राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित बिलों पर राज्यपालों और राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय किए जाने के सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले पर राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सवाल उठाए हैं। राष्ट्रपति ने संविधान के तहत सुप्रीम कोर्ट से इस मुद्दे पर राय मांगी है कि क्या संवैधानिक प्रावधानों के अभाव में न्यायिक आदेशों के माध्यम से राष्ट्रपति और राज्यपालों के लिए बिलों पर सहमति देने की समय-सीमा और प्रक्रिया निर्धारित की जा सकती है। इस क़दम ने कार्यपालिका और न्यायपालिका के बीच संवैधानिक अधिकारों की सीमा को लेकर एक नई बहस छेड़ दी है। 

यह सवाल तमिलनाडु सरकार बनाम राज्यपाल मामले में सुप्रीम कोर्ट के 8 अप्रैल के ऐतिहासिक फ़ैसले के बाद उठा है। इस फ़ैसले में सुप्रीम कोर्ट ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर.एन. रवि द्वारा 10 बिलों पर सहमति देने से इनकार को गैरकानूनी और मनमाना करार दिया था। कोर्ट ने न केवल राज्यपालों के लिए अनुच्छेद 200 के तहत बिलों पर कार्रवाई करने की समय-सीमा तय की, बल्कि पहली बार यह भी निर्देश दिया कि राष्ट्रपति को राज्यपाल द्वारा उनके विचार के लिए भेजे गए बिलों पर तीन महीने के भीतर निर्णय लेना होगा। कोर्ट ने कहा था कि यदि इस अवधि से अधिक देरी होती है, तो संबंधित राज्य को सही कारण बताना होगा।