Assam NRC Controversy: असम ने नागरिकता सत्यापन प्रक्रिया यानी एनआरसी का हवाला देते हुए चुनाव आयोग से कुछ समय के लिए मतदाता सूची संशोधन (SIR) स्थगित करने का अनुरोध किया है। बिहार की तरह असम में भी लाखों वोटरों के नाम कटने की आशंका है।
असम में विदेशी नागरिक बताकर लोगों को पकड़ने का सिलसिला जारी है।
असम सरकार ने भारत के चुनाव आयोग (ईसीआई) पर एसआईआर प्रक्रिया तुरंत शुरू नहीं करने के लिए दबाव बना दिया है। उसने ईसीआई से कहा है कि वह राज्य में मतदाता सूची के विशेष गहन संशोधन (एसआईआर) को शुरू करने से पहले राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) को अंतिम रूप देने की प्रतीक्षा करे। असम ने तर्क दिया है कि वह एकमात्र ऐसा राज्य है, जहां पहले ही एनआरसी तैयार किया जा चुका है। इसलिए इसे मतदाता सूची संशोधन के लिए स्वीकार्य दस्तावेजों में शामिल किया जाना चाहिए।
यह अनुरोध तब आया है, जब बिहार में चल रहे मतदाता सूची संशोधन को विपक्षी दलों ने "बैकडोर एनआरसी" यानी एसआईआर की आड़ में एनआरसी लागू करने की कोशिश करार दिया है। एनआरसी चुनाव आयोग के अधिकार क्षेत्र से बाहर है। लेकिन बिहार में यही रास्ता चुनाव आयोग और केंद्र सरकार ने चुना है।
असम का अनुरोध और एनआरसी की स्थिति
असम सरकार के सूत्रों के अनुसार, राज्य ने चुनाव आयोग को सुझाव दिया है कि नागरिकता सत्यापन यानी एनआरसी, जो सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में की गई है, उसे मतदाता सूची संशोधन के लिए एक स्वीकार्य दस्तावेज के रूप में माना जाए। एक सूत्र ने कहा, “एनआरसी जल्द ही जारी होने वाला है, शायद अक्टूबर तक। यह सत्यापन के बाद तैयार किया गया है और इसका इस्तेमाल नागरिकता साबित करने के लिए किया जा सकता है।”
हालांकि, 2019 में प्रकाशित एनआरसी की ड्राफ्ट सूची, जिसमें 3.3 करोड़ आवेदकों में से 19.6 लाख लोगों को बाहर रखा गया था, अभी तक रजिस्ट्रार जनरल ऑफ इंडिया (आरजीआई) ने नोटिफाई नहीं किया है। बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र और राज्य सरकारें इसे वर्तमान रूप में स्वीकार करने को तैयार नहीं हैं, क्योंकि उनका मानना है कि मौजूदा वाले ड्राफ्ट एनआरसी में कई कमियां हैं, जिसमें स्वदेशी लोगों को बाहर रखा गया और अवैध प्रवासियों को शामिल किया गया।
बिहार में विवाद और असम की चिंता
चुनाव आयोग ने पिछले महीने बिहार से शुरू होने वाली देशव्यापी मतदाता सूची संशोधन की घोषणा की थी। बिहार में यह प्रक्रिया विवादास्पद हो गई है, क्योंकि विपक्षी दलों ने इसे "बैकडोर एनआरसी" लागू करने की कोशिश बताया है। आयोग ने बिहार में 2003 के बाद पंजीकृत मतदाताओं से अपनी पात्रता, विशेष रूप से आयु और नागरिकता, साबित करने के लिए दस्तावेज जमा करने को कहा है। इसने असम में भी चिंता पैदा की है। वहां एनआरसी प्रक्रिया पहले से ही विवादास्पद है। जिसके तहत लाखों लोगों की नागरिकता छीनने की तैयारी है। असम सरकार अब ईसीआई पर दबाव बना रही है कि उसकी एनआरसी सूची को ही अपनी मतदाता सूची बना ले। चूंकि असम की एनआरसी अभी नोटिफाई नहीं हुई है इसलिए आयोग से रुकने को कहा है। विपक्ष का आरोप है कि असम की एनआरसी में बड़ी संख्या में अल्पसंख्यक समुदायों और आदिवासियों को निशाना बनाकर उन्हें विदेशी नागरिक घोषित कर दिया है। विदेशी नागरिक को वैसे भी मतदान का अधिकार नहीं होगा।
आलोचनाएं और सुप्रीम कोर्ट का रुख
