नेपाल में 24 घंटों के भीतर एक ऐसी उथल-पुथल हुई जिसने सरकार को घुटनों पर ला दिया। सोशल मीडिया पर लगे बैन के खिलाफ भड़का जेनरेशन-Z का आक्रोश इतना तीव्र था कि गृहमंत्री रमेश लेखक और प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को इस्तीफा देना पड़ा। राजधानी काठमांडू समेत कई शहर हिंसा की चपेट में आये, जिसमें 21 युवाओं की जान चली गयी और क़रीब चार सौ घायल हैं। सरकार ने सोशल मीडिया पर पाबंदी हटा ली, लेकिन जनता का गुस्सा अभी शांत नहीं हुआ। श्रीलंका और बांग्लादेश के बाद नेपाल दक्षिण एशिया का तीसरा देश बन गया, जहाँ युवा आक्रोश ने देखते ही देखते सत्ता को बदल दिया।

भड़क उठा नेपाल

8 सितंबर 2025 को काठमांडू में एक अभूतपूर्व दृश्य देखने को मिला। स्कूल यूनिफॉर्म में युवा और जेन-ज़ी प्रदर्शनकारी सड़कों पर उतर आये। वे सोशल मीडिया बैन से इस कदर नाराज़ थे कि नेपाली संसद पर चढ़ गये। काठमांडू के अलावा बिरगंज, भैरहवा, और पोखरा जैसे शहरों में भी प्रदर्शन हिंसक हो गए। पुलिस ने पानी की बौछार, आंसू गैस, और रबर बुलेट्स का इस्तेमाल किया। कुछ जगहों पर गोलियाँ भी चलीं, जिसके नतीजे में 21 लोगों के मारे जाने की ख़बर है। नेशनल ट्रॉमा सेंटर के अनुसार, कई घायलों को सिर और सीने में गोली लगी। काठमांडू समेत कई शहरों में कर्फ्यू लागू है, और स्कूल बंद हैं।
सोशल मीडिया पर #NepoKid हैशटैग ट्रेंड कर रहा था, जिसमें नेताओं के बच्चों की लग्ज़री कारें, ब्रैंडेड कपड़े, महंगी घड़ियाँ, और विदेशी दौरों की तस्वीरें वायरल हो रही थीं। संदेश था कि आम जनता जीविका के लिए संघर्ष कर रही है, जबकि नेता ऐशोआराम में डूबे हैं। इस गुस्से ने आंदोलन को और भड़काया।

प्रधानमंत्री का इस्तीफ़ा

प्रदर्शनों की तीव्रता को देखते हुए नेपाल सरकार ने आपातकालीन कैबिनेट बैठक के बाद सोशल मीडिया पर लगे बैन को हटा लिया। संचार और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग ने ऐलान किया कि फेसबुक, व्हाट्सएप, यूट्यूब समेत 26 प्लेटफॉर्म्स पर प्रतिबंध खत्म कर दिया गया है। गृहमंत्री रमेश लेखक ने 19 मौतों की नैतिक जिम्मेदारी लेते हुए इस्तीफा दे दिया, और कहा, "आज के प्रदर्शन में भारी मानवीय क्षति हुई। मैं इसकी जिम्मेदारी लेता हूँ।"

लेकिन आंदोलन थमा नहीं। 9 सितंबर को प्रदर्शनकारियों ने राष्ट्रपति राम चंद्र पौडेल, पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल 'प्रचंड', और प्रौद्योगिकी मंत्री पृथ्वी सुब्बा गुरुंग के घरों पर हमले किए। 

आंदोलन इतना तीव्र हुआ कि अंततः प्रधानमंत्री के.पी. शर्मा ओली को भी इस्तीफा देना पड़ा। श्रीलंका (2022) और बांग्लादेश (2024) के बाद नेपाल दक्षिण एशिया का तीसरा देश बन गया, जहाँ युवा आक्रोश ने सरकार को बदल दिया।

