अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने 'टैरिफ़ वार' छेड़ने के तुरंत बाद अप्रैल महीने में कहा था कि 200 देश के साथ व्यापारिक सौदा पूरा कर लिया है। लेकिन उन्होंने अब तक सिर्फ़ 3 की ही घोषणा की है। कहा जा रहा है कि इसके अलावा एक और सौदा होने के क़रीब है। तो क्या यूरोपीय संघ के साथ एक नया सौदा उनकी साख को कुछ हद तक बचा पाएगा?

ट्रंप ने अपने इस कार्यकाल की शुरुआत में दावा किया था कि वह अमेरिका के व्यापारिक हितों को मज़बूत करने के लिए 200 नए व्यापारिक सौदों को अंजाम देंगे। इन सौदों में मुख्य रूप से अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौते, द्विपक्षीय व्यापारिक करार, और अन्य आर्थिक सहयोग शामिल थे। ये अमेरिकी अर्थव्यवस्था को बढ़ावा देने और रोजगार सृजन करने के लिए अहम माने गए थे। ट्रंप ने खासकर मेक्सिको, कनाडा और यूरोपीय देशों के साथ नए व्यापारिक समझौतों पर जोर दिया था।
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चीन, यूके और वियतनाम से सौदा

हालाँकि, सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार अब तक केवल तीन सौदे ही पूरे हो पाए हैं। ये सौदे चीन, यूनाइटेड किंगडम और वियतनाम शामिल हैं। इन कुछ प्रमुख सौदों में संशोधित उत्तर अमेरिकी मुक्त व्यापार समझौता यानी यूएसएमसीए शामिल है। इसे एनएएफ़टीए की जगह लाया गया है। इसके अलावा, अन्य दो सौदों की जानकारी अभी तक साफ़ तौर पर सार्वजनिक नहीं की गई है। चौथा सौदा, जो यूरोपीय संघ के साथ होने की कगार पर है, इस सप्ताह के अंत तक घोषित होने की उम्मीद है। यह सौदा मुख्य रूप से व्यापार शुल्क और टैरिफ़ से जुड़ा हो सकता है, जो अमेरिकी और यूरोपीय बाज़ारों के बीच व्यापार को और आसान बनाने का लक्ष्य रखता है।

क्यों नहीं हो पा रहे सौदे?

विशेषज्ञों का मानना है कि ट्रंप के 200 सौदों के वादे को पूरा करना शुरू से ही वास्तविक लक्ष्य नहीं लग रहा था। अंतरराष्ट्रीय व्यापार समझौतों में कई पक्षों के हित शामिल होते हैं और इन्हें अंतिम रूप देने में समय, कूटनीति, और पारस्परिक सहमति की ज़रूरत होती है। इसके अलावा, वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताएँ, सप्लाई चेन में व्यवधान, मुद्रास्फीति और जियो-पॉलिटिकल तनाव ने भी व्यापारिक सौदों को आगे बढ़ने से प्रभावित किया है।

ट्रंप प्रशासन ने अपनी प्राथमिकताओं को इतना बड़ा रखा है कि अन्य देशों के साथ सौदे पर पहुँचना बेहद मुश्किल हो रहा है। भारत जैसे देशों के साथ इसी वजह से सौदा होने में दिक्कतें आ रही हैं।

यूरोपीय संघ के साथ क्या संभावना?

सीएनएन की रिपोर्ट के अनुसार, यूरोपीय संघ के साथ होने वाला सौदा इस सप्ताह के अंत तक घोषित हो सकता है। यह सौदा संभवतः टैरिफ़ में कमी और ऑटोमोबाइल और कृषि उत्पादों जैसे कुछ प्रमुख क्षेत्रों में व्यापार को बढ़ावा देने पर केंद्रित होगा। यूरोपीय संघ और अमेरिका के बीच व्यापारिक संबंध पहले से ही मज़बूत हैं, लेकिन हाल के वर्षों में टैरिफ़ और व्यापार नीतियों को लेकर तनाव देखा गया है। यह सौदा इन तनावों को कम करने और दोनों पक्षों के लिए लाभकारी स्थिति बनाने की दिशा में एक क़दम हो सकता है।

भारत-अमेरिका सौदे का क्या हुआ?

