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क्या भारत के लिए ख़तरे की घंटी है बग़दादी का फिर जिंदा होना?

अबू बकर अल बग़दादी एक बार फिर ज़िंदा हो गया है। उसके मरने का एलान कई बार किया जा चुका है लेकिन वह हर बार ज़िंदा हो जाता है। श्रीलंका में हाल ही में ईस्टर संडे के मौक़े पर हुई भयानक आतंकवादी घटना के बाद उसका एक वीडियो सामने आया है। इसमें उसने वीडियो के जरिये यह बताने की कोशिश की है कि वह जिंदा है और यह भी जताने का प्रयास किया है कि इन धमाकों के पीछे इस्लामिक स्टेट (आईएस) का हाथ है। लेकिन चिंताजनक बात यह है कि इसके साथ ही इस खूंखार आतंकी संगठन का डर फिर से खड़ा हो गया है और इससे भारत को काफ़ी चौकन्ना रहने की ज़रूरत है। क्योंकि श्रीलंका में हुए धमाकों के तार तमिलनाडु और केरल से जुड़ने की ख़बर भी आ रही है। 

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संतोष की बात यह है कि अभी तक आईएस भारत के मुसलमानों को अपनी तरफ़ आकर्षित करने में नाकाम रहा है। पर क्या वह भविष्य में भी कामयाब नहीं होगा, इसका दावा नहीं किया जा सकता क्योंकि किसी ने नहीं सोचा था कि ख़त्म हो चुका यह संगठन श्रीलंका में इतने बड़े पैमाने पर खून-खराबा कर सकता है। 

आख़िर कौन है यह आतंकवादी संगठन इस्लामिक स्टेट? क्यों इसका नाम आते ही लोग काँप जाते हैं? क्या यह दुनिया के इतिहास का सबसे ख़तरनाक आतंकवादी संगठन है? क्या अब इसके निशाने पर भारत है? क्या यह भारत पर क़हर बरपाने की कोई ख़तरनाक योजना बना रहा है? क्या भारत में इसके दस लोगों का पकड़ा जाना एक बड़े ख़तरे की घंटी है? यह कोई मामूली बात नहीं है। अगर सुरक्षा एजेंसी एनआईए की बात पर भरोसा किया जाये तो फिर यह कहा जा सकता है कि देश बारूद के मुहाने पर बैठा हुआ है और कभी भी कोई बड़ा हादसा हो सकता है। भारत में पहली बार इतनी बड़ी संख्या में इस्लामिक संगठन के आतंकवादी पकड़े गए हैं।