बैन की वजह

नेपाल में बैन का कारण सुप्रीम कोर्ट के एक साल पुराने फैसले पर आधारित था, जिसमें सभी सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स को सरकारी नियमों के तहत रजिस्ट्रेशन करना अनिवार्य था। 28 अगस्त 2025 तक रजिस्ट्रेशन की समय सीमा थी, लेकिन फेसबुक, व्हाट्सएप, और यूट्यूब समेत 26 प्लेटफॉर्म्स ने इसका पालन नहीं किया। सरकार ने दावा किया कि यह बैन हेट स्पीच और फेक न्यूज़ रोकने के लिए था।

लेकिन जेन-ज़ी ने इसे अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता पर हमला माना। उनके लिए सोशल मीडिया न केवल संचार का साधन है, बल्कि रोज़गार और सामाजिक जागरूकता का भी ज़रिया है। नेपाल में पर्यटन उद्योग, जो अर्थव्यवस्था का एक बड़ा हिस्सा है, सोशल मीडिया पर निर्भर है। बैन ने न केवल व्यक्तिगत स्वतंत्रता, बल्कि आर्थिक अवसरों को भी प्रभावित किया। इसके साथ ही भ्रष्टाचार और बेरोज़गारी के मुद्दे जुड़ गए, और नारा गूँजा, "सोशल मीडिया पर नहीं, भ्रष्टाचार पर बैन लगाओ।”

जेन -जी: नई पीढ़ी की ताकत

जेन-ज़ी (1997-2012 में जन्मे) डिजिटल युग की पीढ़ी है, जिसके लिए स्मार्टफोन और सोशल मीडिया जीवन का अभिन्न हिस्सा हैं। नेपाल में 2.97 करोड़ की आबादी में 1.43 करोड़ फेसबुक और 36 लाख इंस्टाग्राम यूज़र्स हैं, जिनमें जेन-ज़ी का बड़ा हिस्सा है। हामी नेपाल जैसे समूहों ने प्रदर्शन का नेतृत्व किया, लेकिन आंदोलन मुख्य रूप से स्वतःस्फूर्त था। कुछ समूहों ने राजशाही और हिंदू राष्ट्र की माँग भी उठाई, जो मार्च 2025 में पूर्व राजा ज्ञानेंद्र शाह के समर्थन में हुए प्रदर्शनों से शुरू हुई थी।

जेन-जी के लिए सोशल मीडिया सिर्फ मनोरंजन नहीं, बल्कि उनकी पहचान, रचनात्मकता, और सामाजिक बदलाव का हथियार है। 

नेपाल का हाल

नेपाल की प्रति व्यक्ति आय 1,456 अमेरिकी डॉलर (2024) है, जो बांग्लादेश (2,688 डॉलर) और श्रीलंका (3,342 डॉलर) से कम है। ट्रांसपेरेंसी इंटरनेशनल 2024 की रिपोर्ट में नेपाल का भ्रष्टाचार सूचकांक स्कोर 34/100 है, और यह 180 देशों में 107वें स्थान पर है। 84% नेपाली भ्रष्टाचार को बड़ी समस्या मानते हैं। 2023 में महंगाई दर 7.1% थी, जो खाद्य और ईंधन की कीमतों के कारण बढ़ी। ये आर्थिक चुनौतियाँ और भ्रष्टाचार जनता के असंतोष की जड़ हैं।

के.पी. शर्मा ओली का सफ़र

के.पी. शर्मा ओली (जन्म: 1952, तेह्राथुम) कम्युनिस्ट पार्टी ऑफ नेपाल (CPN-UML) के अध्यक्ष हैं। उनकी राजनीतिक यात्रा 1966 में शुरू हुई:
  • 1970-1987: पंचायती शासन के खिलाफ आंदोलन, 14 साल जेल में रहे।
  • 1991-2008: झापा से सांसद, 1994-95 में गृह मंत्री, 2006-07 में उप-प्रधानमंत्री।
  • 2014: CPN-UML के अध्यक्ष बने।
  • प्रधानमंत्री कार्यकाल: चार बार - 2015-16, 2018-21, और 2024-25।
ओली ने राष्ट्रीयता और बुनियादी ढांचे पर जोर दिया, लेकिन भ्रष्टाचार और अधिनायकवादी शैली के आरोपों ने उनकी छवि को नुकसान पहुँचाया। 2025 के आंदोलन ने उनकी सरकार को उखाड़ फेंका।