भारत और अमेरिका के बीच व्यापार सौदे की स्थिति मुश्किल बनी हुई है। दोनों देश एक व्यापक द्विपक्षीय व्यापार समझौते की दिशा में काम कर रहे हैं। अमेरिका ने 1 अगस्त 2025 से लगभग 100 देशों पर 10% टैरिफ़ लागू करने की घोषणा की है, जिसमें भारत भी शामिल है। भारत को पहले दी गई 26% टैरिफ़ छूट 9 जुलाई को ख़त्म हो चुकी है और यदि कोई समझौता नहीं हुआ तो भारतीय निर्यात पर ज़्यादा टैरिफ़ लग सकता है। इसके जवाब में, भारत और अमेरिका ने एक सीमित व्यापार समझौते यानी मिनी ट्रेड डील पर सहमति जताई है, जिसका औपचारिक ऐलान जल्द हो सकता है। यह डील कुछ चुनिंदा क्षेत्रों को कवर करती है और भविष्य में व्यापक समझौते का आधार तैयार कर सकती है।
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मुख्य मुद्दों में अमेरिका का भारत से अपने कृषि और डेयरी क्षेत्रों को जेनेटिकली मॉडिफ़ाइड उत्पादों के लिए खोलने का दबाव शामिल है, जबकि भारत ने बोरबॉन, मोटरसाइकिल, और चिकित्सा उपकरणों जैसे अमेरिकी उत्पादों पर टैरिफ़ कम करने के क़दम उठाए हैं। भारत ने भी अपने आम और अनार के निर्यात को बढ़ाने के लिए अमेरिका के क़दमों की सराहना की है।

हालाँकि, चुनौतियाँ बनी हुई हैं। ट्रंप ने 14 देशों पर 25-40% टैरिफ़ लगाने की घोषणा की है, और यदि बातचीत विफल होती है तो भारत पर भी अतिरिक्त टैरिफ़ का जोखिम है। भारत के वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल ने साफ़ किया है कि कोई भी समझौता देशहित को प्राथमिकता देगा। इसके अलावा, रूस के साथ भारत के रक्षा संबंध और बौद्धिक संपदा अधिकार जैसे मुद्दे भी बातचीत को जटिल बना रहे हैं।
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ट्रंप के लिए चुनौतियाँ

ट्रंप प्रशासन के लिए यह स्थिति एक अहम मोड़ है। एक ओर, यूरोपीय संघ के साथ संभावित सौदा उनकी आर्थिक नीतियों को कुछ हद तक मज़बूती दे सकता है। दूसरी ओर, 200 सौदों के वादे से इतना पीछे रहना उनके आलोचकों को और अधिक हमला करने का मौक़ा देता है। आने वाले महीनों में यह देखना अहम होगा कि ट्रंप प्रशासन अपनी व्यापारिक रणनीति में कितना सुधार कर पाता है और क्या वह अपने इस महत्वाकांक्षी लक्ष्य को पाने की दिशा में आगे बढ़ पाता है।

डोनाल्ड ट्रंप का 200 सौदों का वादा उनकी आर्थिक नीतियों का एक प्रमुख हिस्सा था, लेकिन अब तक केवल तीन सौदों का पूरा होना और एक अन्य के क़रीब होने की ख़बर ने उनके प्रशासन की विश्वसनीयता पर सवाल उठाए हैं। यूरोपीय संघ के साथ अगला सौदा इस दिशा में एक सकारात्मक क़दम हो सकता है, लेकिन सवाल वही है कि ट्रंप के 200 सौदों की पहले की घोषणा का क्या हुआ!