केंद्रीय गृह मंत्रालय (एमएचए) ने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों को अवैध विदेशियों की गतिविधियों को प्रतिबंधित करने के लिए समर्पित हिरासत शिविर या होल्डिंग सेंटर स्थापित करने का आदेश दिया है। मंगलवार को जारी एक राजपत्र अधिसूचना में, मंत्रालय ने कहा कि इन शिविरों का उद्देश्य अवैध विदेशियों को तब तक हिरासत में रखना है जब तक उनकी डिपोर्टेशन प्रक्रिया पूरी नहीं हो जाती। देश में डिटेंशन सेंटर और एनआरसी (नेशनल सिटिजन रजिस्टर) का मुद्दा काफी विवादों में रहा है। पीएम मोदी ने दिसंबर 2019 में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली में दावा किया था कि देश में एक भी डिटेंशन सेंटर नहीं है, जबकि उस समय केंद्र की मंजूरी के बाद बीजेपी शासित असम में डिटेंशन सेंटर बन चुके थे।

डीएम तय कर सकते हैं कौन विदेशी है

गृह मंत्रालय ने इमिग्रेशन और विदेशी अधिनियम, 2025 के तहत यह आदेश जारी किया है, जिसमें कहा गया है कि केंद्र सरकार, राज्य सरकार, केंद्र शासित प्रदेश प्रशासन या जिला कलेक्टर/जिला मजिस्ट्रेट यह तय कर सकते हैं कि कोई व्यक्ति विदेशी है या नहीं। इसके लिए केंद्र सरकार द्वारा गठित विदेशी ट्रिब्यूनल की राय ली जाएगी। ट्रिब्यूनल में अधिकतम तीन सदस्य होंगे, जिनके पास न्यायिक अनुभव होगा। यदि कोई व्यक्ति यह साबित करने में विफल रहता है कि वह विदेशी नहीं है और जमानत की व्यवस्था नहीं कर पाता, तो उसे हिरासत शिविर में रखा जाएगा।

नए नियमों के अनुसार, गंभीर अपराधों जैसे आतंकवाद, जासूसी, बलात्कार, हत्या, बाल तस्करी या प्रतिबंधित संगठनों के सदस्य होने के दोषी विदेशियों को भारत में प्रवेश या रहने की अनुमति नहीं दी जाएगी। इसके अलावा, वीजा या ओवरसीज सिटीजन ऑफ इंडिया (ओसीआई) कार्ड के लिए आवेदन करने वाले प्रत्येक विदेशी को अपनी बायोमेट्रिक जानकारी देनी होगी।    

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गृह मंत्रालय ने यह भी निर्देश दिया है कि अवैध रूप से भारत में प्रवेश करने वाले विदेशियों को सीमा सुरक्षा बल (बीएसएफ) या तटरक्षक बल द्वारा रोका जाएगा, और उनकी बायोमेट्रिक और जनसांख्यिकीय जानकारी केंद्र सरकार के पोर्टल पर दर्ज की जाएगी।

नए नियमों में विदेशियों के लिए कुछ अतिरिक्त प्रतिबंध भी लगाए गए हैं। उदाहरण के लिए, बिना केंद्र सरकार की लिखित अनुमति के कोई भी विदेशी भारत में किसी पर्वत शिखर पर चढ़ाई नहीं कर सकता। साथ ही, संरक्षित या प्रतिबंधित क्षेत्रों में प्रवेश के लिए परमिट अनिवार्य होगा, और अफगानिस्तान, चीन या पाकिस्तान मूल के व्यक्तियों को इन क्षेत्रों में प्रवेश की अनुमति नहीं होगी।

यह आदेश असम में पहले से मौजूद हिरासत शिविरों की पृष्ठभूमि में आया है, जहां अवैध प्रवासियों को रखा जाता है। असम में छह हिरासत शिविर हैं, और वहां की स्थिति को लेकर मानवाधिकार संगठनों ने कई बार चिंता जताई है। सुप्रीम कोर्ट ने भी असम में हिरासत शिविरों की स्थिति और वहां लंबे समय तक हिरासत में रखे गए लोगों की रिहाई को लेकर कई निर्देश जारी किए हैं।
गृह मंत्रालय ने यह भी स्पष्ट किया कि नेपाल और भूटान के नागरिकों को भारत में प्रवेश के लिए पासपोर्ट या वीजा की आवश्यकता नहीं होगी, बशर्ते वे नेपाल या भूटान सीमा से प्रवेश करें। हालांकि, यह छूट चीन, मकाऊ, हांगकांग या पाकिस्तान से आने वाले व्यक्तियों पर लागू नहीं होगी।

डिटेंशन सेंटर और एनआरसीः एनआरसी लाने की घोषणा केंद्र सरकार ने बहुत पहले की थी। गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था कि पहले सीएए लाया जाएगा। जो लागू हो चुका है। उसके बाद एनआरसी आएगा। असम में डिटेंशन सेंटर की शुरुआत 2008 में गुवाहाटी हाईकोर्ट के आदेश पर हुई थी। वर्तमान में, असम में छह डिटेंशन सेंटर हैं, जो डिब्रूगढ़, सिलचर, तेजपुर, जोरहाट, कोकराझार और गोलपारा के जिला जेलों में स्थापित हैं। इन केंद्रों में अवैध प्रवासियों को रखा जाता है, जिन्हें विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा अवैध घोषित किया गया है। नवंबर 2019 तक, इन केंद्रों में 1,043 लोग थे, जिनमें से अधिकांश बांग्लादेशी और कुछ म्यांमार के नागरिक थे।

