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उपराष्ट्रपति धनखड़ के निजी स्टाफ़ राज्यसभा की समितियों में क्यों?

उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति सदन का सदस्य नहीं होते हैं तो क्या वह अपने निजी स्टाफ़ को सदन की समितियों में लगा सकते हैं? विपक्षी दलों के नेता इस पर सवाल खड़े करते हुए पूछते हैं कि क्या यह संस्थाओं को कमजोर करना नहीं है?

दरअसल, ये सवाल इसलिए उठ रहे हैं कि उपराष्ट्रपति और राज्यसभा के सभापति जगदीप धनखड़ के निजी स्टाफ के आठ अधिकारी संसद की 12 स्थायी समितियों और आठ विभाग से जुड़ी स्थायी समितियों में 'लगाए' गए हैं। इन लगाए (अटैच) गए अधिकारियों में ओएसडी राजेश एन नाइक, निजी सचिव सुजीत कुमार, अतिरिक्त निजी सचिव संजय वर्मा और ओएसडी अभ्युदय सिंह शेखावत हैं। राज्यसभा के सभापति कार्यालय से नियुक्त किए गए उनके ओएसडी अखिल चौधरी, दिनेश डी, कौस्तुभ सुधाकर भालेकर और पीएस अदिति चौधरी हैं। लेकिन इन नियुक्तियों पर विपक्षी दलों ने सवाल खड़े किए। 

कांग्रेस के लोकसभा सांसद मनीष तिवारी ने ट्वीट किया, 'उपराष्ट्रपति राज्य सभा के पदेन अध्यक्ष हैं। वह वाइस चेयरपर्सन के पैनल की तरह सदन के सदस्य नहीं हैं। वह संसदीय स्थायी समितियों में निजी कर्मचारियों की नियुक्ति कैसे कर सकते हैं? क्या यह संस्थाओं को कमजोर करने के समान नहीं होगा?'

कांग्रेस के राज्यसभा के मुख्य सचेतक जयराम रमेश ने इस फ़ैसले के पीछे दिए गए तर्क पर सवाल उठाया। उन्होंने कहा, 'मैं इस कदम के तर्क या ज़रूरत को समझ नहीं पा रहा हूँ। राज्यसभा की सभी समितियों में पहले से ही सचिवालय से लिए गए सक्षम कर्मचारी हैं। ये राज्यसभा की समितियाँ हैं न कि सभापति की। किसी भी तरह का कोई परामर्श नहीं किया गया है।'

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार राजद के राज्यसभा सांसद मनोज झा ने कहा, 'इस तरह के कदम के पीछे जो तर्क है, वह मूल रूप से स्थायी समितियों के विचार और संरचना के खिलाफ जाता है?'
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बता दें कि मंगलवार को जारी एक आदेश में राज्यसभा सचिवालय ने कहा है कि अधिकारियों को तत्काल प्रभाव से और अगले आदेश तक समितियों से जोड़ा गया है। इसमें कहा गया है कि इन अधिकारियों से समितियों के काम में उनकी सहायता करने की अपेक्षा की जाती है। इनमें ऐसी बैठकें शामिल होती हैं जो गोपनीय होती हैं।

इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार उपराष्ट्रपति के कार्यालय के एक अधिकारी ने कहा, 'पूरा विचार संबंधित समितियों को कर्मचारियों और अधिकारी के समर्थन के सहायता के लिए था। इसी कड़ी में लाइब्रेरी, रिसर्च, डॉक्यूमेंटेशन एंड इंफॉर्मेशन सर्विस के शोधार्थियों को भी लगाया गया है। लोकसभा में निदेशक स्तर तक के व्यक्ति ही पदस्थ होते हैं। ये उपाय समितियों को अनुसंधान इनपुट के साथ-साथ राज्यसभा के विभिन्न पहलुओं के लिए अधिकारियों के संपर्क में मदद करेंगे।

पिछले महीने ही राज्यसभा के सभापति के तौर पर जगदीप धनखड़ के उस फ़ैसले की विपक्ष ने तीखी आलोचना की थी जिसमें उन्होंने 12 विपक्षी सांसदों के खिलाफ मामले को जांच और रिपोर्टिंग के लिए सदन की विशेषाधिकार समिति के पास भेज दिया था।

इन सांसदों पर सदन के वेल में बार-बार हंगामा करने, नारेबाजी करने, कार्यवाही को बाधित करने जैसे आरोप थे। अडानी-हिंडनबर्ग मुद्दे पर और कांग्रेस सांसद रजनी पाटिल के निलंबन को रद्द करने को लेकर इन सांसदों ने सदन की कार्यवाही को बार-बार बाधित किया था जिससे सदन को स्थगित भी करना पड़ा था।

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हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ न्यायपालिका की तुलना में विधायिका की शक्तियों का मुद्दा भी उठाते रहे हैं। उन्होंने संसद के कामों में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर नाराजगी जताई थी। उन्होंने कहा था कि संसद कानून बनाता है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। उन्होंने पूछा कि क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून तभी कानून होगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी।

इसी साल जनवरी में उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा था- 'क्या हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं', इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा। केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन इसकी मूल संरचना में नहीं।

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क़मर वहीद नक़वी
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