लेखक पत्रकार हैं, आर्थिक और अंतरराष्ट्रीय विषयों पर लिखते रहते हैं।
तालिबान अफ़ग़ानिस्तान में किस तरह की सरकार बनाएगा? वह ब्रिटेन या अमेरिका की तरह तो होगा नहीं। क्या वह ईरानी मॉडल अपना कर शरीआ लागू करेगा?
इसलामिक स्टेट खुरासान का मक़सद पहले मध्य पूर्व और उसके बाद भारत में इसलामी ख़िलाफ़त की स्थापना करना है। पर क्या होता है इसलामी ख़िलाफ़त? पढ़े प्रमोद मल्लिक का यह लेख।
काबुल हवाई अड्डे पर हुए धमाकों से यह संकेत मिलता है कि इसलामिक स्टेट अब वहां पहले से अधिक मजबूती से उभर कर आ सकती है और तालिबान के ख़िलाफ़ बड़े पैमाने पर हिंसा फैला सकती है। पढ़ें, प्रमोद मल्लिक का यह लेख।
पाकिस्तान और चीन के बाद रूस ही ऐसा देश है, जिसने तालिबान का समर्थन किया है। आख़िर दशकों पुराने इस दुश्मन के प्रति रूस का प्रेम क्यों उमड़ रहा है?
अमेरिका उसी मुल्ला अब्दुल ग़नी बरादर को अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति बनाएगा जिसके नेतृत्व में तालिबान ने 20 साल तक अमेरिकी व नेटो सैनिकों के ख़िलाफ़ युद्ध लड़ा है।
ताज़िक, उज़बेक, हज़ारा क़बीले के लोग एकजुट होकर नॉदर्न अलायंस जैसा संगठन बनाने की कोशिश में हैं, जो अफ़ग़ानिस्तान में तालिबान को ज़बरदस्त चुनौती दे सके।
पाकिस्तानी सेना, सरकार और ख़ुफ़िया एजेन्सी आईएसआई ने जिस हक्क़ानी नेटवर्क को 20 साल से पाला पोसा है, उसके लोग ही अफ़ग़ानिस्तान में सरकार बनाने जा रहे हैं। मतलब साफ है।
चीन और पाकिस्तान के बाद क्या अब भारत तालिबान को समर्थन देगा, यह सवाल बेहद मुश्किल है। क्या मोदी सरकार राजनीतिक जोखिम उठा कर यह साहसिक कदम उठाएगी?
तालिबान के प्रवक्ता दावे चाहे जो करें, ज़मीनी हक़ीक़त यह है कि उन्होंने अफ़ग़ानिस्तान की महिलाओं को निशाना बनाना शुरू कर दिया है। उनकी कथनी और करनी में क्या अंतर है, देखिए, प्रमोद मल्लिक के साथ सत्य हिन्दी पर।
तालिबान ने काबुल पर क़ब्ज़ा किया नहीं कि चीन ने तुरन्त उसकी ओर दोस्ती और सहयोग का हाथ बढ़ा दिया। क्या वह अफ़ग़ानिस्तान के ज़रिए कज़ाख़स्तान, उज़बेकिस्तान, ताज़िकस्तान होते हुए यूरोप तक पहुँचना चाहता है?
देश के दो तिहाई हिस्से पर तालिबान का क़ब्ज़ा होने के बाद अफ़ग़ान राष्ट्रपति अशरफ़ ग़नी को अब्दुल रशीद दोस्तम जैस अफ़ग़ान वॉर लॉर्ड की याद आई है।
संयुक्त राष्ट्र के इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज ने अपनी छठी रिपोर्ट में कहा है कि जलवायु परिवर्तन की स्थिति अनुमान से बदतर है और जो नुक़सान हो चुका है, वह ठीक नहीं होगा या उसमें हज़ारों साल लगेंगे।
बिहार में विपक्ष का नेता और मुख्यमंत्री, दोनों ही जाति जनगणना के पक्ष में हैं। तेजस्वी यादव कर्नाटक मॉडल की बात कर रहे हैं तो नीतीश कुमार नरेंद्र मोदी से मिलने का समय माँग रहे हैं। क्या है मामला?
