शाहीनबाग आंदोलन के दौरान आमिर अज़ीज़ की एक कविता सब याद रखा जाएगा बहुत मशहूर हुई थी। लेकिन उस कविता पर एक मशहूर आर्टिस्ट ने पेंटिंग बनाई और आमिर का नाम तक नहीं दिया। पूरा विवाद जानिएः
कुछ साल पहले अपनी कविता ‘सब याद रखा जाएगा’ से धूम मचाने वाले कवि आमिर अज़ीज़ ने अपनी कविता की चोरी का आरोप लगाया है। यह आरोप लगा है मशहूर पेंटर अनिता दुबे पर... कवि आमिर अज़ीज़ का कहना है कि कलाकार अनिता दुबे ने उनकी कविता ‘सब याद रखा जाएगा’ का उपयोग बिना उनसे अनुमति लिए हुए कर लिया और उन्हें इसका क्रेडिट भी नहीं दिया।
पिछले दिनों जानी मानी पेंटर और आर्ट क्रिटिक अनिता दुबे की एक पेंटिंग प्रदर्शनी दिल्ली की वढेरा आर्ट गैलरी में लगी थी। इस प्रदर्शनी में खास बात यह थी कि कई कलाकृतियों में सब याद रखा जाएगा कविता की पंक्तियाँ दर्ज थीं। भिन्न आर्ट एलीमेंट का उपयोग करते हुए इन कलाकृतियों में प्रमुखता से आमिर अज़ीज़ की पंक्तियों को दर्ज किया गया था। अनिता दुबे के इस पेंटिंग कलेक्शन की प्रदर्शनी न केवल 2025 के इंडिया आर्ट फेयर में हुई थी बल्कि इसे पहले भी एक बार दिखाया जा चुका था। पहले इसे 2023 की एक अन्य प्रदर्शनी — “ऑफ मिमिक्री, माइमेसिस एंड मास्करेड” —में दिखाया गया था।
दोनों ही मौकों पर कविता का उपयोग न तो कवि की अनुमति से किया गया, न ही उन्हें किसी भी प्रकार का क्रेडिट मिला। उन्हें कोई पारिश्रमिक भी नहीं दिया गया।
आमिर अज़ीज़ ने अपने सार्वजनिक बयान में स्पष्ट किया कि उन्होंने अपनी कविता को हमेशा जनआंदोलनों, प्रदर्शनों, और विरोध की आवाज़ के रूप में साझा किया है।
पेंटर अनिता दुबे ने इसका उपयोग एकदम अलग कारणों के लिए किया है। उनके शब्दों का एक महंगी व्यावसायिक गैलरी में एक कलाकार द्वारा 'कलाकृति' के नाम पर प्रयोग कर आर्थिक मुनाफ़ा कमाने के लिए उपयोग किया गया। इसके लिए उनकी कोई अनुमति नहीं ली गई। उन्हें कोई क्रेडिट नहीं दिया गया।
कवि ने इसे एक तरह की "सांस्कृतिक चोरी" करार दिया। उन्होंने साफ तौर पर लिखा कि यह मामला सिर्फ कॉपीराइट का नहीं है, बल्कि एक जीवित कवि की चेतना को मिटाने का प्रयास है। उनका यह भी कहना था कि एक ऐसे कलाकार द्वारा, जो स्वयं राजनीतिक और सामाजिक विषयों पर काम करता है, इस प्रकार का नैतिक चूक किया जाना और फिर आलोचना के बाद चुप्पी साध लेना, निंदनीय है।
गौर करने वाली बात यह है कि अनिता दुबे ने पहले भी साहित्य और कला को मिलाकर कृति तैयार की है। उन्होंने काफ्का, मीर और अन्य साहित्यकारों की पंक्तियों का उपयोग किया है। हर बार हर साहित्यकार या कवि को क्रेडिट दिया है। इस मामले में सत्य हिन्दी ने कुछ कलाकारों और विशेषज्ञों से बात करने की कोशिश की।
पेंटर महेश वर्मा ने इस मामले पर कहा कि “अनीता दुबे के आर्टवर्क में साहित्य से जुड़े कई संदर्भ हैं। काफ़्का की कहानियों पर तो एक सीरीज़ ही है, मीर तकी मीर और सर्वांतेज के डॉन क्वीज़ोट उपन्यास के मशहूर चरित्र सैंशो पांजा का भी उन्होंने उपयोग किया है। कलाओं को एक दूसरे से जोड़ा ही जाना चाहिए लेकिन अमीर अजीज़ की मशहूर नज़्म' सब याद रक्खा जाएगा' को अपनी कला में लेते हुए अनिता दुबे ने अमीर का उल्लेख तक नहीं किया। यह नज़्म एन आर सी, सीएए के विरोध के दौर में प्रतिरोध की आवाज़ थी और आज भी गाहे बगाहे सत्ता को उसके ज़ुल्म याद दिलाने के लिए इसने लगभग मुहावरे की शक्ल ले ली है।
अनिता दुबे ने इसके साथ जो आर्टवर्क लगाए हैं उनका स्वर प्रतिरोध का ही है इसलिए किसी भूल की जगह नहीं दिखती। कवि का उल्लेख होना ही चाहिए और अगर सम्भव हो तो कला की कीमत में से उसका वाजिब हिस्सा भी मिलना चाहिए।“
कला की चोरी के मामले में भारत में सख्त कानून हैं। भारत में लागू कॉपीराइट अधिनियम, 1957 के अंतर्गत साहित्यिक कृतियों को स्पष्ट संरक्षण प्राप्त है। यदि किसी की रचना का उपयोग बिना अनुमति व्यावसायिक रूप से किया जाता है, तो वह कानूनी कार्रवाई के दायरे में आता है। आमिर अज़ीज़ का मामला भी इसी अधिनियम के अंतर्गत पूरी तरह वैध बनता है।
भारतीय कॉपीराइट अधिनियम, 1957 में क्या-क्या खास है, आइए जानते हैं।
इन बिंदुओं को देखते हुए कला आलोचकों और इनलेक्चूअल राइट्स कानून से जुड़े वकीलों का कहना है कि यदि यह मामला अदालत तक पहुंचता है, तो अनिता दुबे को कानूनी रूप से जवाबदेह ठहराया जा सकता है।
कई कलाकारों, लेखकों और सामाजिक कार्यकर्ताओं ने आमिर अज़ीज़ के समर्थन में आवाज़ उठाई है। ऐक्टिविस्ट ऑफ प्रोफेसर मोनामी बासु ने कलाकार अनिता दुबे पर अपना गुस्सा निकालते हुए कहा है कि “लोग कितने बेशर्म हो सकते हैं. और वे खुद को कलाकार कहते हैं। वे लोग साहित्य चोरी करने वाले और चोर हैं।“
सोशल मीडिया पर यह बहस तेज हो गई है कि क्या कला की दुनिया में नैतिक जवाबदेही अब गौण हो गई है? और क्या स्थापित कलाकारों के लिए हाशिए की आवाज़ें महज़ ‘सामग्री’ बनकर रह गई हैं?
हालांकि अब तक पेंटर अनिता दुबे का जवाब नहीं आया है पर इस विवाद ने कला, साहित्य में लगातार जारी नैतिकता और कॉपीराइट के संघर्ष को एक बार फिर सतह पर ला दिया है।