पांच राज्यों के चुनाव में मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में भाजपा के पंद्रह सालों और राजस्थान में पांच साल पुरानी सरकार का अंत हो गया। भाजपा की सबसे बुरी गत ‘चावल वाले बाबा’ रमन सिंह के राज्य छत्तीसगढ़ में हुई। राजस्थान में भी उम्मीद के अनुसार वसुंधरा राजे सिंधिया की सरकार चली गई। हालांकि राजस्थान में वैसी हार नहीं हुई, जैसी कि संभावना जताई जा रही थी। इधर मध्यप्रदेश में स्थापना के बाद से पहली बार लंगड़ी सरकार बनी। नंबरों में सबसे आगे कांग्रेस, बसपा-सपा और निर्दलियों को साथ सत्ता का वनवास समाप्त करते हुए सरकार बनाने के करीब पहुंच गई।
शिवराज की रणनीति
मध्यप्रदेश में काँटे का मुक़ाबला माना जा रहा था, लेकिन संघर्ष इस कदर कड़ा और नज़दीकी होगा - इसकी उम्मीदें राजनीतिक पंडितों को भी नहीं थी। मध्यप्रदेश में दुर्गति से भाजपा बची तो केवल और केवल, मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के अथक परिश्रम तथा चाक-चौबंद रणनीति की वजह से। एक दर्जन से ज्यादा हारे मंत्रियों में आधे भी जीत जाते तो शिवराज सिंह चौहान लगातार चौथी बार प्रदेश में भाजपा की सरकार बनाने के अपने अभियान में सफल होकर नया इतिहास रच डालते। भाजपा का खेल उसके अपने बागियों ने जमकर बिगड़ा। भाजपा की सरकार ना बन पाने की बड़ी वजह यह भी रहे।पिछले चुनाव में साथ देने वाले अरविंद मेनन जैसे पार्टी के प्रदेश संगठन महामंत्री अरविंद मेनन और चुनाव प्रबंधक अनिल माधव दवे की अत्याधिक कमी शिवराज सिंह चौहान और समूची भाजपा को बेहद खली। मेनन मध्यप्रदेश से विदा कर दिए गए थे, जबकि मोदी सरकार में मंत्री दवे का पिछले बरस आकस्मिक निधन हो गया था।
'मामा' की दरियादिली
बहरहाल, पन्द्रह सालों की सतत सरकार और ज़बरदस्त सत्ता विरोधी माहौल के बीच 109 सीटों तक पहुंचने का समूचा श्रेय मुख्य रणनीतिकार शिवराज सिंह चौहान के खाते में ही जाएगा। मध्यप्रदेश में भाजपा लगातार पन्द्रह सालों से सत्ता में थी। शिवराज सिंह चौहान बीते 13 सालों से मुख्यमंत्री थे। साल 2008 और 2013 का चुनाव भाजपा ने उन्हीं अगुवाई में जीता था। भाजपा ने 2013 में 165 सीटें हासिल की थीं। लगातार चौथी बार प्रदेश में सरकार बनाने का जिम्मा पुन: शिवराज सिंह चौहान के कंधों पर था।