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माइकल लोबो

'आयाराम गयाराम' में उलझी गोवा की राजनीति; बीजेपी फायदे या घाटे में?

देश के सबसे छोटे राज्यों में से एक गोवा की विधानसभा के लिए चुनाव 14 फ़रवरी यानी वेलेंटाइन डे को होना है लेकिन उसके पहले ही गोवा के तमाम दावेदार और विधायक नये नये दलों के साथ प्रपोज करके पाला बदल रहे हैं। गोवा में अब तक दस विधायक और मंत्री पार्टियाँ बदल चुके हैं। सबसे तगड़ा झटका बीजेपी को लगा है जहाँ उसके एक साथ एक मंत्री और दो विधायक कांग्रेस में चले गये।

बीजेपी का ग्रामीण और क्रिशिचियन चेहरा माने जाने वाले मंत्री माइकल लोबो ने यह कहते हुए बीजेपी छोड़ दी है कि अब वहाँ जगह नहीं रही तो प्रसाद गांवकर और प्रवीण जांटये जैसे विधायक भी बीजेपी को राम राम कर चुके हैं। अब बीजेपी अपने आप को बचाने के लिए फिर से कांग्रेस और कई जगहों से तोड़ने में लगी है। अब तक के खेल से इतना तो साफ़ हो गया है कि इस बार भी किसी को बहुमत नहीं मिलने वाला और चुनाव के बाद ये तोड़फोड़ और तेज होगी। गोवा में चुनाव के पहले और चुनाव के बाद पाला बदलने की परंपरा बहुत पुरानी है। इसलिए यहां कोई सीएम शायद ही अपना कार्यकाल पूरा कर पाता है।

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इस बार का चुनाव बीजेपी के लिए सबसे चुनौतीपूर्ण है क्योंकि एक तो उसके पास अब पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर पर्रिकर जैसा चेहरा नहीं है दूसरा मौजूदा मुख्यमंत्री प्रमोद सावंत का क़द इतना नहीं बन पाया है कि वह चुनाव खींच ले जायें इसलिए उनके साथ हर पोस्टर में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को रखा जा रहा है। उधर ममता बनर्जी की टीएमसी और आम आदमी पार्टी भी हर रोज किसी न किसी नेता को शामिल करके माहौल बना रहे हैं। गोवा में यह पहला मौक़ा है जब कुल मिलाकर सात पार्टियाँ चुनाव मैदान में हैं। ऐसे में हर कोई किसी न किसी से उम्मीदवार बन सकता है। लेकिन इस सबका नुक़सान ये हो रहा है कि गोवा के चुनावी मुद्दे और गोवा की जनता के प्रति कमिटमेंट जैसी बातें सब नेपथ्य में चली गयी हैं।

ओमिक्रॉन की दहशत के कारण गोवा में इस बार 40 फीसदी टूरिस्ट भी नहीं पहुँचे हैं। किनारों पर रंगीन होने वाले शेक और कसीनों से लेकर क्लब तक सब सूने पड़े हैं। इस बार गोवा का मशहूर सनबर्न भी नहीं होगा और न ही गोवा कार्निवल की रौनक होगी। 

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गोवा देश का वो राज्य है जो आज़ादी के 14 साल बाद भारत गणराज्य का हिस्सा बना। सन 1962 में गोवा मुक्ति आंदोलन के साथ ही यहां पुर्तगाल का शासन समाप्त हो गया। पोर्तगीज यहाँ पर मार्च 1510 में अलफांसो द अल्बुकर्क के आक्रमण के बाद राज करने लगे थे। मराठा शासकों ने कई बार हमले किये लेकिन जीत नहीं पाये और ब्रिटिश सरकार से समझौते के कारण पोर्तगीज शासन बना रहा। आख़िर 19 दिसंबर 1962 को भारत सरकार की मदद से ऑपरेशन विजय के साथ ही गोवा को मुक्ति मिल सकी और वो भारत का हिस्सा बना।

छोटा सा राज्य और 40 सदस्यीय विधानसभा वाला ये राज्य शुरुआती वर्षों को छोड़कर लगातार राजनीतिक अस्थिरता का शिकार रहा है।

