लाइव लॉ के मुताबिक बिलकिस बानो को बड़ी राहत देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने 2002 के गुजरात दंगों के दौरान उनके साथ बलात्कार करने और उनके परिवार की हत्या करने वाले 11 दोषियों को रिहा करने के गुजरात सरकार के फैसले को सोमवार को रद्द कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आदेश दिया कि सभी 11 दोषी कोर्ट में 15 दिनों में सरेंडर करेंगे और वहां से इन्हें जेल भेजा जाएगा।
दोषियों की रिहाई के खिलाफ याचिकाएं तृणमूल कांग्रेस की महुआ मोइत्रा, सीपीएम पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लाल और लखनऊ यूनिवर्सिटी की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित अन्य ने दायर की थीं। जस्टिस बी.वी. नागरत्ना और जस्टिस उज्जल भुइयां ने अक्टूबर 2023 में फैसला सुरक्षित रख लिया था।
दोषी जब जेल से बाहर आए तो हीरो की तरह उनका स्वागत किया गया और उन्हें भाजपा सांसद और विधायक के साथ मंच साझा करते देखा गया। दोषियों में से एक, राधेशयाम शाह ने तो वकालत भी शुरू कर दी थी, जिसे सुप्रीम कोर्ट के ध्यान में लाया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को उस आदेश को रद्द करते हुए कहा कि दोषियों को 2022 का सुप्रीम कोर्ट का आदेश "कपटपूर्ण तरीकों से" मिला। गुजरात सरकार को इस आधार पर 2022 के आदेश की समीक्षा के लिए याचिका दायर करनी चाहिए थी कि वे दोषियों को छूट देने के लिए सक्षम नहीं थी।
गुजरात सरकार ने 11 दोषियों को छोड़ते हुए एक सरकारी पैनल के सलाह की आड़ ली थी। उस पैनल में भाजपा से जुड़े लोग थे। पैनल ने अपने फैसले को सही ठहराते हुए उन दोषियों को "संस्कारी (सुसंस्कृत) ब्राह्मण" कहा था, जो पहले ही 14 साल जेल की सजा काट चुके हैं और अच्छा व्यवहार दिखा चुके हैं। अक्टूबर 2023 में मामले की सुनवाई के दौरान अदालत ने कड़े सवाल किए थे-
दोषियों की मौत की सज़ा को आजीवन कारावास में बदल दिया गया। ऐसी स्थिति में उन्हें 14 साल की सजा के बाद कैसे रिहा किया जा सकता है? अन्य कैदियों को रिहाई की राहत क्यों नहीं दी जाती है?