loader

अमिताभ बच्चन: आवाज़ के जादूगर ने किया जब गूंगे का रोल

सिनेमा जगत में पचास साल का वक्त पूरा कर चुके अमिताभ बच्चन का आज 80वां जन्मदिन है। उनकी पहली फ़िल्म ‘सात हिंदुस्तानी’ अक्टूबर 1969 में रिलीज़ हुई थी। 'सात हिन्दुस्तानी' के रिलाज होते वक्त शायद उन्हें भी एहसास नहीं रहा होगा कि जिस सल्तनत में वह दाख़िल हुए हैं, एक दिन वहां के शहंशाह बनेंगे और उनकी हुकूमत इतनी लंबी चलेगी। लेकिन इसे ना तो किस्मत कह सकते हैं और ना ही चमत्कार। यह तो खालिस अमिताभ बच्चन की लगन और व्यक्तित्व का नतीजा है। 
इस शहंशाह की पचास साल की हुकूमत के दौरान फ़्लॉप, हिट, सुपर हिट, मेगा हिट फिर फ़्लॉप और उसके बाद फिर हिट जैसे उतार-चढ़ाव आते रहे, ज़माना बदलता रहा, वक्त चलता रहा और अमिताभ ख़ुद को लगातार विकसित करते रहे एक अभिनेता के तौर पर भी और एक इंसान की हैसियत से भी।

'सात हिन्दुस्तानी' ब्लैक एंड व्हाइट फ़िल्म थी। अमिताभ के करियर में सिर्फ़ यही एक फ़िल्म ब्लैक एंड व्हाइट है। अमिताभ ने पहली फ़िल्म से ही दिखा दिया कि ईमानदारी और लगन से काम करना किसे कहते हैं। इस फ़िल्म की शूटिंग गोवा में चल रही थी। कलाकारों का मेकअप करने वाले आर्टिंस्ट पंढारी ने अमिताभ को उनके रोल के मुताबिक दाढ़ी लगाई थी। अचानक पंढ़ारी को किसी ज़रूरी काम से 7 दिन के लिए अपने घर मुंबई जाना पड़ा। 

ताज़ा ख़बरें

पंढारी के मुताबिक़, उन्होंने अमिताभ से पूछा था कि अब तुम क्या करोगे, क्योंकि मैं तो गोवा में नहीं रहूंगा। अमिताभ ने जवाब दिया कि वह इस मेकअप को संभाल कर रखेंगे और जब पंढारी लौट कर आए तो उन्हें यह जानकार बहुत हैरत हुई कि पूरे 6 दिन अमिताभ चेहरे के नीचे पानी डालकर नहाते थे और अपने उसी लुक के साथ उन्होंने 6 दिन बिना मुँह धोए शूटिंग की। 

'सात हिन्दुस्तानी' को उस वर्ष राष्ट्रीय एकता पर बनी सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला। साथ ही इस फ़िल्म के गीतों के लिए गीतकार कैफ़ी आज़मी को भी राष्ट्रीय पुरस्कार मिला था। लेकिन सच तो यह है कि ‘सात हिंदुस्तानी’ आज अगर याद की जाती है तो सिर्फ़ इसलिये कि इसमें अमिताभ बच्चन ने काम किया था। 

उसी साल अमिताभ की आवाज़ से सजी एक और फ़िल्म भी आयी जिसे कम ही लोग याद करते हैं। फ़िल्म का नाम था ‘भुवन शोम’। हां इस फ़िल्म में अमिताभ पर्दे पर नहीं थे। लेकिन फ़िल्म के निर्देशक मृणाल सेन उनकी आवाज़ से इतने प्रभावित हुए थे कि उन्होंने ‘भुवन शोम’ में अमिताभ की आवाज़ का प्रयोग सूत्रधार के रूप में किया। अमिताभ की आवाज़ ने आगे चल कर तो फ़िल्मों में कयामत ढा दी।

