संजय राय पेशे से पत्रकार हैं और वह समसामयिक विषयों पर लिखते रहते हैं।
बेरोज़गारी बढ़ने से शहरों की तरफ़ पलायन और तेज़ी से बढ़ने वाला है। यानी हमारे जो शहर हैं वे और तेज़ी से बद से बदतर हालात की तरफ़ बढ़ने वाले हैं। तो क्या सिर्फ़ स्मार्ट सिटी से समाधान हो पाएगा?
महाराष्ट्र में बीजेपी-शिवसेना मज़बूत स्थिति में हैं। कांग्रेस आज असमंजस में और कमज़ोर है। तो क्या फिर भी शरद पवार राजनीति की कांग्रेस संस्कृति को लेकर कोई बड़ा निर्णय लेने की योजना बना रहे हैं?
लोकसभा चुनाव से ठीक पहले नवंबर में अयोध्या जाकर राम मंदिर की माँग को हवा देने वाले शिवसेना प्रमुख उद्धव ठाकरे एक बार फिर 15 जून को अयोध्या क्यों जाने वाले हैं। क्या उन्होंने विधानसभा चुनाव के लिए दाँव खेला है?
पानसरे, दाभोलकर, गौरी लंकेश अब इस दुनिया में नहीं रहे लेकिन उनके जैसा सोचने वाले अन्य लोगों को क्या नए भारत में कोई स्थान मिलेगा, यह सवाल खड़ा हो गया है।
लोकसभा चुनाव की जीत का स्वाद अभी मुँह से गया भी नहीं कि महाराष्ट्र में सत्ताधारी बीजेपी- शिवसेना के बीच विधानसभा चुनाव में ‘बड़ा भाई’ बनने को लेकर रस्साकशी शुरू हो गयी है।
क्या कांग्रेस को ईवीएम के बारे में गुमराह करने के लिए बीजेपी ने तीन राज्यों की सत्ता कांग्रेस को सौंप दी थी? शरद पवार के बयान के बाद कई सवाल खड़े हो रहे हैं।
जिस विचारधारा की लड़ाई की बात राहुल गाँधी कर रहे हैं क्या वह कांग्रेस को उस मुकाम तक पहुँचा पाएँगे? उस दौर में जब ‘विचारधारा’ को सिर्फ़ एक शब्द ‘सत्ता’ तक संकुचित कर दिया गया है?
कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गाँधी अपने पद से इस्तीफ़ा देने की पेशकश कर चुके हैं। लेकिन क्या सवालों और इस्तीफ़ों से कांग्रेस सुधर जाएगी या बदल जाएगी?
कांग्रेस में इस्तीफ़े और असमंजस का दौर चल रहा है, जबकि 5 महीने बाद महाराष्ट्र में विधानसभा चुनाव होने वाले हैं। देवेंद्र फडणवीस के 220 सीटों पर जीत के दावे के बाद कहाँ टिकेगी कांग्रेस?
मतदान की समाप्ति के बाद एग्ज़िट पोल पर चर्चाएँ जारी हैं। लेकिन इन सबमें एक चीज पर जो चर्चा नहीं हो रही है वह है मीडिया की भूमिका। लोकतंत्र के चौथे स्तंभ पर चर्चा क्यों नहीं?
बीजेपी और प्रधानमंत्री जिस विपक्षी गठजोड़ को 'महामिलावट' कह कर उसका मजाक उड़ाया करते थे, उसी में अपने सहयोगी तलाश रहे हैं।
जेएनयू से शुरू हुआ कथित राष्ट्रवाद का खेल एक दिन राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी को भी पाकिस्तानी क़रार देगा शायद ही किसी ने सोचा होगा? अब बीजेपी के एक नेता ने महात्मा गाँधी को पाकिस्तान का राष्ट्रपिता कह डाला।
अमित शाह ने 300 सीटों से ज़्यादा जीतने का दावा किया है। लेकिन पहले के चुनावों के आँकड़े तो तसवीर कुछ अलग ही पेश करते हैं। ये आँकड़े अमित शाह के दावे के विपरीत कहानी कहते हैं।
शरद पवार ने साफ़ तौर पर कहा है कि यदि राष्ट्रपति ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री पद की शपथ दिलवा भी दी तो वही हाल होगा जो 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी सरकार का हुआ था।
आज अनुकूल मौसम दिखाई पड़ रहा है, लेकिन तीसरे मोर्चे की नींव नहीं पड़ती दिख रही। इसमें सवाल यह उठ रहे हैं कि क्या तीसरा मोर्चा या फ़ेडरल फ़्रंट अब इस दौर की राजनीति में प्रासंगिक नहीं रहे?