अभी तक भारत इस बात पर गर्व करता था कि पूरी दुनिया से मुसलमान इस्लामिक स्टेट से प्रभावित होकर उसके सदस्य बने या उनके लिये ख़ून ख़राबा किया, लेकिन भारत में वह अपने मक़सद में कामयाब नहीं हो पाया। दुनिया में मुसलमानों की आबादी भारत में सबसे ज्यादा है पर इस्लामिक स्टेट से इक्का-दुक्का ही भारतीय मुसलमान जुड़े। जबकि इंग्लैंड और दूसरे यूरोपीय देशों में काफ़ी अधिक संख्या में मुसलमान युवा इस्लामिक स्टेट में शामिल हुए और आतंक का रास्ता पकड़ा। 
भारत से मुसलिम युवाओं का इस्लामिक स्टेट से न जुड़ने के बहुत से कारण हैं। सबसे बड़ा कारण तो यह है कि हिंदुस्तान का मुसलमान अपने आप को दुनिया के मुसलमानों की समस्याओं से जोड़ कर नहीं देखता और न ही भारत में उसे इसलाम ख़तरे में लगता है। वह जहनी तौर पर भी मध्य-पूर्व एशिया से काफ़ी अलग है। यहाँ का मुसलमान हिंदू संस्कृति से प्रभावित है। लेकिन इस आधार पर यह नहीं कहा जा सकता कि भविष्य में भी ऐसा नहीं होगा। पिछले कुछ सालों में इस आतंकवादी संगठन का आकर्षण बढ़ा है।
आईएस ख़ूँख़ार आतंकवादी संगठन है जो क्रूरतम हिंसा में यक़ीन रखता है। पहली बार उसके नाम से तब सनसनी फैली थी जब उसने मोसुल पर क़ब्ज़ा कर लिया था। आईएस ने सद्दाम हुसैन के गृह जनपद टिकरित को भी उसने अपने झंडे तले ले लिया। था।
पूरी दुनिया तब हक्की-बक्की रह गई थी। दुनिया को रोज़ ऐसे विडियो देखने को मिलने लगे थे जिसमें वे किसी इंसान को निहायत क्रूरता के साथ क़त्ल कर रहे होते थे। फिर चाहे पत्रकार हो या फिर कोई सिपाही। क्रूरता की सारी हदें पार कर ली थी। दुनिया यह सोच नहीं पा रही थी कि ऐसे भी संगठन हो सकते हैं। 
इज़राइली पत्रकार इताई आंजल के हिसाब से इस्लामिक स्टेट के आतंकवादी किसी इंसान का गला रेतने के लिये कम धार वाले चाकू का इस्तेमाल करते हैं ताकि मरने वाले की तकलीफ़ को ज़्यादा से ज़्यादा किया जा सके। इसे क्रूरता का प्रबंधन भी कहा जाता है।
  • आंजल का कहना है कि इस्लामिक स्टेट की पूरी रणनीति होती है कि जितना ज्यादा से ज्यादा तकलीफ़ को बढ़ाया जा सके उतना ही उनके ख़ौफ़ में इज़ाफा होगा। 

इस्लामिक स्टेट से अल क़ायदा अलग कैसे?

इस्लामिक स्टेट वैसे अमेरिका में 9/11 को अंजाम देने वाले आतंकवादी संगठन अल क़ायदा से ही निकला है। बिन लादेन के साथ अबू मुसाब जरकवी काम करता था। कुछ मामलों में उसकी राय बिन लादेन से नहीं मिलती थी। लादेन से उसका झगड़ा शिया मुसलमानों को लेकर हुआ। बिन लादेन का कहना था कि उसकी लड़ाई पश्चिमी देशों, ख़ासतौर से अमेरिका से है जो अपने हित के लिये इस्लाम को तबाह कर रहा है।

  • जरकवी का मानना था कि इसलाम को बचाने के लिये उन लोगों से भी लड़ना होगा जो इसलाम के असली रास्ते पर नहीं चलते। वह “तकफीर”  के सिद्धांत को मानता था जिसके मुताबिक़ जिनकी इसलाम में आस्था नहीं है उन्हें मारने की इजाज़त इसलाम देता है। वह मानता था कि इसलाम की बुरी गति इसलिये हुई क्योंकि वह पैग़म्बर मुहम्मद के बताये रास्ते से भटक गया।

ख़लीफ़ा का राज वापस लाने की तैयारी

जरकवी का कहना था कि इस्लामिक स्टेट बनना चाहिये जिसका प्रमुख ख़लीफ़ा हो और जहाँ शासन शरीयत के हिसाब से चले। वह मानता था कि जब तक ख़लीफ़ा का राज था तब तक इसलाम तरक़्क़ी करता गया। इसलिये एक बार फिर ख़लीफ़ा का राज लाया जाये और इसलाम की पुरानी हैसियत वापस लौटे। 2006 में जरकवी की मौत हो गई। उसके बाद अबू बकर अल बग़दादी इस्लामिक स्टेट का मुखिया बना। बगदादी भी 2010 में अल्लाह को प्यारा हो गया। उसकी जगह इब्राहिम अवाद इब्राहिम अली अल बदरी अल समाराई ख़लीफ़ा बना पर वह अबू अल बगदादी के नाम से ही काम करता रहा। उसका असली चेहरा उसके अपनों ने भी नहीं देखा था। वह भूत के नाम से भी जाना जाता था। यह वह सुरक्षा के वास्ते करता था।