अंदाज़ लगाइये जिस शख़्स की आवाज़ बेहद असरदार हो उसे पर्दे पर गूंगा किरदार निभाने को कहा जाए तो वह क्या सोचेगा।

अमिताभ बच्चन को 'सात हिन्दुस्तानी' के बाद सुनील दत्त ने 'रेशमा और शेरा' में लिया तो उसमें अपने गूंगे भाई छोटू की एक छोटी सी भूमिका दी। उनके सामने सोचने का मौक़ा नहीं था, कुछ कर दिखाने का मौक़ा था और अमिताभ ने कर दिखाया। लेकिन ‘रेशमा और शेरा’ कोई चमत्कारिक फ़िल्म नहीं थी। इसलिये अमिताभ की अदाकारी के भी चर्चे नहीं हो सके।

फिर किस्मत ने लगातार ठोकरें मारनी शुरू कीं। ‘परवाना’, ‘प्यार की कहानी’, ‘संजोग’ (1971), ‘बंसी बिरजू’, ‘एक नजर’, ‘रास्ते का पत्थर’ (1972), ‘बंधे हाथ’, ‘सौदागर’, ‘गहरी चाल’ (1973) सहित लगातार फ़्लॉप फ़िल्में अमिताभ के खाते में दर्ज होती गयीं। इस दौरान आनन्द और बॉम्बे टू गोवा ने अमिताभ को थोड़ा सहारा ज़रूर दिया। लेकिन फ़िल्मों में टिके रहने के लिये इतना काफ़ी नहीं था।

Megastar Amitabh Bachchan most influential star named Dada Saheb Phalke winner - Satya Hindi

फिर एक दिन हिंदी सिनेमा और अमिताभ बच्चन दोनों के खाते में एक फ़िल्म आयी ‘जंजीर’ (1973)। इस फ़िल्म ने एक नए नायक को जन्म दिया। पत्थर की तरह सख्त, कम बोलने वाला, सर्द लहजा और गुस्से से भरा हुआ। इसके बाद तो ‘दीवार’, ‘हेराफेरी’, ‘मजबूर’, ‘शोले’, ‘रोटी कपड़ा और मकान’, ‘अदालत’, ‘कालिया’, ‘परवरिश’, ‘अमर अकबर एंथनी’, ‘मुकद्दर का सिकंदर’, ‘शराबी’, ‘नमक हलाल’, ‘शक्ति’, ‘शहंशाह’ और ‘अग्निपथ’ जैसी महीनों और सालों तक धूम मचाने फ़िल्मों की कतार बनती चली गयी। 

इस कतार में ‘अभिमान’, ‘नमक हराम’, ‘कभी कभी’, ‘सिलसिला’, ‘मिली’, ‘चुपके चुपके’ जैसी फ़िल्में भी शामिल हो गयीं जिनके जरिये अमिताभ कुछ अलग करके दिखाना चाह रहे थे। मगर लोगों को उनकी एक ही छवि रास आ रही थी यानी एंग्री यंग मैन।

अमिताभ का एक्शन, उनकी कॉमिक टाइमिंग, उनकी आवाज़, उनकी बॉडी लैंग्वेज। ये सारी विषेषताएं अपनी जगह थीं लेकिन इन सबसे बड़ी उनकी विशेषता रही उनकी सोच। विपरीत हालात में भी धैर्य रखना, सुपर हिट के शोर में ज़मीन पर पैर टिकाए रहना और विवादों का सामना संयम से करना। यहीं चीजें उन्हें सबसे अलग करती हैं और इसके पीछे रहती है उनकी सोच। 

यह उनकी सोच ही थी जिसने उनसे चुनाव में अभूतपूर्व सफलता हासिल करने के बाद भी राजनीति छोड़ देने का फ़ैसला करवाया। उनके करोड़ों फ़ैन थे। वह तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी के गहरे दोस्त थे। जैसा चाहे राजनीतिक लाभ उठा सकते थे। लेकिन उन्हें लगा कि राजनीति करने के लिये वह नहीं बने हैं। 

