बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को शनिवार को उस समय बड़ा झटका लगा जब उनकी पार्टी जनता दल यूनाइटेड के दो बार विधायक रहे मास्टर मुजाहिद आलम ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया। मास्टर मुजाहिद ने सैकड़ों कार्यकर्ताओ के साथ जदयू से नाता तोड़ने की घोषणा की। वक़्फ़ क़ानून के ख़िलाफ़ सुप्रीम कोर्ट में इन्होंने भी याचिका दायर कर रखी है। 


मास्टर मुजाहिद पहले से वक़्फ़ बिल के मुद्दे पर पार्टी के निर्णय का विरोध कर रहे थे और लंबे समय से पार्टी से दूरी बनाए हुए थे। उन्हें सीमांचल में जदयू का सबसे बड़ा चेहरा माना जाता था और वह किशनगंज जदयू के जिला अध्यक्ष भी थे। इस पद पर उन्हें तीसरी बार नामित किया गया था। मास्टर मुजाहिद आलम 2024 में किशनगंज से जदयू के लोकसभा उम्मीदवार भी थे।

मास्टर मुजाहिद आलम की नाराज़गी का अंदाज़ा उस वक़्त भी हो गया था जब जदयू ने मुस्लिम नेताओं की प्रेस कॉन्फ्रेंस की थी और उसमें उनका नाम रहते हुए वह उसमें शामिल नहीं हुए थे। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में जदयू के बड़े मुस्लिम नेताओं ने वक़्फ़ बिल पर पार्टी के स्टैंड को सही साबित करने के लिए अपने तर्क दिए थे। तब कई लोगों की राय यह थी कि पार्टी के इस स्टैंड से असहमत होते हुए भी उन्हें मजबूरी में उसके समर्थन में दलील देने पड़ी थी। उस प्रेस कॉन्फ्रेंस में उन नेताओं ने संवाददाताओं के किसी सवाल का जवाब नहीं दिया था। 

मास्टर मुजाहिद आलम ने सितंबर 2010 में शिक्षक की नौकरी से इस्तीफ़ा देकर जनता दल यूनाइटेड ज्वाइन किया था और पार्टी में 15 साल तक वरिष्ठ पदों पर रहे। शिक्षक की नौकरी में रहने की वजह से उनके नाम के आगे मास्टर भी लगा हुआ है। समझा जाता था कि सीमांचल में एआईएमआईएम को टक्कर देने में मास्टर मुजाहिद आलम जदयू के सबसे बड़े नेता साबित होंगे लेकिन वक़्फ़ बिल एक ऐसा मुद्दा बन गया जिससे नाराज़ होकर उन्होंने पार्टी से त्यागपत्र दे दिया। 

मास्टर मुजाहिद ने त्यागपत्र देने के लिए आयोजित प्रेस कॉन्फ्रेंस में नीतीश कुमार के सेक्यूलर होने के सवाल पर कहा कि मुसलमानों का दिल टूटा है। उन्होंने वक़्फ़ बिल के समर्थन को मुसलमानों के साथ विश्वासघात माना।

उन्होंने कहा कि उन्होंने शुरू से वक़्फ़ संशोधन बिल का विरोध किया था और आगे भी जारी रखेंगे। उन्होंने वक़्फ़ क़ानून के कई बिंदुओं को ग़लत बताते हुए उसका विरोध किया। उन्होंने अपने त्यागपत्र में कहा है कि वक़्फ़ बिल के मुद्दे जदयू के नेताओं के साथ हुई बैठक में यह आश्वासन दिया गया था कि वक़्फ़ संशोधन बिल में कुछ भी असंवैधानिक और अल्पसंख्यक विरोधी बात नहीं होगी लेकिन जब बिल पास हुआ तो यह आश्वासन ग़लत साबित हुआ।

उन्होंने गृह मंत्री अमित शाह पर सदन में झूठ बोलने का आरोप लगाया। उनका कहना था कि अमित शाह ने कहा था कि इस वक़्फ़ में कोई ग़ैर मुस्लिम समुदाय के लोग नहीं होंगे लेकिन जब बिल पास हुआ तो दो ग़ैर मुस्लिम सदस्य का प्रवाधान बिल में पाया गया। उन्होंने अमित शाह पर सदन में झूठ बोल कर लोगों को गुमराह करने का आरोप लगाया। उन्होंने अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री किरेन रिजिजू पर भी सदन को गुमराह करने का आरोप लगाया।

मास्टर मुजाहिद आलम ने अभी यह घोषणा नहीं की कि वह अब किस पार्टी में जाएंगे लेकिन जाहिर है अभी वह राजनीति में सक्रिय रहेंगे। हालांकि वह इस मुद्दे पर इतने भावुक हो गए और प्रेस कॉन्फ्रेंस में रो पड़े। इस साल ईद के वक़्त जन सुराज पार्टी के मुखिया प्रशांत किशोर मास्टर मुजाहिद से मिलने उनके गांव गए थे। उस समय उन्होंने कहा था कि प्रशांत किशोर कॉलेज में उनके जूनियर रहे हैं। इस वजह से कुछ राजनीतिक विश्लेषकों को यह लगता है कि मास्टर मुजाहिद प्रशांत किशोर की पार्टी ज्वाइन कर सकते हैं। 


दूसरी तरफ़ एआईएमआईएम के प्रदेश अध्यक्ष अख्तर ईमान के हवाले से कहा गया है कि मास्टर मुजाहिद आलम का एआईएमआईएम में खुले दिल से स्वागत है। हालांकि दोनों किशनगंज लोकसभा सीट पर एक दूसरे के ख़िलाफ़ चुनाव लड़ चुके हैं। अब मास्टर मुजाहिद चाहे जिस पार्टी को ज्वाइन करें उनके इस्तीफ़ा का असर केवल सीमांचल में नहीं बल्कि पूरे बिहार में पड़ सकता है। एक ऐसे समय पर जबकि नीतीश कुमार की लोकप्रियता बिहार में कम हो रही है इस इस्तीफे से मुस्लिम समुदाय में और ग़लत संदेश जाने की संभावना बताई जा रही है।


वैसे से तो वक़्फ़ के मुद्दे पर पहले भी कई मुस्लिम नेताओं ने जदयू से इस्तीफ़ा दे दिया था लेकिन मास्टर मुजाहिद आलम का इस्तीफ़ा नीतीश कुमार के लिए बहुत बड़ा झटका माना जा रहा है। इसे इस बात से भी समझा जा सकता है कि उनके इस्तीफ़े के बाद उनके समर्थकों ने नीतीश कुमार के ख़िलाफ़ खूब नारे लगाए। 'नीतीश तेरी तानाशाही, नहीं चलेगी-नहीं चलेगी' और 'काला कानून वापस लो' के साथ-साथ नीतीश कुमार और चंद्रबाबू नायडू मुर्दाबाद के नारे भी लगे।