं हैं, दूसरी तरफ यह कानून लेकर आते हैं।' उन्होंने कहा कि जो लोग मुझ पर या मेरी पार्टी पर उंगली उठा रहे हैं, उन्हें बता दूं कि हम बीजेपी से ज्यादा बड़े सनातनी हैं।
उन्होंने कहा, 'यह महिलाओं की स्वतंत्रता और धार्मिक अधिकारों को कुचलने वाला है। साबित करने का बोझ आरोपी पर डालना निर्दोषों को फँसाने का जरिया बनेगा।'
यह बिल राजस्थान में अंतर-धार्मिक विवाहों को और कठिन बना देगा, खासकर ग्रामीण इलाकों में। अल्पसंख्यक समुदायों मुस्लिम, ईसाई और अन्य में डर का माहौल है, क्योंकि पहले भी झूठे केस दर्ज हो चुके हैं। आर्थिक रूप से मिशनरी स्कूलों और संगठनों पर असर पड़ेगा। सरकार ने कहा कि बिल लागू होने के बाद प्रशिक्षण दिया जाएगा। माना जा रहा है कि यह सामाजिक तनाव बढ़ा सकता है।