बंगाल उर्दू अकादमी का जावेद अख़्तर वाला कार्यक्रम अचानक रद्द हो गया। इस्लामी संगठनों को आख़िर किस बात पर आपत्ति है। विवाद की असली वजह क्या है? पढ़ें पूरी रिपोर्ट।
पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी ने 'हिंदी सिनेमा में उर्दू' कार्यक्रम को शुरू होने से कुछ घंटे पहले रद्द क्यों कर दिया? क्या सिर्फ़ इसलिए कि इस्लामी संगठनों को गीतकार जावेद अख़्तर को अतिथि के तौर पर बुलाया जाना नागवार गुजरा? बंगाल उर्दू अकादमी ने तो सिर्फ़ इतना कहा है कि 'टाली न जा सकने वाली परिस्थितियों' की वजह से इसको रद्द किया गया है, लेकिन रिपोर्टें हैं कि जावेद अख़्तर को कार्यक्रम में बुलाए जाने पर कुछ इस्लामी संगठनों ने आपत्ति की थी। और सरकार? कुछ महीनों में होने वाले चुनाव से पहले तो राजनीतिक दल जोखिम नहीं ही लेना चाहेंगे!
पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी का 'हिंदी सिनेमा में उर्दू' कार्यक्रम 31 अगस्त से 3 सितंबर तक कोलकाता में आयोजित होने वाला था। प्रसिद्ध गीतकार और कवि जावेद अख्तर को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित किया गया था। कहा जा रहा है कि कार्यक्रम में जावेद अख्तर को बुलाए जाने की वजह से ही इस्लामी संगठनों द्वारा इसका विरोध किया जा रहा था। इसी बीच पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी की सचिव नुजहत जैनब ने एक आधिकारिक बयान जारी कर कहा, 'टाली न जा सकने वाली परिस्थितियों के कारण 31 अगस्त से 3 सितंबर तक होने वाला चार दिवसीय कार्यक्रम स्थगित किया जा रहा है।'
जावेद अख़्तर का विरोध क्यों?
यह फ़ैसला तब लिया गया जब जमीयत उलेमा-ए-हिंद और वह्याहिन फाउंडेशन जैसे कुछ इस्लामी संगठनों ने विरोध किया। इन्होंने जावेद अख्तर को मुख्य अतिथि के रूप में आमंत्रित करने पर आपत्ति जताई थी। वह अपनी नास्तिकता, तार्किक विचारों और धार्मिक रूढ़ियों के खिलाफ बयानों के लिए कट्टरपंथियों के निशाने पर रहे हैं।
जमीयत उलेमा-ए-हिंद के कोलकाता इकाई के महासचिव जुल्फिकार रहमान आरिफ ने इनके विरोध में कुछ दिन पहले ही ख़त लिखा था। इंडिया टुडे की रिपोर्ट के अनुसार उन्होंने कहा था, 'जावेद अख्तर एक ऐसे व्यक्ति हैं जो बार-बार धर्म और ईश्वर के खिलाफ बोलते हैं। ऐसे व्यक्ति को उर्दू भाषा के किसी प्रतिष्ठित कार्यक्रम में आमंत्रित करना सही नहीं है।' उन्होंने यह भी उल्लेख किया कि पश्चिम बंगाल के शांतिप्रिय लोग ऐसे लोगों को पसंद नहीं करते जो इस्लाम और अल्लाह के खिलाफ बोलते हों।
वह्याहिन फाउंडेशन ने भी इस निमंत्रण का विरोध करते हुए कहा कि जावेद अख्तर जैसे लोग युवा दिमागों पर नकारात्मक प्रभाव डालते हैं। रिपोर्ट के अनुसार फाउंडेशन के मुफ्ती शमील नदवी ने कहा था कि 'हमें यह जानकर बहुत आश्चर्य हुआ कि अकादमी ने जावेद अख्तर साहब को इस कार्यक्रम की अध्यक्षता करने के लिए आमंत्रित किया है। यह आश्चर्यजनक है क्योंकि अकादमी मुख्यतः मुसलमानों के योगदान का प्रतिनिधित्व करती है।'
उर्दू अकादमी का फ़ैसला
ईसी बीच 30 अगस्त को आयोजन शुरू होने से कुछ घंटे पहले उर्दू अकादमी ने उस कार्यक्रम को रद्द कर दिया। जब पूछा गया तो अकादमी की सचिव नुजहत जैनब ने एक आधिकारिक बयान में केवल 'न टाली जा सकने वाली परिस्थितियों' का हवाला दिया।
इस घटना ने सोशल मीडिया पर बड़ी बहस छेड़ दी। मशहूर कवि गौहर रजा, पत्रकार अजय कामथ जैसे लगों ने कार्यक्रम रद्द किए जाने की आलोचना की। प्रसिद्ध कवि गौहर रजा ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म एक्स पर अपनी प्रतिक्रिया में लिखा, "पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी द्वारा आयोजित कार्यक्रम को मुस्लिम कट्टरपंथी संगठनों के इशारे पर रद्द करना, क्योंकि जावेद अख्तर साहब को बोलने के लिए आमंत्रित किया गया था, बेहद परेशान करने वाला और अस्वीकार्य है। यह यह भी दिखाता है कि कट्टरपंथी, चाहे हिंदू हों या मुसलमान, तर्क की भाषा से डरते हैं।' रजा ने कहा कि वह तार्किक विचारों की सबसे दृढ़, साफ़ और रचनात्मक आवाजों में से एक हैं और पूरा देश उन्हें सुनने के लिए हमेशा उत्सुक रहता है।
वरिष्ठ पत्रकार अजय कामथ ने भी इस घटना की निंदा की और इसे सांस्कृतिक स्वतंत्रता पर हमला बताया। उन्होंने कहा, 'बिना रीढ़ की सरकार! सिर्फ़ दक्षिणपंथी हिंदू समूहों पर चिल्लाने का क्या मतलब है? चरमपंथी हर जगह एक जैसे ही होते हैं और उनसे एक जैसा ही व्यवहार किया जाना चाहिए...।'
पश्चिम बंगाल उर्दू अकादमी के इस फैसले ने न केवल साहित्यिक और सांस्कृतिक हलकों में बहस को जन्म दिया है, बल्कि यह भी सवाल उठाया है कि क्या कट्टरपंथी ताक़तें भारत की समावेशी सांस्कृतिक विरासत को कमजोर कर रही हैं। साहित्य से जुड़े लोगों का कहना है कि जावेद अख्तर जैसे साहित्यकारों को मंच से वंचित करना और उर्दू जैसे समृद्ध भाषा को धार्मिक विवादों में उलझाना न केवल साहित्य के लिए, बल्कि भारत की सांस्कृतिक एकता के लिए भी ख़तरा हो सकता है।