आईएस का ख़लीफ़ा बन भी गया

बगदादी के बारे में यह प्रचलित है कि वह पैग़म्बर मुहम्मद के परिवार से संबंधित है। वह इस्लामिक मामलों का बड़ा जानकार भी माना जाता है। जून 2014 में मोसुल पर क़ब्ज़ा करने के बाद उसने ख़ुद को इस्लामिक स्टेट का ख़लीफ़ा घोषित कर दिया और यह ऐलान कर दिया कि जहाँ-जहाँ इस्लामिक स्टेट का कब्ज़ा है वहाँ-वहाँ शरीयत के हिसाब से शासन चलेगा। अल क़ायदा ने कभी भी किसी ज़मीन पर क़ब्ज़ा जमाने की कोशिश नहीं की। वह पश्चिम और दुश्मन देशों को अधिक से अधिक नुक़सान पहुँचाना चाहता था। 9/11 का हमला इसी मक़सद से किया गया था। 

  • इस्लामिक स्टेट इनसे अलग है। वह मानता है कि जो राज शरीयत के हिसाब से न चले उसे हिंसा के ज़रिये उखाड़ फेंक इस्लामिक राज्य की स्थापना करना उसका धार्मिक कर्तव्य है। इस्लामिक राज्य में सब कुछ इसलाम के अनुसार से ही होना चाहिये फिर चाहे वह स्कूल हो या अस्पताल या बैंक या रेस्टोरेंट या फिर बिज़नेस। इस राज्य में काफ़िरों के लिये कोई जगह नहीं है।

पढ़े-लिखे युवा भी नहीं बच सके

इस्लामिक स्टेट की सबसे बड़ी पहचान यह है कि इसने विचार के स्तर पर दुनिया भर के रैडिकल मुसलिम युवाओं को आकर्षित किया। यहाँ तक कि यूरोप के अति-आधुनिक माहौल में पले-बढ़े मुसलिम युवा भी अपना घर-देश छोड़ कर इराक़ पहुँच गए इस्लाम के लिये लड़ने। इस्लामिक स्टेट ने सिद्धान्त दिया कि जैसे हज़रत मुहम्मद ने हिज्र किया था, मक्का से मदीना गए वैसे ही इसलाम के लिये लोगों को हिज्र करना होगा। 

  • जो मुसलिम युवा अपना घर छोड़कर गए उन्हें यह लगा कि वह पैग़म्बर मुहम्मद के रास्ते पर चल रहे हैं। यह नया आकर्षण था। वे जेहाद करने के लिये निकले हैं। बगदादी कहता था कि इस्लामिक स्टेट के लिये हिज्र करना इसलाम की अनिवार्यता है यानी असली मुसलमान वही है जो हिज्र करता है। 
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आतंकी बनाने की आईएस की अजीब तरकीब

इस्लामिक स्टेट ने यह भी कहा कि जो लोग घर नहीं छोड़ कर आ सकते हैं वे जहाँ हैं वहीं पर जेहाद कर सकते हैं। इसके प्रवक्ता अबू अल अदनानी ने 21 सितंबर 2014 को एक बयान जारी किया। उसका कहना था, “आप जहाँ हैं जिस देश में हैं जो काफ़िरों का देश है, वहाँ के नागरिकों पर हमले करे। अगर आप के पास बम नहीं है तो चाकू से ही सिर काट दें, मोटरगाड़ी ऊपर चढ़ा दें, या फिर किसी ऊँची जगह से नीचे फेंक दें या ज़हर दे दें। यह सब जेहाद है।” उसका साफ़ कहना था कि जो जहाँ है, जैसा है, वहीं जान ले सकता है। इस बयान के बाद पूरे यूरोप में कई ऐसे हमले हुए। किसी ने लंदन में किसी पुलिस वाले का गला रेत दिया तो किसी ने भीड़ पर गाड़ी चढ़ा दी जैसा कि फ़्रांस में हुआ। इन घटनाओं ने पूरी दुनिया को हिला दिया। क्योंकि अब कोई सुरक्षित नहीं था। और कोई भी आतंकवादी हो सकता था।

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आशुतोष
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