बीमा निजीकरण का सरकारी और उदारीकरण अभियान का मिशन पूरा होने को है। इस बार बजट में सौ फ़ीसदी विदेशी पूंजी वाली बीमा कंपनियों के लिए दरवाजे खोले जा चुके हैं। और उम्मीद की जा रही है कि संसद के इसी सत्र में सरकार नया बीमा संशोधन विधेयक पास कराने का प्रयास करेगी और जो स्थिति है उसमें इसे पास कराने में दिक्कत नहीं होनी चाहिए। इस बार मज़दूर संगठनों से और किसी अन्य संगठित से विरोध के लक्षण अभी तक नहीं दिखे हैं।
बीमा निजीकरण के पीछे क्या है?
- अर्थतंत्र
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- 29 Mar, 2025

बीमा क्षेत्र के निजीकरण के पीछे की वजह और इसके प्रभाव को समझें। जानें यह नीति आम लोगों और अर्थव्यवस्था को कैसे प्रभावित करेगी।
चार साल पहले जब सरकार ने विदेशी भागीदारी की सीमा 74 फ़ीसदी की थी तब देश की चारों आम बीमा कंपनियों के साथ बैंक अधिकारियों के संगठन ने साझा विरोध अभियान चलाया और कई मामलों में सरकार को कदम वापस खींचने पड़े। और पाँच साल का अनुभव यही बताता है कि उससे खास बात बनी नहीं। न ज्यादा नई पूंजी आई ना ही देश में चल रही कंपनियों में खरीद या घुसपैठ में ज्यादा दिलचस्पी ली गई। एक ही बड़ी निजी कंपनी कोटक महिंद्रा में अदल-बदल हुई। इससे न तो ज्यादा पूंजी आई न उत्साह दिखा। इस बार यह कदम उठाने के पीछे यह अनुभव तो था ही उदारीकरण के बचे-खुचे मिशन को पूरा करने का उद्देश्य भी होगा। और माना जा रहा है कि जो बिल सदन में लाया जाएगा उसमें रोक-टोक और निवेश की शर्तों में ‘बाधा’ बनने वाले प्रावधानों को निपटाने की तैयारी है।