Megastar Amitabh Bachchan most influential star named Dada Saheb Phalke winner - Satya Hindi

हर फ़्रेम पर सिर्फ़ अमिताभ  

अमिताभ धीरे-धीरे कब वन मैन इंडस्ट्री बन गए यह किसी को पता ही नहीं चला। वह एक ऐसे अभिनेता थे कि एंग्री यंग मैन की छवि में क़ैद होने के बावजूद पर्दे पर रोमांस करते थे तो भी पसंद किये जाते थे। हास्य भूमिकाओं में वह इतने गज़ब के लगने लगे कि हास्य अभिनेताओं की ज़रूरत ख़त्म सी हो गयी। उनकी अधिकतर फ़िल्मों में अभिनेत्रियों की ज़रूरत केवल गाने गाने के लिए रह गयी। पर्दे पर फ़िल्म के हर फ़्रेम पर अमिताभ ही अमिताभ रहते थे।    

लेकिन फिर हुआ यह कि जितने भी डायरेक्टर-प्रोड्यूसर यह दावा करते थे कि हिंदी सिनेमा को अमिताभ बच्चन जैसी महान हस्ती उनकी वजह से मिली उनकी फ़िल्में एक के बाद एक औंधे मुंह गिरने लगीं। बॉक्स ऑफ़िस पर कोहराम मचा हुआ था। अपने करियर के शुरुआती दौर की तरह एक के बाद एक फ़्लॉप फ़िल्में अमिताभ के खाते में जुड़ती चली गयीं। 

दिवालिया होने की कगार पर पहुंचे

ख़ुद अमिताभ बच्चन को भी एक जैसे रोल करते-करते कोफ्त होने लगी थी। वह कुछ नया करना चाह रहे थे और उन्होंने नया किया भी। उन्होंने अपनी कंपनी बनायी अमिताभ बच्चन कारपोरेशन लिमिटेड यानी एबीसीएल और 1996 की मिस वर्ड प्रतियोगिता आयोजित करने के अधिकार खरीद लिये लेकिन उन्हें भारी नुक़सान उठाना पड़ा। अपनी कंपनी के बैनर पर फ़िल्में बनायीं तो फिर घाटा उठाया। वह दिवालिया होने की कगार पर पहुंच गए। कर्ज के बेतहाशा बोझ ने उनके लंबे क़द को दबा लिया।
बेइंतहा दौलत-शोहरत और इज्जत कमाने के बाद जब कोई शख़्स फुटपाथ पर खड़ा हो जाए तो शान से आगे बढ़ने के लिये ख़ास सोच की ज़रूरत होती है। जिंदगी को नए सिरे से देखने की दरकार होती है। अमिताभ ने फिर चिंतन किया। एक बार फिर अमिताभ आगे बढ़े।

‘बाग़बान’, ‘मोहब्बतें’, ‘कभी ख़ुशी कभी ग़म’, ‘मेजर साहब’ और ‘खाकी’ जैसी फ़िल्मों का सफर तय करते हुए वह फिर मेन स्ट्रीम सिनेमा के केंद्र में आ गए। छोटे पर्दे का भी रूख किया और ‘कौन बनेगा करोड़पति’ जैसा शो होस्ट कर टीवी की दुनिया में मील का पत्थर गाड़ दिया।  

अपने पिता की कविताओं को ही नहीं बल्कि दूसरे साहित्यकारों को भी पढ़ने और जानने वाले अमिताभ, बढ़ती उम्र के साथ अपनी पुरानी एंग्री मैन की छवि से छुटकारा पाने की कोशिश कर तो रहे थे लेकिन लोगों को उनकी यही छवि भाती थी। इसलिये अमिताभ एंग्री मैन की छवि का दामन तो नहीं छोड़ सके लेकिन अंदाज बदल दिया। गुस्सैल इंसान की उनकी छवि ‘बाग़बान’ में भी है, ‘अक्स’ में भी है और ‘सरकार’ में भी। फिर भी अमिताभ चाह रहे थे कि उनके अभिनय के जो और रंग हैं उन्हें भी सामने ला सकें। उन्हें जैसे ही मौक़े मिले उनकी फ़िल्मों ने लोगों को हैरत में डाल दिया कि अरे, अमिताभ तो ऐसा भी कर सकते हैं।   

