राहुल गाँधी के कांग्रेस में धीरे-धीरे बड़ी जिम्मेदारियां संभालने के दौरान यह चर्चा होती थी कि क्या पुराने नेता राहुल और उनकी टीम को बर्दाश्त कर पायेंगे। राहुल गाँधी की नई टीम को लेकर कांग्रेस के वरिष्ठ नेताओं में असंतोष की ख़बरें आती रहती थीं और पुराने और नये नेताओं में वर्चस्व की लड़ाई चलती रहती थी।
सोनिया-राहुल के ‘करीबियों’ की लड़ाई में क्या होगा कांग्रेस का भविष्य?
- देश
- |
- 6 Oct, 2019
राहुल गाँधी के कांग्रेस में धीरे-धीरे बड़ी जिम्मेदारियां संभालने के दौरान यह चर्चा होती थी कि क्या पुराने नेता राहुल और उनकी टीम को बर्दाश्त कर पायेंगे।

कांग्रेस सांसद राहुल गाँधी।
बात शुरू करते हैं 2004 से जब राहुल गाँधी पार्टी में नए-नए सक्रिय हुए थे और अमेठी से लोकसभा का चुनाव जीतकर संसद पहुंचे थे। राहुल पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव थे और कांग्रेस में धीरे-धीरे अपनी ताक़त बढ़ा रहे थे। तब तक युवक कांग्रेस और कांग्रेस के छात्र संगठन (एनएसयूआई) में मनोनयन की परंपरा थी और इन संगठनों में पदाधिकारियों को पार्टी मनोनीत करती थी। लेकिन राहुल गाँधी ने दोनों ही संगठनों में आतंरिक चुनाव की प्रक्रिया को शुरू किया और इसका नतीजा यह निकला कि इन संगठनों में छात्र व युवा नेता अपने दम पर नेता बनकर आने लगे जबकि पहले उन्हें संगठन में आगे बढ़ने के लिए वरिष्ठ नेताओं के ‘आशीर्वाद’ की ज़रूरत पड़ती थी।