चीन ने इस घोषणा पर अभी तक औपचारिक रूप से कोई जवाब नहीं दिया है, लेकिन उसने पहले ही चेतावनी दी थी कि अगर वाशिंगटन ट्रेड वॉर को और बढ़ाता है, तो वह "अंत तक लड़ेगा"। बीजिंग ने पिछले सप्ताह अमेरिकी सामानों पर 34 प्रतिशत का जवाबी टैरिफ लगाया था, जिसे ट्रंप ने अपनी नीति के लिए उकसावे के रूप में देखा। विश्लेषकों का मानना है कि यह टैरिफ युद्ध दोनों देशों के बीच तनाव को और बढ़ा सकता है और ग्लोबल सप्लाई चेन को बाधित कर सकता है।
व्हाइट हाउस की प्रेस सचिव कैरोलिन लेविट ने मंगलवार को कहा, "राष्ट्रपति ट्रंप का मानना है कि चीन अमेरिका के साथ एक समझौता करना चाहता है, लेकिन वे नहीं जानते कि इसे कैसे शुरू किया जाए। अगर चीन समझौते के लिए आगे आता है, तो राष्ट्रपति अत्यंत उदार होंगे, लेकिन वह हमेशा अमेरिकी हितों को प्राथमिकता देंगे।" लेविट ने यह भी दावा किया कि यह टैरिफ नीति 27 साल पहले नैंसी पेलोसी की मांग का जवाब है, हालांकि इस दावे की ऐतिहासिक पुष्टि नहीं हो सकी।
विश्लेषकों का मानना है कि यह टैरिफ वॉर वैश्विक व्यापार व्यवस्था को फिर से परिभाषित कर सकता है। कुछ लोग इसे ट्रंप की "अमेरिका फर्स्ट" नीति का हिस्सा मानते हैं, जबकि अन्य इसे एक खतरनाक जुआ मानते हैं जो वैश्विक अर्थव्यवस्था को अस्थिर कर सकता है। भारत जैसे देश, जो पहले से ही चीनी आयात की अधिकता से जूझ रहे हैं, इस स्थिति का बारीकी से अध्ययन कर रहे हैं। भारतीय व्यापार अधिकारियों ने हाल ही में उच्च-स्तरीय बैठकें की हैं ताकि अमेरिकी टैरिफ के कारण चीनी निर्यात में संभावित उछाल का आकलन किया जा सके।