पूर्व प्रधानमंत्रियों को नीचा दिखाने के लिए बीजेपी ने एक अजब दावा किया है। बीजेपी आईटी सेल के चेयरमैन अमित मालवीय ने X पर पोस्ट किया है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 25 अंतरराष्ट्रीय सम्मान मिले, जबकि नेहरू, इंदिरा, और मनमोहन को मिलाकर कुल छह सम्मान ही मिले। यह बताता है कि भारत की विदेश नीति कमज़ोर नहीं हुई। लेकिन क्या सम्मान मिलना ही विदेश नीति की सफलता का पैमाना है? क्या जिन देशों ने मोदी को सम्मान दिया, उन्होंने उनकी किसी ऐसी नीति की तारीफ़ की, जो वैश्विक मिसाल बन सके? क्या मोदी ने कोई ऐसा सिद्धांत पेश किया, जो दुनिया के लिए रास्ता दिखाए, जैसा कि नेहरू जैसे स्वप्नदर्शी राजनेता ने दिया।
वैसे, विश्व पर छाप छोड़ने वाले नेता औपचारिक सम्मान के मोहताज नहीं होते। महात्मा गांधी ने अहिंसा और सत्याग्रह के ज़रिए न केवल भारत की आज़ादी की लड़ाई लड़ी, बल्कि विश्व मंच पर नैतिकता की मिसाल कायम की। उनकी नीतियों ने मार्टिन लूथर किंग जूनियर और नेल्सन मंडेला जैसे नेताओं को प्रेरित किया। गाँधी को 1937, 1938, 1939, 1947, और 1948 में पाँच बार नोबेल शांति पुरस्कार के लिए नामांकित किया गया, लेकिन उन्हें यह सम्मान नहीं मिला। उनकी सत्य और अहिंसा की रणनीति नोबेल चयन समिति के पारंपरिक ढांचे में फिट नहीं बैठती थी, और संभवतः ब्रिटिश सरकार को नाराज़ करने का डर भी एक कारण था।
लेकिन 1989 में, जब दलाई लामा को शांति पुरस्कार मिला तब नोबेल कमेटी ने कहा कि यह “महात्मा गाँधी की स्मृति को श्रद्धांजलि” है। 1999 में, नोबेल वेबसाइट पर छपे लेख “महात्मा गाँधी, द मिसिंग लॉरिएट” में कमेटी ने स्वीकार किया कि गाँधी को पुरस्कार न देना उनकी सबसे बड़ी चूक थी। 2006 में, नोबेल फाउंडेशन के निदेशक माइकल नोबेल ने कहा, “गाँधी को पुरस्कार न देना नोबेल इतिहास की सबसे बड़ी भूल थी।”
गाँधी की अहिंसा ने दुनिया को रास्ता दिखाया। लेकिन बीजेपी की कसौटी पर वे मोदी जी से मीलों पीछे होंगे क्योंकि क्योंकि उनके पास दिखाने को 25 विदेशी मेडल नहीं थे।
अब उन तीन प्रधानमंत्रियों की बात करते हैं, जिनकी उपलब्धियों पर बीजेपी पर्दा डालना चाहती है।
जवाहरलाल नेहरू
जवाहरलाल नेहरू ने गाँधी के अहिंसक दर्शन को विदेश नीति में ढाला। 1927 में ब्रुसेल्स के उपनिवेशवाद विरोधी सम्मेलन में उन्होंने भावी भारत की विदेश नीति का खाका खींचा:
भारत एक मजबूत, एकजुट राष्ट्र होगा, जो अपने पड़ोसियों के साथ घनिष्ठ संबंध रखेगा और विश्व मामलों में अहम भूमिका निभाएगा। जवाहर लाल नेहरू
