बिहार की राजनीति में एक बार फिर तूफान उठ खड़ा हुआ है। पूर्व उपमुख्यमंत्री और इंडिया गठबंधन के अघोषित मुख्यमंत्री पद के दावेदार तेजस्वी यादव ने रोजगार को लेकर ऐसा वादा किया है, जिसने एनडीए के तमाम दावों को हाशिए पर धकेल दिया है। तेजस्वी ने ऐलान किया कि उनकी सरकार बनने पर बिहार के हर परिवार को एक सरकारी नौकरी दी जाएगी। यह वादा न केवल बिहार की दुखती रग को छेड़ रहा है, बल्कि रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने की बहस को भी नयी धार दे सकता है। लेकिन सवाल यह भी है कि तेजस्वी का यह वादा हकीकत कैसे बन सकता है? क्या बिहार की मौजूदा आर्थिक स्थिति इसके लिए तैयार है? और क्या यह एनडीए के सांप्रदायिक ध्रुवीकरण और आर्थिक प्रलोभनों की रणनीति को पछाड़ देगा?

तेजस्वी का बड़ा दाँव

9 अक्टूबर 2025 को पटना में एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में तेजस्वी यादव ने बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के लिए बड़ा दाँव खेला। उन्होंने कहा, "महागठबंधन की सरकार बनने पर 20 दिनों में 'रोजगार गारंटी अधिनियम' पास करेंगे। पहली कैबिनेट बैठक में 10 लाख नौकरियां देने का फैसला होगा और 20 महीनों में हर उस परिवार को, जहां कोई सरकारी नौकरी में नहीं है, एक सदस्य को पक्की सरकारी नौकरी दी जाएगी।" तेजस्वी ने इसे "नौकरी का नवजागरण" करार दिया, जो सामाजिक न्याय के बाद आर्थिक न्याय का झंडा बुलंद करेगा।
तेजस्वी का दावा है कि उन्होंने इस वादे की गणित तैयार कर ली है। उन्होंने इसे JOB (जश्न ऑफ बिहार या जश्ने बिहार) बताया लेकिन उन्होंने इसका ब्लूप्रिंट साझा नहीं किया। उनका कहना है कि जेडीयू-बीजेपी उनकी योजनाओं की नकल कर लेते हैं। बिहार में लगभग 2.83 करोड़ परिवार हैं, जिनमें से अनुमानित 2.25 करोड़ परिवारों में कोई सरकारी नौकरी नहीं है। इतनी बड़ी संख्या में नौकरियां देना मौजूदा आर्थिक ढांचे में असंभव-सा लगता है, क्योंकि बिहार में कुल सरकारी नौकरियां 10-12 लाख हैं, और खाली पद 3 लाख से 4.72 लाख तक। फिर भी, तेजस्वी का यह वादा बिहार की जनता, खासकर युवाओं के बीच, उत्साह पैदा कर रहा है।

एनडीए का ट्रिपल एम

2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार की कुर्सी बाल-बाल बची थी। तेजस्वी के रोजगार अभियान ने युवाओं को संगठित किया था, जिसके दबाव में नीतीश 2022 में एनडीए छोड़कर महागठबंधन में शामिल हुए। तेजस्वी को उपमुख्यमंत्री बनाया गया, और उनके नेतृत्व में 5 लाख नौकरियां देने का दावा किया गया। लेकिन जनवरी 2024 में नीतीश ने फिर पलटी मारी और एनडीए में लौट गए, यह कहते हुए कि महागठबंधन में "चीजें ठीक नहीं चल रही थीं।"

एनडीए ने 2025 चुनाव से पहले आर्थिक प्रलोभनों का पिटारा खोला है, जिसे विपक्ष "रिश्वत" और समर्थक "मास्टरस्ट्रोक" कहते हैं। एनडीए की प्रमुख घोषणाएं:

  • महिला रोजगार योजना: 1.21 करोड़ महिलाओं को ₹10,000 की आर्थिक सहायता। 
  • बेरोजगारी भत्ता: ग्रेजुएट युवाओं को ₹1,000 प्रति माह (2 वर्ष तक)।
  • रोजगार का वादा: अगले 5 वर्षों में 1 करोड़ रोजगार (नौकरी और स्वरोजगार)।
एनडीए की रणनीति 'MMM' – मोदी, मंदिर, और महिला – पर टिकी है। लेकिन बिहार में सत्ता विरोधी भावना प्रबल है। नीतीश 20 साल से सत्ता में हैं, और उनकी सरकार की बदहाली की जिम्मेदारी से बचना मुश्किल है। बीजेपी भी इसकी सह-जिम्मेदार है, क्योंकि 17 साल तक उनका गठबंधन रहा।

बिहार की बदहाली

बिहार की आर्थिक और सामाजिक स्थिति निराशाजनक है। आइए, आंकड़ों पर नजर डालें:

