मालूम हुआ कि इस घोर आपदा काल में भी दिल्ली पुलिस अपना असल काम न भूले, यह उसे गृह मंत्रालय ने चेताया। वह काम क्या है? पिछले महीने दिल्ली के उत्तर पूर्वी इलाक़े में जो हिंसा हुई, उसके गुनहगारों को पहचानने और पकड़ने का। ‘इंडियन एक्सप्रेस’ की एक ख़बर के मुताबिक़ पुलिस पूरी चुस्ती के साथ एक-एक कर उन्हें पकड़ रही है। लेकिन वह तालाबंदी या लॉकडाउन के सारे नियमों का बाक़ायदगी से पालन करती है। उन्हें नक़ाब पहनवाती है, सैनिटाइज़र से कीटाणु मुक्त करती है और फिर मैजिस्ट्रेट के सामने पेश करती है।
मुसलमानों पर हमला, फिर ख़ामोश करने की क्रूरता, क्या जनतंत्र को मिटाने की क़वायद?
- वक़्त-बेवक़्त
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- 29 Mar, 2025

मुसलमानों का यक़ीन भारत की पुलिस पर हो, इसकी कोई वजह नहीं रह गई है। उत्तर पूर्वी दिल्ली की हिंसा के दौरान भी एकाध अपवाद को छोड़ भी दें तो उसका रुख़ बहुत साफ़ था। यही सिख 1984 में देख चुके हैं। 2018 की 2 अप्रैल को हुए भारत बंद में दलित इस पुलिस को झेल चुके हैं।
उत्तर पूर्वी दिल्ली में हुई हिंसा के पीछे एक साज़िश थी, यह पुलिस की पूर्व धारणा है। कौन कौन थे इसके पीछे? अभी दो रोज़ पहले उसने जामिया मिल्लिया इस्लामिया की एम फ़िल की छात्रा सफ़ूरा ज़रगार को गिरफ़्तार किया। उनपर पुलिस का इल्ज़ाम यह है कि जाफ़राबाद में उन्होंने औरतों को प्रदर्शन के लिए और पुलिस पर हमला करने के लिए उकसाया था। सफ़ूरा के पहले जामिया के ही एक दूसरे छात्र मीरान अहमद को गिरफ़्तार किया गया। उनपर भी यही आरोप है कि उन्होंने हिंसा भड़काई।