भारत के पहले पीएम
1955 में बांडुंग सम्मेलन में नेहरू ने गुटनिरपेक्ष आंदोलन (NAM) की नींव रखी, जिसने भारत को तीसरी दुनिया का नेता बनाया। इस सम्मेलन के बाद नेहरू पूरी दुनिया में शांति के मसीहा के रूप में उभरे। भारत लौटे तो प्रोटोकॉल तोड़कर राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद हवाई अड्डे पर उनके स्वागत के लिए खड़े थे। राष्ट्रपति ने बिना किसी पूर्व सूचना या सिफ़ारिश के नेहरू जी को राष्ट्रपति की हैसियत से भारत रत्न देने का ऐलान किया।
दुनिया उस समय शीतयुद्ध में उलझी थी। तमाम देश अमेरिका और सोवियत संघ के ख़ेमे में बँटे थे लेकिन दोनों ही नेहरू जी और भारत का सम्मान करते थे। नेहरू को भूटान (1958) और यूएसएसआर (1960) से सर्वोच्च सम्मान मिले, लेकिन उनका असली सम्मान था भारत की नैतिक ताकत।
1962 के भारत-चीन युद्ध के बीच नेहरू ने संसद का विशेष सत्र बुलाकर विपक्ष की आलोचना का सामना किया। उनकी पंचशील नीति पर चीन ने धोखा दिया, लेकिन दुनिया ने चीन को आक्रामक माना। गोवा की मुक्ति (1961) में भी नेहरू की कूटनीति ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। पुर्तगाल के 451 साल के शासन को ऑपरेशन विजय (18-19 दिसंबर 1961) ने खत्म किया। नेहरू ने पहले कूटनीति, सत्याग्रह, और अंतरराष्ट्रीय दबाव का सहारा लिया, और जब यह विफल हुआ, तो न्यूनतम हिंसा के साथ सैन्य कार्रवाई की। विश्व जनमत ने इसे भारत की उपनिवेशवाद विरोधी जीत माना।
इंदिरा गाँधी
इंदिरा गाँधी ने नेहरू की गुटनिरपेक्षता को मज़बूत किया और 1971 के बांग्लादेश युद्ध में भारत की ताकत का लोहा मनवाया। पाकिस्तान ने ऑपरेशन सर्चलाइट (25 मार्च 1971) में बंगाली राष्ट्रवादियों पर अत्याचार किए, जिसमें 3 लाख से 30 लाख लोग मारे गए और 1 करोड़ शरणार्थी भारत आए। इंदिरा ने इस संकट को वैश्विक मंच पर उठाया। नवंबर 1971 में उनकी रिचर्ड निक्सन से मुलाकात हुई, जिन्होंने भारत को धमकाया और सातवाँ बेड़ा बंगाल की खाड़ी में भेजा। लेकिन इंदिरा ने इंडो-सोवियत संधि (9 अगस्त 1971) के ज़रिए सैन्य समर्थन हासिल किया और मुक्ति वाहिनी को हथियार दिए।
3 दिसंबर 1971 को पाकिस्तान के हमले के जवाब में भारत ने युद्ध शुरू किया। 13 दिन बाद, 16 दिसंबर को पाकिस्तानी सेना ने आत्मसमर्पण किया, और बांग्लादेश एक स्वतंत्र देश बना। इंदिरा ने इतिहास के साथ भूगोल भी बदल दिया था।