यहाँ हर दल में टूट-फूट हुई है और 11 से ज़्यादा मुख्यमंत्री बने। अब फिर से फ़रवरी में चुनाव होने वाले हैं और इस बार दो बड़े दलों- आम आदमी पार्टी और तृणमूल कांग्रेस के जमकर मैदान में उतरने के चलते लड़ाई दिलचस्प हो गयी है। पिछले चुनाव में बीजेपी को बहुमत नहीं मिला और कांग्रेस 17 विधायकों के साथ बहुमत के क़रीब थी लेकिन सरकार बीजेपी के मनोहर पर्रिकर ने बना ली। बाद में कांग्रेस के 11 और विधायक भी टूटकर बीजेपी में चले गये। अब फिर चुनाव के समीकरण बनाये जा रहे हैं।

इन सबके बीच गोवा और यहाँ के लोग कई परेशानियों से जूझ रहे हैं। तीन साल से कोविड के कारण पर्यटन उद्योग ठप हो गया है तो दूसरी तरफ़ तीन साल से ही सबसे बड़ी आर्थिक गतिविधि माइनिंग बंद होने के कारण सरकार की तिजोरी खाली है और विकास कार्य बंद पड़े हैं। ऐसे में रोजगार और माइनिंग फिर से शुरू करने का मुद्दा बना हुआ है। 

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असल में गोवा में माइनिंग एक उलझा हुआ मुद्दा है। सन 2012 में चुनाव के लिए बीजेपी के मनोहर पर्रिकर ने इसे मुद्दा बनाया था और फिर माइनिंग बैन कर दी थी। बाद में कुछ समय के लिए माइनिंग शुरू हुई लेकिन फिर 2018 में बैन हो गयी। तब से इन खदानों को फिर से शुरू करने का मुद्दा बना हुआ है। गोवा में खनन का काम आज़ादी से पहले 40 के दशक में तब की पुर्तगाल सरकार के दिये गये पट्टों से शुरू हुआ था। बाद में आज़ादी के बाद इनको नियमति कर दिया गया। गोवा के खान मालिकों का कहना है कि उनको पूरे देश की तरह ही क़ानून के तहत दूसरा लीज एक्सटेंशन दिया जाये। ये मामला अब सुप्रीम कोर्ट में लंबित है। गोवा के लोग चाहते हैं कि इन खदानों के लीज एक्सटेंशन का मुद्दा संसद में बिल लाकर सुलझाया जाए ताकि लोगों को तुरंत रोजगार मिल सके।

पूर्व मुख्यमंत्री दिगंबर कामत ने कहा है कि गोवा में आयरन ओर माइनिंग शुरू करने का मुद्दा लंबे समय से बना हुआ है और मौजूदा बीजेपी सरकार इस मुद्दे पर नााकाम रही है।

कामत ने कहा कि राहुल गांधी ने भी अपने दौरे में माइनिंग फिर से शुरू करने का समर्थन किया था और अगर केन्द्र सरकार इसके लिए संसद में कोई बिल लाती है तो कांग्रेस उसका समर्थन करेगी। 

गोवा में तीन लाख से ज़्यादा लोगों की आजीविका माइनिंग से चलती थी लेकिन अब ये बेरोज़गार हैं। ऊपर से कोरोना के कहर के कारण पर्यटन पर भी असर पड़ा है।

गोवा की जीडीपी का क़रीब बीस फ़ीसदी हिस्सा माइनिंग रेवेन्यू से आता था और इसके साथ ही आयरन ओर की प्रति टन बिक्री का क़रीब 35 फ़ीसदी रेवेन्यू के तौर पर मिलता था, इसके साथ ही सभी कंपनियों को गोवा मिनरल फंड में पैसा देना ज़रूरी है ताकि गाँवों में सुविधाओं का विकास हो सके लेकिन माइनिंग बंद होने के साथ गोवा की इकोनॉमी के बुरे दिन आना शुरू हो गये। अब सब चाहते हैं कि फिर से माइनिंग शुरू हो और गोवा को आर्थिक संकट से उबारा जा सके।

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संदीप सोनवलकर
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