तालिबान ने जिस तरह काबुल पर क़ब्ज़ा करते ही महिलाओं को घर जाने को कह दिया और उनके पोस्टर हटा दिए, लोगों को पुराने दिनों की याद ताज़ा हो गई है। फिर यह नया तालिबान क्या है?
नरेंद्र मोदी सरकार के नए मंत्रालय मिनिस्ट्री ऑफ़ कोऑपरेशन यानी सहकारिता मंत्रालय कामकाज शुरू करे, उसके पहले ही उस पर विवाद शुरू हो गया है। विपक्षी दलों ने इसे राज्य का विषय मानते हुए संघवाद के ख़िलाफ़ बताया है और सरकार की मंशा पर सवाल उठाया
क्या मोदी कैबिनेट विस्तार 2021 में स्वास्थ्य मंत्री डॉक्टर हर्षवर्द्धन को बलि का बकरा बनाया गया? क्या उन्हें मोदी कैबिनेट फेरबदल 2021 में बाहर का रास्ता इसलिए दिखाया गया कि सरकार की खराब हो चुकी छवि को और खराब होने से बचाया जा सके?
तेल मंत्री धर्मेंद्र प्रधान और सत्तारूढ़ बीजेपी ने पेट्रोलियम उत्पादों की बेतहाशा बढ़ती कीमतों से जिस तरह पल्ला झाड़ लिया है और इसके लिए पूर्व कांग्रेसी सरकार के ऊपर ठीकरा फोड़ दिया है, उससे कई अहम सवाल खड़े होते हैं।
पाँच राज्यों में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों को देखते हुए नरेंद्र मोदी अपने दूसरे कार्यकाल में मंत्रिमंडल का पहली बार विस्तार कर सकते हैं।
क्या प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कोरोना टीका खरीद कर राज्यों को मुफ़्त देने का एलान पूरे देश में बढते ज़बरदस्त असंतोष और गुस्से को रोकने के लिए किया?
कोरोना महामारी और उसके बाद लगाए गए लॉकडाउन ने खरीद-फ़रोख़्त और बाजार में बुनियादी बदलाव लाए हैं। यह बदलाव सबसे साफ़ तौर पर ऑनलाइन शॉपिंग के क्षेत्र में देखा जा सकता है।
बच्चों-किशोरों पर लॉकडाउन का असर दूरगामी हो सकता है, जिससे उनकी मानसिकता बदल सकती है, उनके पूरे जीवन पर इसका असर दिख सकता है। अभिभावक, शिक्षक और माता-पिता इसे पूरी तरह समझ भी नहीं पा रहे हैं।
कोरोना और इस महामारी से बचने के लिए लगाए गए लॉकडाउन ने क्या मानव स्वभाव को भी प्रभावित किया है? क्या कोरोना की वजह से हमारे मनोविज्ञान, स्वभाव, व्यवहार व कामकाज के तौर तरीकों में कोई फ़र्क आया है?
हमास और इज़राइल के बीच युद्ध क्यों छिड़ा है? वहाँ शांति स्थापित क्यों नहीं हो रही है? क्या इसकी एक प्रमुख वजह फ़लस्तीन को देश का दर्जा नहीं मिलना भी है?
इज़राइल-फ़लस्तीन के लिए जितना ख़ून बहा है, जितना संघर्ष हुआ है, उतना दुनिया में किसी जगह के लिए नहीं हुआ है। जानिए, आख़िर कैसे अस्तित्व में आया इज़राइल।
हमास और इज़राइल के बीच युद्ध छिड़ा है। रॉकेट दागे जा रहे हैं। सैकड़ों लोगों के मारे जाने की ख़बर आ रही है। आख़िर इसकी वजह क्या है? जानें आख़िर हमास कैसे अस्तित्व में आया और किसने इसे खड़ा किया।
श्मसान घाटों और क़ब्रिस्तानों पर अंत्येष्टि के लिए लगी लंबी लाइनों, गंगा में लगातार दिख रही लाशों और कोरोना से होने वाली मौतों के सरकारी आँकड़ों के बीच बड़ी खाई को देख कर यह अंदेशा होना स्वाभाविक है कि क्या सरकारें जितनी मौतें बता रही हैं, उससे ज़्यादा मौते हो रही हैं?