जहांगीरपुरी हिंसा के बाद पुलिस अब उस इलाके में पीस कमेटी की बैठकें करा रही है। आमतौर पर ऐसी बैठकें किसी धार्मिक जुलूस आदि से पहले होती हैं। बहरहाल, पुलिस पर तमाम तरह के सवाल उठ रहे हैं।
दिल्ली में जहांगीरपुरी की घटना से जुड़े अब मीडिया को मिलने लगे हैं। ऐसे ही एक वीडियो में दिखाया गया है कि जुलूस से पहले कुछ लोग वहां बंदूकें, चाकू वगैरह लहराते निकले। इनसे पता चलता है कि जहांगीरपुरी में एक सुनियोजित साजिश के तहत साम्प्रदायिक तनाव बढ़ाया गया।
पिछले महीने दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाक़े में जो हिंसा हुई, उसके गुनहगारों को पहचानने और पकड़ने में दिल्ली पुलिस जुटी हुई है। पुलिसकर्मी पूरी चुस्ती के साथ एक-एक कर उन्हें पकड़ रही है।
दंगे और हिंसा के शिकार बच्चे और महिलाएँ ज़्यादा होती हैं। इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर तो भयावह असर होता है। यह हिंसा में मौत और उन जख्मों से कम पीड़ादायक नहीं है। कई शोधों में ऐसी बातें सामने आई भी हैं। तो क्या हैं वे कारण जिनसे उनपर असर पड़ता है? और किस तरह के होते हैं ये असर? देखिए मानसिक स्वास्थ्य की जानकार पूजा प्रियंवदा की विशेष रिपोर्ट।
पिछले दिनों जब मैंने दंगा प्रभावित इलाक़ों का दौरा किया तो मुझे ऐसा लग रहा था जैसे मैं किसी युद्ध क्षेत्र में आ गया हूँ। दुकान और मकान जले हुए थे और इलाक़े की हर गली का यही हाल था। इन दंगों में 50 से ज़्यादा लोग मारे गए।
कोरोना वायरस और दिल्ली दंगे का खौफ़ कितना ज़्यादा है? इसका अंदाज़ा होली जैसे उत्सव के माहौल से लगाया जा सकता है। होली जो देश में खुशियों के सबसे बड़े त्योहारों में से एक है।
सूचना और प्रसारण मंत्रालय ने शनिवार को उन दोनों मलयालम न्यूज़ चैनलों से प्रतिबंध हटा लिया है जिन पर दिल्ली दंगों में रिपोर्टिंग के लिए 48 घंटे का प्रतिबंध लगाया था।
दिल्ली हिंसा से भारत की छवि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कितनी ख़राब हुई है? भारत का दोस्त रहा ईरान सख्त लहजे में क्यों बात कर रहा है? ईरान के सुप्रीम लीडर ने भारत में 'मुसलिम नरसंहार' शब्द का ज़िक्र तक क्यों कर दिया? क्या मुसलिम देशों से भारत अलग-थलग हो जाएगा? देखिए आशुतोष की बात।
दिल्ली में दंगों के दौरान इंटेलीजेंस ब्यूरो के नौजवान अफ़सर अंकित शर्मा की हत्या के पीछे क्या धार्मिक नफ़रत थी या था कुछ और वजह?क्या था अंकित की हत्या का उद्देश्य? Satya Hindi
पिछले एक हफ़्ते से संसद ठप है। विपक्ष माँग कर रहा है कि दिल्ली दंगों पर तुरंत चर्चा करवाई जाए मगर सरकार उसे लगातार टाले जा रही है। सरकार दिल्ली दंगों पर चर्चा करने से क्यों बच रही है? क्या चर्चा से गृहमंत्री अमित शाह के लिए मुसीबत खड़ी होगी क्योंकि वे दंगा रैकने के मामले में बुरी तरह नाकाम साबित हुए? देखिए वरिष्ठ पत्रकार मुकेश कुमार की चर्चा।
सामाजिक शत्रुता, आर्थिक मंदी और वैश्विक स्वास्थ्य संकट भारत के लिए एक बड़े ख़तरे की घंटी है। सामाजिक अराजकता और आर्थिक बर्बादी हमने ख़ुद अपने आप को दिए हैं जबकि कोरोना वायरस का खौफ़ बाहरी कारणों से है।
दिल्ली दंगे के लिए ज़िम्मेदार कौन है? दिल्ली पुलिस पर सवाल उठाए जा रहे हैं तो क्या सिर्फ़ दिल्ली पुलिस ही ज़िम्मेदार है? और किसकी बनती है जवाबदेही? इंदिरा गाँधी को गिरफ़्तार करने वाले अफ़सर और पूर्व डीजीपी एन के सिंह की नज़र में दिल्ली दंगों के लिए कौन है ज़िम्मेदार? देखिए शैलेश की रिपोर्ट में।
दिल्ली दंगे में पुलिस पर जिस तरह के आरोप लग रहे हैं उससे पुलिस किस तरह न्याय कर पाएगी? एसआईटी जाँच से भी क्या न्याय मिलने की उम्मीद है वह भी तब जब इसका नेतृत्व ऐसे अधिकारी कर रहे हैं जो जेएनयू और जामिया के मामले में कार्रवाई नहीं करा पाए हैं? सरकार से कितनी उम्मीद की जा सकती है? ऐसे में क्या न्यायिक जाँच नहीं होनी चाहिए? देखिए शैलेश की रिपोर्ट।
