पहलगाम में आतंकी हमले के बाद भारत द्वारा सिंधु जल संधि को स्थगित करने से पाकिस्तान के साथ तनाव बढ़ गया है। इससे पाकिस्तान की कृषि, जल सुरक्षा और अर्थव्यवस्था को खतरा है, जबकि भारत को अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया और घरेलू चुनौतियों का जोखिम है।
भारत ने हाल ही में पहलगाम में हुए एक आतंकी हमले के बाद इंडस वाटर्स ट्रीटी (सिंधु जल संधि) को निलंबित कर दिया है, जिससे पाकिस्तान के साथ तनाव और बढ़ गया है। यह संधि, जो 1960 में विश्व बैंक की मध्यस्थता में हुई थी, दोनों देशों के बीच सहयोग का एक दुर्लभ प्रतीक थी। इस कदम से पाकिस्तान की कृषि, जल सुरक्षा और अर्थव्यवस्था पर गंभीर खतरा मंडरा रहा है, वहीं भारत को भी अंतरराष्ट्रीय आलोचना और घरेलू चुनौतियों का सामना करना पड़ सकता है।
इंडस वाटर्स ट्रीटी के तहत, सिंधु नदी प्रणाली की छह नदियों—सिंधु, झेलम, चिनाब, रावी, ब्यास और सतलुज—का पानी भारत और पाकिस्तान के बीच बांटा गया था। पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकांश पानी मिलता है, जो उसकी कृषि के लिए जीवन रेखा है। पाकिस्तान की लगभग 60% आबादी प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से कृषि पर निर्भर है, और सिंधु नदी प्रणाली उसकी 90% से अधिक सिंचाई की जरूरतों को पूरा करती है। संधि के निलंबन से पाकिस्तान को पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ सकता है, जिससे उसकी खाद्य सुरक्षा खतरे में पड़ सकती है।
इसके अलावा, पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था पहले से ही संकट में है। पानी की कमी से बिजली उत्पादन पर भी असर पड़ेगा, क्योंकि सिंधु नदी पर बने बांध और जलविद्युत परियोजनाएं उसकी ऊर्जा जरूरतों का एक बड़ा हिस्सा पूरा करती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि पानी की कमी से सामाजिक अशांति और आर्थिक अस्थिरता बढ़ सकती है, जिसका फायदा आतंकी संगठनों को मिल सकता है।
भारत का यह कदम पाकिस्तान को जवाब देने का एक सख्त कूटनीतिक संदेश है, लेकिन इसके अपने जोखिम भी हैं। सबसे पहले, इस निलंबन से भारत की अंतरराष्ट्रीय छवि को नुकसान पहुंच सकता है। इंडस वाटर्स ट्रीटी को विश्व बैंक ने मध्यस्थता के साथ लागू किया था, और यह दोनों देशों के बीच सबसे टिकाऊ समझौतों में से एक रहा है, जो 1965 और 1971 के युद्धों के दौरान भी बरकरार रहा। संधि को तोड़ने से भारत पर एकतरफा कार्रवाई का आरोप लग सकता है, जिससे विश्व बैंक और अन्य अंतरराष्ट्रीय मंचों पर उसे आलोचना का सामना करना पड़ सकता है।भारत के लिए क्या जोखिम है
दूसरा, भारत के लिए घरेलू चुनौतियां भी हैं। पंजाब और राजस्थान जैसे राज्यों में पहले से ही पानी की कमी एक बड़ा मुद्दा है। संधि के निलंबन से भारत इन नदियों का पानी अपने उपयोग के लिए रोक सकता है, लेकिन इसके लिए बड़े पैमाने पर बुनियादी ढांचे, जैसे बांध और नहरें, बनाने की जरूरत होगी। यह एक लंबी और महंगी प्रक्रिया होगी, और इस दौरान स्थानीय किसानों और समुदायों के बीच पानी को लेकर विवाद बढ़ सकते हैं।
यह पूरा विवाद तब शुरू हुआ जब जम्मू-कश्मीर के पहलगाम में एक आतंकी हमले में 26 भारतीय पर्यटक मारे गए। भारत ने इस हमले का आरोप पाकिस्तान समर्थित आतंकी संगठनों पर लगाया। जवाब में भारत ने न केवल सैन्य कार्रवाई की धमकी दी, बल्कि इंडस वाटर्स ट्रीटी को निलंबित करने का फैसला भी लिया। भारत का कहना है कि पाकिस्तान आतंकवाद को बढ़ावा दे रहा है, और जब तक वह आतंकी गतिविधियों को रोक नहीं लेता, तब तक संधि को लागू रखना संभव नहीं है।
इंडस वाटर्स ट्रीटी 1960 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के राष्ट्रपति अयूब खान ने हस्ताक्षर किए थे। इसके तहत, भारत को रावी, ब्यास और सतलुज का पूरा नियंत्रण मिला, जबकि पाकिस्तान को सिंधु, झेलम और चिनाब का अधिकांश पानी आवंटित किया गया। भारत को पश्चिमी नदियों (सिंधु, झेलम, चिनाब) के पानी का सीमित उपयोग, जैसे सिंचाई और बिजली उत्पादन के लिए, करने की अनुमति थी, लेकिन उसे पानी रोकने की अनुमति नहीं थी। यह संधि दोनों देशों के बीच तनाव के बावजूद एक स्थिर व्यवस्था के रूप में काम करती रही।
इस निलंबन से भारत-पाकिस्तान संबंध और खराब हो सकते हैं। पाकिस्तान ने इस कदम को "जल युद्ध" की घोषणा करार दिया है और विश्व बैंक से हस्तक्षेप की मांग की है। विश्व बैंक ने दोनों देशों से संयम बरतने और बातचीत के जरिए समाधान निकालने की अपील की है, लेकिन मौजूदा तनाव को देखते हुए यह मुश्किल लगता है।
कुछ विशेषज्ञों का मानना है कि भारत का यह कदम एक रणनीतिक दबाव की रणनीति है, जिसका मकसद पाकिस्तान को आतंकवाद के खिलाफ कार्रवाई करने के लिए मजबूर करना है। लेकिन अगर यह रणनीति उलटी पड़ती है, तो दोनों देशों के बीच तनाव और बढ़ सकता है, जिसका असर पूरे दक्षिण एशिया पर पड़ेगा।
इंडस वाटर्स ट्रीटी का निलंबन भारत और पाकिस्तान के बीच पहले से ही तनावपूर्ण रिश्तों में एक नया अध्याय जोड़ता है। यह कदम पाकिस्तान के लिए एक बड़ा झटका है, लेकिन भारत को भी इसके परिणाम भुगतने पड़ सकते हैं। दोनों देशों को इस संकट से निपटने के लिए कूटनीतिक रास्ता अपनाना होगा, वरना इसका असर न केवल इन दोनों देशों पर, बल्कि पूरे क्षेत्र की स्थिरता पर पड़ सकता है।