उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति सदन का सदस्य नहीं होते हैं तो क्या वह अपने निजी स्टाफ़ को सदन की समितियों में लगा सकते हैं? विपक्षी दलों के नेता इस पर सवाल खड़े करते हुए पूछते हैं कि क्या यह संस्थाओं को कमजोर करना नहीं है?