रूस-यूक्रेन युद्ध ने आधुनिक युद्ध की तस्वीर को पूरी तरह बदल दिया है। इस बदलाव का सबसे बड़ा कारण है ड्रोन तकनीक, जिसने न केवल युद्ध की रणनीति को नया रूप दिया, बल्कि विश्व शक्तियों के बीच तकनीकी होड़ को भी तेज कर दिया। यूक्रेन ने अपनी ड्रोन रणनीति से रूस जैसे महाबली देश को भारी नुक़सान पहुंचाया है, जिसने दुनिया को हैरान कर दिया। भारत-पाकिस्तान के हालिया सैन्य तनाव में भी इसका इस्तेमाल हुआ था।

ऑपरेशन स्पाइडर वेब

क्षेत्रफल के लिहाज से दुनिया का सबसे बड़ा देश रूस इस समय यूक्रेन के ड्रोन हमलों से कराह रहा है। दोनों देशों के बीच दस साल से तनाव चला आ रहा है, जो 2022 में पूर्ण युद्ध में बदल गया। मई 2025 में तुर्की के इस्तांबुल में शांति वार्ता हुई थी, और दुनिया को युद्ध रुकने की उम्मीद थी। लेकिन 1 जून 2025 को यूक्रेन ने "ऑपरेशन स्पाइडर वेब" के तहत रूस के पांच प्रमुख एयरबेस—बेलाया, ड्यागिलेवो, इवानोवो सेवरनी, ओलेन्या, और यूक्रेनका—पर ड्रोन हमले किए। इस हमले में रूस के 40 से ज्यादा स्ट्रैटेजिक बॉम्बर्स यानी बमवर्षक विमान  (जैसे Tu-95, Tu-22M, और A-50) नष्ट हो गए, जिससे रूस को 7 अरब डॉलर का नुक़सान हुआ और उसकी 34% क्रूज मिसाइल वाहक क्षमता प्रभावित हुई।
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यूक्रेन की सुरक्षा सेवा (SBU) ने 18 महीने की गुप्त योजना के तहत 117 FPV (फर्स्ट पर्सन व्यू) ड्रोन्स को लकड़ी के कंटेनरों और मोबाइल केबिनों में छिपाकर रूस में तस्करी की। हमले के समय इन कंटेनरों की छतें रिमोट से खोली गईं, और ड्रोन्स ने रूसी विमानों पर सटीक हमला किया। इस ऑपरेशन को यूक्रेनी राष्ट्रपति वोलोदिमिर ज़ेलेंस्की और SBU प्रमुख वासिल मालियुक ने व्यक्तिगत रूप से देखा। ज़ेलेंस्की ने एक्स पर लिखा, "दुश्मन की जमीन पर एक शानदार ऑपरेशन चलाया गया। इस हमले में सिर्फ रूस के सैन्य लक्ष्यों को निशाना बनाया गया, जिनका इस्तेमाल रूस ने यूक्रेन पर हमले के लिए किया था।"

यूक्रेन का दावा है कि इस हमले में 12 रूसी सैनिक मारे गए और 60 घायल हुए। हालाँकि रूस ने इन आंकड़ों की पुष्टि नहीं की, लेकिन नुक़सान की बात स्वीकारी है। यह ऑपरेशन न केवल यूक्रेन की तकनीकी क्षमता का प्रदर्शन है, बल्कि यह भी दिखाता है कि ड्रोन युद्ध में कितने प्रभावी हो सकते हैं।

ड्रोन क्यों पड़ा नाम?

ड्रोन, या अनमैन्ड एरियल व्हीकल (UAV), एक बिना पायलट का विमान है, जिसे रिमोट या सॉफ्टवेयर के जरिए नियंत्रित किया जाता है। ये छोटे ड्रोन्स से लेकर हथियारों से लैस सैन्य ड्रोन्स तक हो सकते हैं। 'ड्रोन' शब्द की उत्पत्ति 1930 के दशक से हुई, जब ब्रिटिश नौसेना ने 'Queen Bee' नामक मानवरहित विमान विकसित किया। इसकी उड़ान की आवाज मधुमक्खी की तरह थी, और मधुमक्खी के नर को अंग्रेजी में 'ड्रोन' कहते हैं। इसलिए, इस तकनीक का नाम ड्रोन पड़ गया।