सबसे बड़ा डिटेंशन सेंटर असम के गोलपाड़ा जिले के मटिया में बनाया गया है, जिसे 2018 में केंद्र सरकार ने मंजूरी दी थी। यह केंद्र लगभग 46 करोड़ रुपये की लागत से बनाया गया है और इसमें 3,000 लोगों को रखने की क्षमता है। इसमें स्कूल, अस्पताल और मनोरंजन क्षेत्र जैसी सुविधाएं शामिल हैं।

सरकार का पक्ष: अवैध प्रवासियों पर नियंत्रण 

मोदी सरकार का कहना है कि इन हिरासत केंद्रों का उद्देश्य अवैध प्रवासियों को नियंत्रित करना है, विशेष रूप से बांग्लादेश और म्यांमार से आने वाले उन लोगों को, जिन्हें विदेशी ट्रिब्यूनल द्वारा अवैध घोषित किया गया है। सरकार के अनुसार, ये केंद्र उन लोगों को रखने के लिए हैं जिन्हें उनके मूल देश में प्रत्यर्पण से पहले हिरासत में रखा जाता है। गृह मंत्रालय ने 2014 और 2018 में सभी राज्यों को कम से कम एक हिरासत केंद्र स्थापित करने के निर्देश दिए थे ताकि अवैध प्रवासियों को जेल के कैदियों के साथ न रखा जाए।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिसंबर 2019 में दिल्ली के रामलीला मैदान में एक रैली में कहा था कि देश में कोई डिटेंशन सेंटर नहीं हैं और मुस्लिम समुदाय को इन केंद्रों या राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (NRC) से डरने की जरूरत नहीं है। हालांकि, गृह राज्य मंत्री नित्यानंद राय ने संसद में स्वीकार किया था कि असम में छह सेंटर मौजूद हैं।

विपक्ष का आरोप: अल्पसंख्यकों का उत्पीड़न

विपक्षी दलों, विशेष रूप से कांग्रेस और तृणमूल कांग्रेस, ने आरोप लगाया है कि ये हिरासत केंद्र, खासकर असम में, मुस्लिम समुदाय को निशाना बनाने के लिए बनाए गए हैं। कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने 2019 में ट्वीट कर कहा था कि मोदी सरकार झूठ बोल रही है और असम में हिरासत केंद्रों का अस्तित्व स्पष्ट है।
विपक्ष का कहना है कि 2019 में लागू नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) और NRC के साथ मिलकर इन केंद्रों का इस्तेमाल मुस्लिम समुदाय को डराने और उनकी नागरिकता छीनने के लिए किया जा सकता है। असम में NRC की अंतिम सूची में 19 लाख लोग शामिल नहीं थे, जिनमें से कई मुस्लिम थे। इन लोगों को अपनी नागरिकता साबित करने के लिए विदेशी ट्रिब्यूनल में अपील करनी थी, और असफल होने पर उन्हें हिरासत केंद्रों में भेजा जा सकता है।
मानवाधिकार संगठनों और कार्यकर्ताओं ने भी इन केंद्रों की स्थिति पर सवाल उठाए हैं। असम के केंद्रों में भीड़भाड़, खराब स्वच्छता और मानवाधिकार उल्लंघन की शिकायतें सामने आई हैं। 2008 से इन केंद्रों में लगभग 100 लोगों की मौत की खबरें हैं, जिनमें कुछ आत्महत्याएं भी शामिल हैं।
हालांकि सरकार का कहना है कि NRC और हिरासत केंद्रों का उद्देश्य अवैध प्रवासियों को नियंत्रित करना है, न कि किसी धर्म विशेष को निशाना बनाना, लेकिन आलोचकों का मानना है कि यह प्रक्रिया अपारदर्शी और भेदभावपूर्ण है। असम में NRC की प्रक्रिया में कई त्रुटियां सामने आई हैं, जैसे कि दस्तावेजों की कमी के कारण वास्तविक नागरिकों को भी बाहर कर दिया गया।
विपक्ष और मानवाधिकार कार्यकर्ता यह भी चेतावनी दे रहे हैं कि यदि NRC को पूरे देश में लागू किया गया, तो यह लाखों लोगों, विशेष रूप से गरीब और अल्पसंख्यक समुदायों, को प्रभावित कर सकता है। असम के अनुभव को देखते हुए, जहां एक सैन्य दिग्गज को भी हिरासत में लिया गया था, यह चिंता और गहरी हो जाती है।
हिरासत केंद्रों का मुद्दा भारत में एक संवेदनशील और जटिल विषय बन गया है। जहां सरकार इसे राष्ट्रीय सुरक्षा और अवैध प्रवास के खिलाफ एक कदम बताती है, वहीं विपक्ष और कार्यकर्ता इसे अल्पसंख्यकों, खासकर मुस्लिमों के खिलाफ एक सुनियोजित रणनीति मानते हैं। असम में पहले से मौजूद केंद्र और नए केंद्रों की योजना ने इस बहस को और तेज कर दिया है।