दिल्ली दंगा पीड़ितों के हालात अब कैसे हैं? क्या वे खौफ से उबरे? क्या उनका घाव भर रहा है या कभी भर पाएगा? क्या वे अपने घर लौटे, और नहीं लौटे तो क्या कभी लौट पाएँगे भी या नहीं? क्या बच्चों की पढ़ाई हो पाएगी? क्या वे तबाही के दर्द से उबर पाएँगे? जिनके घर उजड़ गए वे कैसे रह रहे हैं आश्रय स्थलों में? हॉस्पिटलों में कैसी है स्थिति और कैसी मिल रही है मदद? देखिए वरिष्ठ पत्रकार स्मिता शर्मा की ग्राउंड रिपोर्ट। सत्य हिंदी पर।
दिल्ली दंगे ने क्या दिया? तबाही और घाव के अलावा? क्या वे घाव भर पाएँगे? दंगे के बाद के हालात क्या संदेश देते हैं, क्या वह भरोसा कायम हो पाएगा जिस पर भारत की नींव टिकी रही है? क्या सरकारें किसी धर्म विशेष के साथ नज़र आ सकती हैं? क्या वह हमले भी करवा सकती है? पुलिस की भूमिका क्या रही है? केजरीवाल सरकार की भी ज़िम्मेदारी है कि नहीं है? देखिए आशुतोष की बात में प्रोफ़ेसर अपूर्वानंद के साथ विशेष चर्चा।
दिल्ली हिंसा को लेकर क्या सु्प्रीम कोर्ट पर किसी तरह का दबाव है? आख़िर कोर्ट ने क्यों कहा कि अदालत इतना दबाव नहीं झेल सकती है? क्या दिल्ली हिंसा को लेकर भड़काऊ भाषण देने वाले नेताओं पर कार्रवाई करने का दबाव है? देखिए सत्य हिंदी पर आशुतोष की बात।
सुप्रीम कोर्ट ने दिल्ली दंगों के पीड़ितों की ओर से दायर की गई याचिका पर सुनवाई करते हुए सोमवार को कहा है कि अदालत को दबाव में नहीं लाया जा सकता। Satya Hindi
साल 2020 की फ़रवरी में हुए दिल्ली के हालिया दंगे को देख कर कलेजा मुँह को आता है। दंगों का ज्वार थमने के बाद मीडिया और पुलिस का रवैया भी कुछ ठीक नहीं है।
दिल्ली दंगे के ख़िलाफ़ आम आदमी पार्टी, कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस के सांसदों ने संसद में प्रदर्शन किया। हंगामा इतना हुआ कि संसद के दोनों सदनों को दिनभर के लिए स्थगित करना पड़ा।
नाम 'शांति मार्च'। और नारे लगाए गए- 'किसी को मत माफ़ करो, जिहादियों को साफ़ करो', 'देश के गद्दारों को, गोली मारो ... को'। यह कैसा शांति मार्च! क्या बंदूक़ की गोली से कभी शांति आ सकती है?
जब भी हिंदू-मुसलिम दंगे होते हैं तब सबसे पीड़ादायक होते हैं विदेश में रहने वाले मित्रों और रिश्तेदारों के संदेश। जब पाकिस्तान के हमारे रिश्तेदार हमसे पूछते हैं- भैया, आप सब लोग सुरक्षित हो- तब इससे ज़्यादा तकलीफ़देह बात और कुछ नहीं हो सकती।
एक चौंकाने वाली रिपोर्ट आई है कि हिंसा शुरू होने से एक दिन पहले यानी रविवार को ट्रकों में भरकर बाहर से लोग और ईंट-पत्थर लाए गए थे। शायद साथ में हथियार भी हों। इससे साफ़-साफ़ लगता है कि दंगा कराया गया है।
क्या दिल्ली पुलिस अपना काम ठीक से करती तो दिल्ली दंगा हो पाता? बिल्कुल नहीं। अब जो रिपोर्टें आ रही हैं वे सभी इसके सबूत हैं। अब रिपोर्ट आई है कि मदद के लिए या दंगा रोकने के लिए चार दिन में 13 हज़ार से ज़्यादा फ़ोन कॉल पुलिस को किया गया।
दिल्ली पुलिस ने हिंसा मामले में दो विशेष जाँच दल यानी एसआईटी गठित की है। प्रत्येक एसआईटी का नेतृत्व डीसीपी राजेश देव और जॉय टिर्की करेंगे। तो क्या ये दोनों अफ़सर अब हिंसा भड़काने वालों की पहचान कर पाएँगे?
दिल्ली हिंसा की जाँच की हो रही है तो आप एक सवाल पर ग़ौर फरमाइए, देश में कितने दंगे हुए हैं जिसमें शामिल दोषियों और साज़िशकर्ताओं के ख़िलाफ़ जाँच एजेंसी पहुँच पाती है?
दिल्ली दंगे में एक बहुत ही ख़तरनाक ट्रेंड दिखता है। इसमें जितने भी लोगों की मौत हुई है उसमें से अधिकतर लोगों को गोली लगी थी। घायलों में भी बहुत बड़ी संख्या उनकी है जो गोली लगने से घायल हुए हैं।