महाराष्ट्र में क्या फिर मराठा आरक्षण का आन्दोलन भड़केगा? यह सवाल इसलिए क्योंकि मुंबई के आज़ाद मैदान में पिछले एक सप्ताह से मराठा आरक्षण के दायरे में आने वाले मेडिकल विद्यार्थी पिछले एक सप्ताह से आन्दोलन कर रहे हैं।
राष्ट्रवाद को अब एक समुदाय या धर्म विशेष के लोगों के ख़िलाफ़ ले जाने की कोशिश हो रही है। ऐसा करके कहीं हम पाकिस्तान की तरफ़ तो नहीं बढ़ रहे हैं।
देश के 50 प्रतिशत हिन्दू मतदाताओं का ध्रुवीकरण कर 50 साल तक सत्ता में बने रहने का अमित शाह और नरेंद्र मोदी का फ़ॉर्मूला कोई नया नहीं है। लेकिन क्या यह फ़ेल नहीं हो गया है?
बिना चुनाव लड़े राज ठाकरे की पार्टी को नोटिस भेज कर सभाओं के खर्च़ देने की माँग चुनाव आयोग ने की है। क्या चुनाव आयोग सत्ताधारी दल के दबाव में ऐसा कुछ कर रहा है?
लोकसभा चुनाव के नतीजे आये भी नहीं हैं, लेकिन महाराष्ट्र में अगले संघर्ष यानी विधानसभा चुनाव की बिसात बिछले लगी है। तो क्या सूखे का मुद्दा अब ज़ोर शोर से उठेगा?
गोविंद पानसरे और नरेंद्र दाभोलकर की हत्या की जाँच में देर होने पर अदालत ने जाँच एजंसियों को फटकार लगाई है। क्या हम लोकतंत्र के नाम पर भीड़तंत्र की ओर बढ़ रहे हैं?
एक दौर था जब मुख्य चुनाव आयुक्त टी एन शेषन ने चुनाव नहीं होने दिया था। एक आज का दौर है कि चुनाव आयोग को उसकी शक्तियों की याद सुप्रीम कोर्ट को दिलानी पड़ रही है।
धुले लोकसभा क्षेत्र के तहत आने वाले मुसलिम बहुल मालेगाँव सेंट्रल विधानसभा क्षेत्र में साध्वी प्रज्ञा का मामला प्रमुख मुद्दा बन गया है और दूसरे चुनावी मुद्दे दब गए हैं। इस क्षेत्र में क़रीब 17 फ़ीसदी वोटर मुसलिम हैं।
शहीद हेमंत करकरे पर बीजेपी और प्रज्ञा ठाकुर की स्थिति साँप-छछूंदर जैसी हो गयी है जो न तो निगलते बन रही है और न ही उगलते।
महाराष्ट्र के चुनावों में इस बार एक मुद्दा जोर-शोर से चर्चा में है और वह है प्रॉक्सी (परोक्ष) प्रचार का। इसको लेकर राज्य के मुख्य निर्वाचन अधिकारी तक को शिकायत कर इसे रुकवाने की माँग की गयी है।
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 23 अप्रैल को महाराष्ट्र में जिन 14 लोकसभा क्षेत्रों में मतदान होने जा रहे हैं वे बीजेपी-शिवसेना गठबंधन के लिए अग्नि परीक्षा साबित होने वाले हैं।