दक्षिण एशिया में अस्थिरता

नेपाल की तरह, श्रीलंका और बांग्लादेश में भी हाल में जन आंदोलनों ने सत्ता बदली:

श्रीलंका (2022): आर्थिक संकट और अरागलया आंदोलन ने मई 2022 में महिंदा राजपक्षे और जुलाई 2022 में गोटबाया राजपक्षे को सत्ता से हटाया। सितंबर 2024 में अनुरा कुमारा दिसानायके राष्ट्रपति बने।

बांग्लादेश (2024): 5 अगस्त 2024 को छात्र आंदोलनों ने शेख हसीना को सत्ता छोड़ने पर मजबूर किया। मुहम्मद यूनुस के नेतृत्व में अंतरिम सरकार बनी।

तीनों देशों में भ्रष्टाचार, महंगाई, और आर्थिक असमानता ने जनता को सड़कों पर उतारा। नेपाल में सत्ता परिवर्तन श्रीलंका और बांग्लादेश की तर्ज पर हुआ, लेकिन राजशाही की वापसी की माँग कमजोर है।

नेपाल का इतिहास: सड़कों पर बदलाव

नेपाल में जन आंदोलनों का लंबा इतिहास है:
  • 1990: जन आंदोलन-I ने राजा बीरेंद्र को संवैधानिक राजतंत्र स्वीकार करने पर मजबूर किया।
  • 2006: जन आंदोलन-II ने राजा ज्ञानेंद्र को सत्ता छोड़ने और 2008 में राजशाही खत्म करने का रास्ता बनाया।
  • 1996-2006: माओवादी विद्रोह में 17,000 लोग मारे गए।
  • 2020 और 2025: संसद भंग करने और भ्रष्टाचार-सोशल मीडिया बैन के खिलाफ प्रदर्शन।
नेपाल की जनता ने बार-बार सड़कों पर उतरकर बदलाव लाया है।

सोशल मीडिया की ताक़त

नेपाल में 1.43 करोड़ फेसबुक और 36 लाख इंस्टाग्राम यूज़र्स हैं, जो कुल आबादी (2.97 करोड़) का 48.1% हैं। जेन-ज़ी के लिए सोशल मीडिया न केवल संचार, बल्कि रोज़गार, रचनात्मकता, और सामाजिक बदलाव का साधन है। टिकटॉक जैसे प्लेटफॉर्म्स ने आंदोलन को फैलाने में मदद की। सोशल मीडिया ने नेपाल में जनता को संगठित किया, लेकिन फेक न्यूज़ और हेट स्पीच जैसे मुद्दे भी चुनौतियाँ हैं। सवाल ये भी है कि सोशल मीडिया प्लेटफ़ार्म ने भारत में बने ऐसे ही क़ानून को आसानी से स्वीकार कर लिया तो नेपाल में ऐसा क्यों नहीं किया। ये प्लेटफ़ार्म अब बड़ी-बड़ी कॉरपोरेट कंपनियों से संचालित हैं और उनके अपने हित हैं।

बहरहाल जेन-ज़ी ने साबित कर दिया कि उनकी आवाज़ को दबाना आसान नहीं है। सोशल मीडिया बैन हटने और गृहमंत्री से लेकर प्रधानमंत्री तक के इस्तीफ़े ने उनकी ताकत दिखा दी है। लेकिन अतीत में कई देशों में सोशल मीडिया पर हुई क्रांति का नतीजा बहुत बेहतर नहीं निकला है। नेपाल में क्या तस्वीर बनेगी, इस पर सबकी नज़र रहेगी।