पाकिस्तान और चीन के बाद जो देश तालिबान के साथ खुल कर खड़ा है, वह रूस है। वही रूस जिसे काबुल पर तालिबान के क़ब्ज़े से कोई परेशानी नहीं हुई, जिसका दूतावास थोड़े समय के लिए भी बंद नहीं हुआ, जिसके राजदूत ने औपचारिक रूप से कहा कि तालिबान के साथ काम करने में कोई दिक्क़त नहीं है।
दशकों पुराने दुश्मन तालिबान के लिए रूस का प्रेम क्यों उमड़ा?
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- 25 Aug, 2021

सोवियत सेना के टैंक जब 1979 में रूस से चल कर कज़ाख़स्तान, उज़बेकिस्तान और ताज़िकिस्तान होते हुए अफ़ग़ानिस्तान में दाखिल हुए थे तो सोवियत संघ के राष्ट्रपति लियोनिद ब्रेझनेव की नज़र अफ़ग़ानिस्तान की भौगोलिक-राजनीतिक स्थिति पर थी और वे रूस से चीन तक के एकक्षत्र राज का सपना देख रहे थे।
वही रूस, जिससे तालिबान ने समावेशी सरकार बनाने में मदद माँगी है।
यह वही रूस है, जो व्यावहारिक तौर पर सोवियत संघ था। वही सोवियत संघ जिसने 1979 में अपने टैंक अफ़ग़ानिस्तान भेजे, अपने आदमी बबरक करमाल को अफ़ग़ानिस्तान का राष्ट्रपति बनवाया।