इंदिरा की कूटनीति ने यूके और फ्रांस को अमेरिका के खिलाफ लाकर यूएन में पाकिस्तान का समर्थन करने से रोका। अमेरिकी गैलप पोल (1971) ने इंदिरा को विश्व की सबसे प्रशंसित व्यक्ति चुना, और 2011 में बांग्लादेश ने उन्हें स्वाधीनता सम्मान दिया।
सिक्किम का विलय (1975) इंदिरा की एक और उपलब्धि थी। चोग्याल पल्डेन थोंडुप की स्वतंत्रता की माँग को नाकाम करते हुए, इंदिरा ने 14 अप्रैल 1975 को जनमत संग्रह कराया, जिसमें 97.5% लोगों ने भारत में विलय का समर्थन किया। 16 मई 1975 को सिक्किम भारत का 22वाँ राज्य बना। यह इंदिरा की रणनीतिक चतुराई थी, जिसने भारत की क्षेत्रीय सुरक्षा को मज़बूत किया।
मनमोहन सिंह
डॉ. मनमोहन सिंह (2004-2014) की विदेश नीति ने भारत को वैश्विक आर्थिक और रणनीतिक शक्ति बनाया। उनकी सबसे बड़ी उपलब्धि थी 2008 का भारत-अमेरिका परमाणु समझौता था, जिसने भारत को परमाणु अप्रसार संधि (NPT) पर हस्ताक्षर किए बिना परमाणु व्यापार की सुविधा दी। न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप (NSG) से छूट एक कूटनीतिक जीत थी।
2008 की वैश्विक मंदी में मनमोहन की नीतियों ने भारत को बचाया। GDP विकास दर 2008-09 में 6.7% रही, जब वैश्विक अर्थव्यवस्था डगमगा रही थी। G20 लंदन समिट (2009) में भारत ने वैश्विक वित्तीय सुधारों में योगदान दिया। ब्रिटिश पीएम गॉर्डन ब्राउन ने मनमोहन को “वैश्विक अर्थव्यवस्था का मितव्ययी मार्गदर्शक” कहा। वर्ल्ड बैंक के रॉबर्ट ज़ोएलिक ने कहा, “भारत की नीतियाँ मंदी से उबरने का मॉडल हैं।” टाइम मैगज़ीन ने 2009 में मनमोहन को विश्व के 100 सबसे प्रभावशाली व्यक्तियों में शामिल किया।
6 नवंबर 2010 को भारत आये अमेरिकी राष्ट्रपति बराक ओबामा ने नई दिल्ली में एक प्रेस कान्फ्रेंस में कहा:
“जब प्रधानमंत्री बोलते हैं, तो लोग सुनते हैं—न केवल भारत में, बल्कि पूरी दुनिया में।”
मनमोहन ने लुक ईस्ट पॉलिसी को मज़बूत किया, ASEAN, जापान, और दक्षिण कोरिया के साथ समझौते किए। उनकी नीतियों में संतुलन और आर्थिक कूटनीति थी।
मोदी की विदेश नीति: यात्राएँ, सम्मान, और सच्चाई
अमित मालवीय का दावा है कि मोदी की विदेश नीति बेहतर है, क्योंकि उन्हें 25 सम्मान मिले। लेकिन क्या सम्मान ही सब कुछ है? क्या मोदी ने कोई ऐसा सिद्धांत पेश किया, जो दुनिया को रास्ता दिखाए? 2014 से जुलाई 2025 तक मोदी ने 77 देशों की 90 यात्राएँ कीं, जिन पर लगभग 2,800 करोड़ रुपये खर्च हुए (RTI डेटा, 2023 और विदेश मंत्रालय, 2025 के अनुसार)। उनकी “हगप्लोमेसी” और गर्मजोशी भरे अंदाज़ की तारीफ़ होती है, लेकिन परिणाम क्या?
