चीन, पाकिस्तान और अफगानिस्तान के बीच बन रहे त्रिकोण ने भारत की सामरिक और कूटनीतिक चिंताओं को बढ़ा दिया है। चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारा (CPEC) पहले ही भारत के लिए चुनौती था और अब अफगानिस्तान भी इसमें शामिल हो गया है। यह ख़बर उस समय आयी है जब अमेरिका राष्ट्रपति ट्रंप के टैरिफ़ वार से मुक़ाबले को चीन और भारत के साझा मोर्चा की बात हो रही है। लेकिन CPEC के विस्तार ने बता दिया है कि भारत संप्रभुता के मुद्दे को हल्के में नहीं ले सकता।
ऑपरेशन सिंदूर के समय भारत को इजरायल और तालिबान शासित अफगानिस्तान का साथ ही मिला था। पाकिस्तान के ख़िलाफ़ अफ़ग़ानिस्तान का रुख़ भारत के सामरिक हित में था। भारत ने पहलगाम में हुए आतंकी हमले की निंदा के लिए अफगानिस्तान को धन्यवाद भी दिया था। मगर ऑपरेशन सिंदूर के खत्म होने के बाद अब चीन और पाकिस्तान ने एक नया दांव खेला है, जिसमें अफगानिस्तान भी शामिल हो गया है।
CPEC का विस्तार
21 मई 2025 को बीजिंग में एक अहम त्रिपक्षीय बैठक हुई, जिसमें चीन के विदेश मंत्री वांग यी, पाकिस्तान के उप-प्रधानमंत्री और विदेश मंत्री इशाक डार, और अफगानिस्तान के कार्यवाहक विदेश मंत्री मौलवी आमिर खान मुत्ताकी शामिल थे। इस बैठक में फैसला लिया गया कि CPEC को अफगानिस्तान तक विस्तारित किया जाएगा। यह निर्णय भारत के लिए एक बड़ी चुनौती है, क्योंकि CPEC न केवल आर्थिक परियोजना है, बल्कि भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता से जुड़ा मसला भी है।
BRI और CPEC क्या है?
CPEC को समझने से पहले हमें बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (BRI) को समझना होगा। BRI चीन की एक महत्वाकांक्षी परियोजना है, जिसकी शुरुआत 2013 में राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने की थी। इसका उद्देश्य एशिया, यूरोप और अफ्रीका को व्यापार, बुनियादी ढांचे और कनेक्टिविटी के जरिए जोड़ना है। BRI के दो मुख्य हिस्से हैं—सिल्क रोड आर्थिक बेल्ट (जमीन मार्ग) और 21वीं सदी का समुद्री सिल्क रोड (समुद्री मार्ग)। इसमें सड़कें, रेलवे, बंदरगाह, हवाई अड्डे और ऊर्जा परियोजनाएँ शामिल हैं, जिनमें 1 ट्रिलियन डॉलर से ज्यादा का निवेश हो सकता है।
CPEC इसी BRI का एक प्रमुख हिस्सा है। यह 60 अरब डॉलर की मेगा-इन्फ्रास्ट्रक्चर परियोजना है, जो पाकिस्तान के ग्वादर बंदरगाह को चीन के शिनजियांग प्रांत से जोड़ती है। 3,000 किलोमीटर लंबा यह गलियारा सड़कों, रेलवे, पाइपलाइनों और ऊर्जा परियोजनाओं का जाल है, जिसे सन 2030 तक पूरा करने का लक्ष्य है। लेकिन समस्या यह है कि CPEC का एक हिस्सा पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) और अक्साई चिन से होकर गुजरता है, जिन्हें भारत अपना अभिन्न हिस्सा मानता है।
PoK और अक्साई चिन का सवाल
पाक अधिकृत कश्मीर (PoK) 1947 के भारत-पाक युद्ध के बाद पाकिस्तान के नियंत्रण में चला गया, जिसे भारत अवैध कब्जा मानता है। भारतीय संसद का संकल्प है कि PoK को एक दिन भारत का हिस्सा बनाया जाएगा, यही कारण है कि जम्मू-कश्मीर विधानसभा में इसके लिए 24 सीटें आरक्षित हैं। दूसरी ओर, अक्साई चिन लद्दाख का हिस्सा है, जो वर्तमान में चीन के नियंत्रण में है। 1950 के दशक में चीन ने तिब्बत पर कब्जे के बाद अक्साई चिन में सड़कें बनाईं, जैसे शिनजियांग-तिब्बत राजमार्ग।
1963 में पाकिस्तान और चीन ने एक सीमा समझौता किया, जिसमें पाकिस्तान ने शक्सगाम घाटी को चीन को सौंप दिया। यह समझौता भारत के खिलाफ रणनीतिक गठजोड़ का हिस्सा था। भारत इन क्षेत्रों में किसी भी गतिविधि को वैध नहीं मानता, और CPEC का इन क्षेत्रों से गुजरना भारत की संप्रभुता का उल्लंघन है। यही कारण है कि भारत ने 2013 में BRI में शामिल होने से इनकार कर दिया, क्योंकि इसमें शामिल होना PoK और अक्साई चिन पर पाकिस्तान और चीन के दावों को स्वीकार करने जैसा होगा।