आज ड्रोन युद्ध का रंग-ढंग पूरी तरह बदल चुके हैं। अब न तो आमने-सामने की लड़ाई की जरूरत है, न ही सैनिकों को जोखिम में डालने की। कंप्यूटर पर बैठकर ड्रोन उड़ाइए और सटीक हमला कीजिए। ड्रोन युद्ध को डिजिटल और हाई-टेक बना रहे हैं।
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ड्रोन युद्ध की विशेषताएँ

ड्रोन तकनीक ने युद्ध को कई मायनों में बदल दिया है। इसकी कुछ प्रमुख विशेषताएं हैं:
  • खुफिया और सटीकता: ड्रोन्स में हाई-डेफिनिशन कैमरे और सेंसर रियल-टाइम जानकारी देते हैं, जिससे निगरानी और सटीक हमले संभव हैं।
  • कम लागत, ज्यादा प्रभाव: ये लड़ाकू विमानों से सस्ते हैं, लेकिन भारी नुकसान पहुंचा सकते हैं।
  • जोखिम में कमी: चूंकि ड्रोन्स में पायलट नहीं होते, सैनिकों की जान सुरक्षित रहती है।
  • लंबी दूरी: यूक्रेन ने साइबेरिया जैसे दूर के लक्ष्यों पर हमला किया।
  • मनोवैज्ञानिक प्रभाव: ड्रोन हमले दुश्मन के मनोबल को तोड़ते हैं।

भारत-पाकिस्तान और ड्रोन

हालिया भारत-पाकिस्तान सैन्य तनाव में भी ड्रोन का इस्तेमाल देखा गया। ऑपरेशन सिंदूर में पाकिस्तान ने तुर्की के बने ड्रोन्स का उपयोग किया। जम्मू-कश्मीर में आतंकियों को हथियार पहुंचाने के लिए भी ड्रोन्स का सहारा लिया गया। 2021 में जम्मू एयरबेस पर ड्रोन हमला इसका उदाहरण है। 8-9 मई 2025 की रात को पाकिस्तान ने भारत के हवाई क्षेत्र में करीब 500 सस्ते ड्रोन्स का झुंड भेजा, जो लद्दाख से लेकर गुजरात के सर क्रीक तक देखे गए। 

विशेषज्ञों का मानना है कि इन ड्रोन्स का मकसद नुकसान पहुंचाने से ज्यादा भारत की वायु रक्षा प्रणाली, रडार कवरेज, और प्रतिक्रिया समय को परखना था।

हालांकि, भारत ने रक्षा अनुसंधान एवं विकास संगठन (DRDO) के एंटी-ड्रोन सिस्टम से कई पाकिस्तानी ड्रोन्स को मार गिराया। 2023-2025 के बीच भारत ने ड्रोन डिफेंस में अपनी श्रेष्ठता साबित की है।

ड्रोन तकनीक में अग्रणी देश

ड्रोन तकनीक में अमेरिका अग्रणी है, जिसके MQ-9 Reaper और Predator ड्रोन्स विश्व प्रसिद्ध हैं। तुर्की अपने Bayraktar TB2 के लिए जाना जाता है, जबकि चीन सस्ते ड्रोन्स (जैसे CH-4) में आगे है। इसराइल खुफिया ड्रोन्स (जैसे Heron) में माहिर है। भारत भी DRDO के रुस्तम और CATS Warrior जैसे ड्रोन्स के साथ इस क्षेत्र में तेजी से उभर रहा है।
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भारत के लिए सबक

ड्रोन अब युद्ध का सबसे अहम हथियार बन चुके हैं। युद्ध जीतने के लिए तकनीकी अनुसंधान और विकास में निवेश जरूरी है। इसके लिए स्कूलों से ही विज्ञान और तकनीक पर जोर देना होगा। भारत जैसे देश के लिए, जो तेजी से उभर रहा है, यह निवेश राष्ट्रीय सुरक्षा और वैश्विक मंच पर उसकी स्थिति को मजबूत करने के लिए अनिवार्य है।
ड्रोन तकनीक ने युद्ध के मैदान को डिजिटल और रणनीतिक बना दिया है। यूक्रेन ने रूस के खिलाफ इसका शानदार उपयोग किया, और भारत भी तकनीकी विकास और वैज्ञानिक शिक्षा पर ध्यान देकर भारत न केवल अपनी रक्षा क्षमता को मजबूत कर सकता है, बल्कि वैश्विक मंच पर एक तकनीकी महाशक्ति के रूप में उभर सकता है।