  • गरीबी: बिहार देश का सबसे गरीब राज्य है। 33.76% आबादी गरीबी रेखा से नीचे (NITI Aayog MPI 2019-21)। हालाँकि 3.77 करोड़ लोग गरीबी से बाहर आए, फिर भी बिहार झारखंड और UP के साथ सबसे निचले पायदान पर है।
  • प्रति व्यक्ति आय: ₹66,828 (2023-24), जो राष्ट्रीय औसत ($2,200) से बहुत कम। बिहार 28 राज्यों में सबसे नीचे।
  • शिक्षा: साक्षरता दर 78-79% (2025 का अनुमान), लेकिन गुणवत्ता में कमी। SDG Index 2023-24 में स्कोर 32 (राष्ट्रीय औसत से नीचे)।
  • स्वास्थ्य: कुपोषण और शिशु और मातृ मृत्यु दर में अंतिम स्थान। SDG स्कोर 24-28।
  • पलायन: 7% आबादी (लगभग 75 लाख) पलायन कर चुकी। पुरुषों में 10.7% (ग्रामीण 5.9%, शहरी 22.5%)। रोजगार के लिए 49.6% पलायन।
  • बेरोजगारी: कुल बेरोजगारी दर 3-16% (ग्रामीण 2.6%, शहरी 7.3%)। युवा बेरोजगारी (15-29 वर्ष) 19.1-23.2%, राष्ट्रीय औसत (15.9%) से अधिक।
ये आंकड़े बिहार की बदहाली का सबूत हैं। नीतीश के 20 साल के "सुशासन" और बीजेपी के समर्थन के बावजूद बिहार SDG Index (संयुक्त राष्ट्र का सतत विकास लक्ष्य सूचकांक) में सबसे निचले पायदान पर है (स्कोर 57)।

महा-महास्टरस्ट्रोक या जुमला?

तेजस्वी का वादा बिहार की दुखती रग – बेरोजगारी – पर सीधा प्रहार है। सर्वे बताते हैं कि 40% युवा वोटर बेरोजगारी को सबसे बड़ा मुद्दा मानते हैं। बिहार में सरकारी नौकरियां 10-12 लाख हैं, और 3-4.72 लाख पद खाली। सवाल उठता है: सरकार ने इन पदों को क्यों नहीं भरा? तेजस्वी का दावा है कि उन्होंने उपमुख्यमंत्री रहते 5 लाख नौकरियां दीं। अब 2.25 करोड़ नई नौकरियां देने का वादा। लेकिन बिहार का बजट इसका 150 गुना खर्च नहीं झेल सकता। इसके लिए कुछ बड़ी योजना बनानी होगी जिसका खुलासा तेजस्वी फ़िलहाल नहीं कर रहे हैं।
ज़ाहिर है, विरोधियों ने इसे तुरंत खारिज किया। डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी ने कहा, "यह युवाओं को गुमराह करने का प्रयास है। बजट से परे।" प्रशांत किशोर (जनसुराज) ने तंज कसा, "मोदी 2 करोड़ नौकरी नहीं दे पाए, तेजस्वी 3 करोड़ कैसे देंगे? झूठ का पुलिंदा!" लेकिन तेजस्वी का जवाब है: "हमने सोच-समझकर वादा किया है।” लेकिन तेजस्वी बहस को रोज़गार के पिच पर लाने में सफल हुए हैं।

तेजस्वी का यह वादा एनडीए की 'MMM' रणनीति को चुनौती देता है। बिहार में सांप्रदायिक ध्रुवीकरण (मंदिर, आरक्षण) अक्सर चुनावी मुद्दा रहा है। लेकिन बेरोजगारी हर धर्म और जाति को प्रभावित करती है। तेजस्वी का ऐलान ध्रुवीकरण पर पानी फेर सकता है, क्योंकि यह शिक्षा, स्वास्थ्य और पलायन जैसे मुद्दों को भी जोड़ता है। यह वादा एनडीए की नाकामी को उजागर करता है – नीतीश और मोदी दोनों पर।

रोजगार बने मौलिक अधिकार!

तेजस्वी का 'रोजगार गारंटी अधिनियम' का प्रस्ताव MGNREGA जैसी कानूनी गारंटी की तरह है। यह रोजगार को मौलिक अधिकार बनाने की बहस को हवा देता है। अगर सूचना और भोजन की गारंटी के लिए कानून बन सकते हैं, तो रोजगार के लिए क्यों नहीं? भारत में 1% लोग 40% संपत्ति रखते हैं, जबकि 50% आबादी को GDP का सिर्फ 3% हिस्सा मिलता है। तेजस्वी का वादा इस असमानता को चुनौती देते हुए नये रास्ते की तलाश का आह्वान है।
यह सही है कि पहली नज़र में 2.25 करोड़ सरकारी नौकरियां देना असंभव सा लगता है। सरकारी नौकरियां बढ़ाने का मतलब सरकार का आकार बढ़ाना है, जो दशकों से चले आ रहे "मिनिमम गवर्नमेंट, मैक्सिमम गवर्नेंस" के नारे के खिलाफ है। निजीकरण के दौर में स्कूल और अस्पताल तक निजी हाथों में हैं। बिहार जैसे गरीब राज्य के लिए यह चुनौती और बड़ी है। लेकिन तेजस्वी का ऐलान इस सवाल को जन्म देता है: अगर मौजूदा व्यवस्था रोजगार नहीं दे पा रही, तो इसे बदलने में क्या दिक्कत है?

तेजस्वी का वादे की परख भविष्य में होगी लेकिन यह रोजगार, शिक्षा और पलायन को केंद्र में लाया है। एनडीए की आर्थिक सहायता योजनाएं (जैसे ₹10,000 महिलाओं को) रक्षात्मक लगती हैं। तेजस्वी का ऐलान समाज में सवाल उठाने की बेचैनी पैदा करेगा – और जवाब तलाशने की यह पहली शर्त है। बिहार का युवा अब तय करेगा कि उसे कैसी दिशा पसंद है।