‘अक्स’, ‘ब्लैक’, ‘निशब्द’, ‘पीकू’, ‘भूतनाथ’, ‘सरकार’, ‘तीन पत्ती’, ‘102 नॉट आउट’ और ‘वज़ीर’ जैसी फ़िल्मों के जरिये अमिताभ ने बताया कि वह पर्दे पर क्या-क्या कर सकते हैं। फ़िल्म ‘पा’ में तो अमिताभ ने अपनी उस आवाज़ को ही बदल दिया जो उनकी पहचान है। वह हमेशा ख़ुद को डायरेक्टर का एक्टर कहते रहे पर जब बढ़ती उम्र वाले इस अभिनेता ने अभिनय में विचार के रंग उड़ेले तो उन्हें लेकर ख़ास तौर पर स्क्रिप्ट लिखी जाने लगीं। और यह सिलसिला अभी जारी है।  

सत्य हिन्दी ऐप डाउनलोड करें

गोदी मीडिया और विशाल कारपोरेट मीडिया के मुक़ाबले स्वतंत्र पत्रकारिता का साथ दीजिए और उसकी ताक़त बनिए। 'सत्य हिन्दी' की सदस्यता योजना में आपका आर्थिक योगदान ऐसे नाज़ुक समय में स्वतंत्र पत्रकारिता को बहुत मज़बूती देगा। याद रखिए, लोकतंत्र तभी बचेगा, जब सच बचेगा।

नीचे दी गयी विभिन्न सदस्यता योजनाओं में से अपना चुनाव कीजिए। सभी प्रकार की सदस्यता की अवधि एक वर्ष है। सदस्यता का चुनाव करने से पहले कृपया नीचे दिये गये सदस्यता योजना के विवरण और Membership Rules & NormsCancellation & Refund Policy को ध्यान से पढ़ें। आपका भुगतान प्राप्त होने की GST Invoice और सदस्यता-पत्र हम आपको ईमेल से ही भेजेंगे। कृपया अपना नाम व ईमेल सही तरीक़े से लिखें।
सत्य अनुयायी के रूप में आप पाएंगे:
  1. सदस्यता-पत्र
  2. विशेष न्यूज़लेटर: 'सत्य हिन्दी' की चुनिंदा विशेष कवरेज की जानकारी आपको पहले से मिल जायगी। आपकी ईमेल पर समय-समय पर आपको हमारा विशेष न्यूज़लेटर भेजा जायगा, जिसमें 'सत्य हिन्दी' की विशेष कवरेज की जानकारी आपको दी जायेगी, ताकि हमारी कोई ख़ास पेशकश आपसे छूट न जाय।
  3. 'सत्य हिन्दी' के 3 webinars में भाग लेने का मुफ़्त निमंत्रण। सदस्यता तिथि से 90 दिनों के भीतर आप अपनी पसन्द के किसी 3 webinar में भाग लेने के लिए प्राथमिकता से अपना स्थान आरक्षित करा सकेंगे। 'सत्य हिन्दी' सदस्यों को आवंटन के बाद रिक्त बच गये स्थानों के लिए सामान्य पंजीकरण खोला जायगा। *कृपया ध्यान रखें कि वेबिनार के स्थान सीमित हैं और पंजीकरण के बाद यदि किसी कारण से आप वेबिनार में भाग नहीं ले पाये, तो हम उसके एवज़ में आपको अतिरिक्त अवसर नहीं दे पायेंगे।
इक़बाल रिज़वी
सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें

अपनी राय बतायें

सिनेमा से और खबरें

ताज़ा ख़बरें

सर्वाधिक पढ़ी गयी खबरें