पिछले कुछ वर्षों से ये लगातार प्रचारित किया जा रहा है कि बीजेपी पिछड़ों, दलितों और आदिवासियों को जोड़ने में कामयाब रही है और उसकी राजनीतिक सफलता की सबसे बड़ी नहीं तो एक महत्वपूर्ण वज़ह ये भी है। कहा ये जा रहा है कि पचासों साल से राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ और उसके आनुषंगिक संगठन इन वर्णों और वर्गों को जोड़ने की मुहिम में जुटे हुए थे। उनकी इन अनवरत् कोशिशों का परिणाम ही था कि बीजेपी केंद्र और उत्तर प्रदेश की सत्ता हासिल करने में कामयाब हुई।
जातीय समरसता का हिंदुत्ववादी नैरेटिव और उसे समझने की नाकामी
- देशकाल
- |
- |
- 16 Jan, 2022

जाति व्यवस्था से निपटने की संघ की जो रणनीति है उसमें ज़बर्दस्त खोट है। वह जाति व्यवस्था को बनाए रखकर जातियों में सामंजस्य कायम करना चाहता है। इसे उसने समरसता का जुमला दिया है। लेकिन अब पिछड़ी और दलित जातियों में अत्यधिक जागरूकता आ चुकी है। वे इस तरह भरमाए नहीं जा सकतीं।
इस सफलता को हिंदुत्व की विजय के तौर पर भी प्रस्तुत किया जाने लगा था। संघ पर विशेषज्ञता का दावा करने वाले यहाँ तक कहने लगे थे कि इस काम में संघ को सौ साल लगे लेकिन आख़िरकार कामयाबी मिल गई और धीरे-धीरे वे जातियाँ बीजेपी से जुड़ गईं जो पहले दूसरे दलों से जुड़ी हुई थीं।