भारत का विरोध: जब अफगानिस्तान के CPEC में शामिल होने की बात सामने आयी, तो भारत ने इसका कड़ा विरोध किया। 24 जुलाई 2025 को राज्यसभा में विदेश राज्यमंत्री कीर्तिवर्धन सिंह ने भारत का रुख स्पष्ट किया। उन्होंने कहा कि CPEC भारत के केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर और लद्दाख के उन हिस्सों से होकर गुजरता है, जो पाकिस्तान के अवैध कब्जे में हैं। अफगानिस्तान का इसमें शामिल होना भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का उल्लंघन है। भारत ने सभी पक्षों से इस परियोजना को रोकने की मांग की है।
भारत के लिए चुनौतियाँ
अफगानिस्तान के CPEC में शामिल होने से भारत के सामने कई चुनौतियाँ खड़ी हो गई हैं:
रणनीतिक घेराबंदी: CPEC का अफगानिस्तान तक विस्तार होने से चीन और पाकिस्तान का क्षेत्रीय प्रभाव बढ़ेगा, जिससे भारत की सामरिक स्थिति कमजोर हो सकती है, खासकर मध्य एशिया में।
आर्थिक प्रभाव: CPEC अफगानिस्तान को वैकल्पिक व्यापार मार्ग देगा, जो भारत की चाबहार बंदरगाह परियोजना को कमजोर कर सकता है। इससे भारत की मध्य एशिया तक पहुंच प्रभावित होगी।
सैन्य चिंताएँ: भारत को डर है कि चीन CPEC की आड़ में अफगानिस्तान में सैन्य लॉजिस्टिक नेटवर्क स्थापित कर सकता है, जो भारत की सुरक्षा के लिए खतरा हो सकता है।
PoK पर दावे: अफगानिस्तान का CPEC में शामिल होना PoK पर पाकिस्तान के अवैध दावों को मजबूत कर सकता है, जो भारत के लिए अस्वीकार्य है।
भारत-चीन संबंध
CPEC को लेकर भारत का विरोध भारत-चीन संबंधों को प्रभावित कर सकता है। हाल के वर्षों में दोनों देशों के बीच तनाव कम करने की कोशिशें हुई हैं। ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन की भूमिका ने भारत में नाराजगी पैदा की थी। 4 जुलाई 2025 को FICCI के एक सेमिनार में लेफ्टिनेंट जनरल राहुल आर. सिंह ने खुलासा किया कि ऑपरेशन सिंदूर के दौरान चीन ने पाकिस्तान को सैटेलाइट और खुफिया जानकारी दी थी। पिछले पाँच सालों में पाकिस्तान के 81% सैन्य हार्डवेयर चीन से आए, जिससे यह ऑपरेशन चीन के लिए हथियारों के परीक्षण का मैदान बन गया। लेकिन आपरेशन सिंदूर के दौरान बिगड़े संबंधों को पटरी पर लाने की कोशिश हो रही है। शंघाई सहयोग संगठन (SCO) की हालिया बैठक के दौरान विदेश मंत्री जयशंकर और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग की मुलाकात इसका उदाहरण है।
कूटनीतिक चुनौती
2024 में भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार 127 अरब डॉलर तक पहुंचा था, हालाँकि भारत का व्यापार घाटा 99 अरब डॉलर था। आपरेशन सिंदूर के समय चीनी सामान के बहिष्कार का भी माहौल बना था लेकिन अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप की आक्रामक टैरिफ नीतियों ने स्थिति पर पुनर्विचार को मजबूर किया है। भारत चीन से संबंध सहज करने की कोशिश कर रहा है लेकिन अफगानिस्तान का CPEC में शामिल होना भारत के लिए झटका है। यह मसला भारत की संप्रभुता से जुड़ा है, जिसे नजरअंदाज करना मुश्किल है।
चीन-पाकिस्तान-अफगानिस्तान त्रिकोण और CPEC का विस्तार भारत के लिए एक जटिल कूटनीतिक और सामरिक चुनौती है। यह न केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता को चुनौती देता है, बल्कि मध्य एशिया में उसके आर्थिक और सामरिक हितों को भी प्रभावित करता है। भारत को इस स्थिति से निपटने के लिए सूझबूझ और कूटनीतिक कौशल की जरूरत है। आने वाले दिन यह तय करेंगे कि भारत का मौजूदा नेतृत्व इस चुनौती का सामना करने में कितना सफल हो पाया।