जम्मू-कश्मीर में पिछले साल 5 अगस्त से नज़रबंद या गिरफ़्तार किए गए लोगों को उस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से कितनी राहत मिली है जिसके माध्यम से संविधान हर नागरिक को अनियंत्रित राज्य सत्ता से सुरक्षा देता है? इस सवाल को ढूँढती एक रिपोर्ट में चौंकाने वाले तथ्य सामने आए हैं। सख़्त पीएसए यानी पब्लिक सेफ़्टी एक्ट के तहत हिरासत में लिए गए अधिकतर लोगों को बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के बावजूद लंबे समय तक राहत नहीं मिली। अभी भी ऐसे अधिकतर मामले लंबित हैं। हालाँकि कुछ मामलों को तो हाई कोर्ट ने तय प्रक्रिया पालन नहीं करने के लिए सरकार की खिंचाई करते हुए हिरासत में लेने के आदेश को रद्द कर दिया है।
जम्मू-कश्मीर: अधिकतर गिरफ़्तार लोगों को बंदी प्रत्यक्षीकरण से राहत क्यों नहीं मिली?
- जम्मू-कश्मीर
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- 4 Aug, 2020
जम्मू-कश्मीर में पिछले साल 5 अगस्त से नज़रबंद या गिरफ़्तार किए गए लोगों को उस बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका से कितनी राहत मिली है जिससे संविधान हर नागरिक को अनियंत्रित राज्य सत्ता से सुरक्षा देता है?

बंदी प्रत्यक्षीकरण को आम नागरिक की सबसे बुनियादी सुरक्षा में से एक माना जाता है। इसके तहत नागरिक को अनियंत्रित राज्य सत्ता के ख़िलाफ़ संविधान के तहत गारंटी दी जाती है। यह एक ऐसी सुरक्षा देता है जिससे बिना किसी आरोप के लोगों को हिरासत में नहीं रखा जा सकता है और कोर्ट सरकार को अदालत के समक्ष बंदी को पेश करने व उचित प्रक्रिया का पालन करने का आदेश देता है।