पहलगाम हमला (22 अप्रैल 2025) और ऑपरेशन सिंदूर (7-10 मई 2025) में भारत अकेला पड़ गया। इसराइल और अफ़ग़ानिस्तान को छोड़कर कोई बड़ा देश साथ नहीं था। चीन, तुर्की, और अजरबैजान ने पाकिस्तान का समर्थन किया। आईएमएफ ने पाकिस्तान को 7 अरब डॉलर का ऋण दिया, और 2025 में यूएन सिक्योरिटी काउंसिल की तालिबान सेंक्शन्स कमेटी का अध्यक्ष बनाया गया। जनरल असीम मुनीर को डोनाल्ड ट्रंप ने व्हाइट हाउस में भोजन के लिए बुलाया। ट्रंप ने बार-बार दावा किया कि उन्होंने व्यापार बंद करने की धमकी देकर युद्ध रुकवाया, जिसका पीएम मोदी ने व्यक्तिगत रूप से खंडन नहीं किया। यह भारत की कूटनीतिक नाकामी को दर्शाता है।
पड़ोसियों का हाल
मोदी राज में पड़ोसियों से संबंध ऐतिहासिक रूप से ख़राब हैं। नेपाल के साथ कालापानी को लेकर विवाद है। नेपाल का आरोप है कि भारत उसके आंतरिक मामलों में हस्तक्षेप करता है। वह सीधे चीन के पाले में है जो काठमांडू तक रेलमार्ग बना रहा है। उधर श्रीलंका ने भी हंबनटोटा पोर्ट चीन को 99 साल के लिए सौंप दिया है। बांग्लादेश में 2024 में शेख हसीना की सरकार गिरने के बाद मुहम्मद यूनुस की सरकार का चीन की ओर झुकाव है। मालदीव में ‘इंडिया आउट कैंपेन’ चला जो अभूतपूर्व घटना थी।
भारत कहाँ खड़ा है?
दुनिया भारत को सबसे बड़े लोकतंत्र के नाते कुछ अलग कसौटियों पर परखती है जिन पर स्थिति काफ़ी ख़राब हो चुकी है।
- लोकतंत्र: इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट फॉर डेमोक्रेसी ने 2021 में भारत को “इलेक्टोरल ऑटोक्रेसी” करार दिया।
- प्रेस फ्रीडम इंडेक्स: भारत 2016 में 133वें से 2023 में 161वें स्थान पर खिसक गया।
- ग्लोबल हंगर इंडेक्स: भारत 127 देशों में 105वें स्थान पर, “गंभीर” श्रेणी में, उत्तर कोरिया और सूडान से नीचे।
- धार्मिक असहिष्णुता: USCIRF 2025 ने भारत को विशेष चिंता का देश घोषित करने की सिफ़ारिश की।
- आर्थिक असमानता: वर्ल्ड इनइक्वलिटी रिपोर्ट 2022 के अनुसार, भारत में असमानता ब्रिटिश राज से भी बदतर है, जहाँ शीर्ष 1% लोग 80% संपत्ति नियंत्रित करते हैं।
- प्रति व्यक्ति आय: वर्ल्ड बैंक 2024 के अनुसार, भारत की प्रति व्यक्ति आय 2,730 डॉलर है, जो विश्व की दस बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में सबसे कम है। जापान की प्रति व्यक्ति आय भारत से 10 गुना ज़्यादा है।
80 करोड़ लोग पाँच किलो मुफ़्त राशन की लाइन में हैं, और सरकार इसे उपलब्धि बताती है। राशन के थैलों पर भी मोदी की तस्वीर चमकती है। क्या यह प्रगति है, या प्रचार का शोर?
अमित मालवीय का 25 सम्मानों का दावा सतही है। गाँधी ने अहिंसा से दुनिया को रास्ता दिखाया। नेहरू ने NAM और गोवा मुक्ति से भारत को नैतिक शक्ति बनाया। इंदिरा ने बांग्लादेश बनाकर और सिक्किम का विलय कर नक्शे में इज़ाफ़ा किया। मनमोहन ने परमाणु समझौते और मंदी में नेतृत्व से भारत का कद बढ़ाया। मोदी की 90 यात्राएँ और 2,800 करोड़ का खर्च भारत को पड़ोसियों से दूर ले गया। पाकिस्तान की वैश्विक हैसियत ऑपरेशन सिंदूर के बाद बढ़ी, जबकि भारत अलग-थलग पड़ा।
मोदी की तस्वीरें और मेडल प्रचार का हिस्सा हो सकते हैं, लेकिन दुनिया भारत को लोकतंत्र, भुखमरी, और असमानता के पैमानों पर परखती है जिन पर मोदी सरकार का रिकॉर्ड बेहद ख़राब है।