असम के मुख्यमंत्री हिमंत बिस्वा सरमा ने एनआरसी की खामियों को बार-बार उजागर किया है, उनका दावा है कि इसमें 19 लाख लोगों की संख्या बहुत कम है और इसमें स्वदेशी लोगों को गलत तरीके से बाहर रखा गया है। सुप्रीम कोर्ट ने 2019 में एनआरसी की 27% पुनः सत्यापन की मांग को खारिज कर दिया था, लेकिन असम सरकार और कुछ संगठन इसकी पूर्ण पुनः सत्यापन की मांग कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट ने हाल ही में बिहार में मतदाता सूची संशोधन पर रोक लगाने से इनकार कर दिया, लेकिन सुझाव दिया कि आधार, मतदाता पहचान पत्र और राशन कार्ड जैसे दस्तावेजों को भी शामिल किया जाए।
सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव
असम में एनआरसी का मुद्दा दशकों से अवैध प्रवास को लेकर चली आ रही सामाजिक और राजनीतिक उथल-पुथल का हिस्सा रहा है। 1971 के बाद अवैध रूप से प्रवेश करने वालों को बाहर करने की मांग असम आंदोलन (1979-1985) का मुख्य लक्ष्य था, जिसके परिणामस्वरूप 1985 में असम समझौता हुआ। एनआरसी को लागू करने की मांग करने वाले संगठन, जैसे असम पब्लिक वर्क्स (एपीडब्ल्यू), अब इसकी पुनः सत्यापन की मांग कर रहे हैं, जबकि विपक्षी दल इसे धार्मिक अल्पसंख्यकों और हाशिए पर पड़े समुदायों के खिलाफ भेदभावपूर्ण मानते हैं।
एनआरसी क्या है
राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) भारत में नागरिकता सत्यापन के लिए एक प्रक्रिया है, जिसका उद्देश्य देश के वैध नागरिकों की सूची तैयार करना और अवैध प्रवासियों की पहचान करना है। यह प्रक्रिया विशेष रूप से असम में लागू की गई है, जहां अवैध प्रवास, खासकर बांग्लादेश से, दशकों से एक संवेदनशील मुद्दा रहा है। एनआरसी की प्रक्रिया सुप्रीम कोर्ट की निगरानी में संचालित की गई है, और यह असम समझौते (1985) और नागरिकता अधिनियम, 1955 की धारा 6ए के तहत लागू की गई है।
एनआरसी का मुख्य लक्ष्य असम में उन लोगों की पहचान करना है, जो 24 मार्च 1971 से पहले भारत में रह रहे थे या उनके पूर्वज उस समय भारत में थे। यह तारीख असम समझौते के आधार पर तय की गई थी, जिसके अनुसार 25 मार्च 1971 के बाद भारत में प्रवेश करने वाले विदेशी नागरिकों को अवैध माना जाता है। एनआरसी का उद्देश्य वैध नागरिकों को एक रजिस्टर में शामिल करना और अवैध प्रवासियों को बाहर करना है।
सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर, असम में एनआरसी प्रक्रिया 2015 में शुरू हुई। सभी निवासियों को अपने और अपने परिवार के लिए आवेदन पत्र जमा करने के लिए कहा गया। हर व्यक्ति को यह साबित करना था कि वे या उनके पूर्वज 24 मार्च 1971 से पहले असम में रह रहे थे। इसके लिए दो दस्तावेज मांगे गए।
लिस्ट A में 1951 का एनआरसी, 1971 तक की मतदाता सूची, या अन्य दस्तावेज जैसे जन्म प्रमाण पत्र, भूमि रिकॉर्ड, या शैक्षिक प्रमाण पत्र शामिल थे। लिस्ट B: यह उन लोगों के लिए था, जो 1971 के बाद पैदा हुए थे और अपने माता-पिता या पूर्वजों के दस्तावेजों के आधार पर नागरिकता साबित करना चाहते थे।
एनआरसी प्रक्रिया असम में अवैध प्रवास के मुद्दे को हल करने का एक प्रयास है, लेकिन इसकी जटिलता, त्रुटियों की आशंका, और सामाजिक-राजनीतिक प्रभावों ने इसे विवादास्पद बना दिया है। यह प्रक्रिया न केवल नागरिकता सत्यापन से संबंधित है, बल्कि असम की सामाजिक और सांस्कृतिक पहचान को भी प्रभावित करती है। एनआरसी का अंतिम प्रकाशन और इसके आधार पर मतदाता सूची संशोधन भविष्य में असम की राजनीति और सामाजिक ढांचे को प्रभावित कर सकता है।
बहरहाल, असम सरकार का ताजा अनुरोध मतदाता सूची संशोधन में देरी का कारण बन सकता है, क्योंकि एनआरसी अभी तक नोटिफाई नहीं हुआ है। इस बीच, बिहार में चल रही प्रक्रिया ने पहले ही राजनीतिक विवाद को जन्म दे दिया है, और असम में भी यही स्थिति पैदा हो सकती है। सरकार और नागरिक संगठनों की नजर अब इस बात पर है कि चुनाव आयोग असम के अनुरोध पर क्या फैसला लेता है।