कांग्रेस नेता राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश में ‘एग्जॉम’ दे दिया है। उनकी इस ‘परीक्षा’ के नतीजे का पूरा दारोमदार अब पूर्व मुख्यमंत्री एवं मध्य प्रदेश कांग्रेस के अध्यक्ष कमलनाथ और उनकी टीम के कौशल पर निर्भर है! यह हम नहीं कह रहे, ये और इस तरह की चर्चाएँ मध्य प्रदेश विधानसभा के 2023 में होने वाले चुनावों और सूबे के राजनीतिक भविष्य को लेकर राज्य में हो रही हैं।
राहुल गांधी इन दिनों भारत-जोड़ो यात्रा पर हैं। कन्याकुमारी से आरंभ हुई राहुल की यात्रा बीते 12 दिनों से मध्य प्रदेश में है। यात्रा का पड़ाव अंतिम दौर में है। राहुल आज राजस्थान की सीमा से लगे मध्य प्रदेश के आगर ज़िले में हैं। शाम को राहुल की यात्रा राजस्थान में प्रवेश करने वाली है। राहुल गांधी यात्रा लेकर महाराष्ट्र के मार्ग से मध्य प्रदेश में दाखिल हुए थे। यात्रा 23 नवंबर को बुरहानपुर ज़िले में पहुँची थी। वे बुरहानपुर के बाद खंडवा, खरगोन, इंदौर और उज्जैन होते हुए आगर पहुंचे हैं। कुल 12 दिनों के इस पड़ाव में सबसे ज़्यादा तीन दिन से यात्रा आगर जिले में बनी हुई है।
राहुल गांधी की यात्रा ने मध्य प्रदेश के मालवा-निमाड़ के 6 ज़िलों में 370 किलोमीटर क्षेत्र को नाप दिया है। राहुल अब तक की यात्रा में एक दिन में सबसे ज़्यादा 28 किलोमीटर चलने का रिकॉर्ड मध्य प्रदेश में बनाया है। मालवा-निमाड़ क्षेत्र में मध्य प्रदेश विधानसभा की 66 सीटें हैं। कुल 230 सीटों वाली राज्य विधानसभा में सरकार बनने का खेल, मालवा-निमाड़ की 66 सीटें ही करती हैं।
राज्य की चुनावी राजनीति का जो इतिहास है उसके अनुसार मालवा-निमाड़ क्षेत्र की 66 सीटों में ज्यादा सीटें जीतकर परचम फहराने वाले दल को सत्ता मिलती रही है।
एससी-एसटी की 82 सीटें बेहद अहम
राहुल गांधी की यात्रा ने मध्य प्रदेश के जिन भी इलाक़ों को छुआ है, उनमें अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित जाति के मतदाताओं की बाहुल्यता है। राज्य में अनुसूचित जनजाति वर्ग के लिए 47 और 35 सीटें अनूसूचित जाति वर्ग के लिए आरक्षित हैं। कुल ये 82 सीटें ही सरकार बनने की प्रमुख राह बनती हैं।
साल 2018 में पासा पलटा था। एससी-एसटी की कुल 85 सीटों में बीजेपी 34 ही जीत सकी थी। उसका नंबर 109 पर आकर टिक गया था। नंबर कम हो जाने से बीजेपी को विपक्ष में बैठ जाना पड़ा था।
बहुमत से दो कम कुल 114 सीटें लाकर कमलनाथ 7 अन्य विधायकों की मदद से कांग्रेस की सरकार बनवाकर उसके मुखिया बने थे। बाद में ज्योतिरादित्य सिंधिया की दगाबाजी ने कमलनाथ की सरकार गिरवाकर, भाजपा को पुनः सत्ता में लौटा दिया था।
बहरहाल, राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के विशेष क्षेत्रों को नाप दिया है। उनकी पूरी यात्रा बेलेन्स रही है। छिटपुट विवादों को दरकिनार कर दिया जाये तो कोई बड़ी कांट्रोवर्सी बीते 11 दिनों में नहीं हुई है। राहुल ने सलीके से मोदी-आरएसएस और विरोधियों पर राजनीतिक निशाने साधे हैं।
धर्म-कर्म का सहारा भी राहुल गांधी ने मध्य प्रदेश के अपने इस पड़ाव में लिया है। राहुल गांधी ने महाकाल में दंडवत किया है। वे ओंकारेश्वर में माथा टेकने भी पहुँचे हैं। नर्मदा स्तुति उन्होंने वहां की है। राहुल ने आगर के ख्यातनाम बगलामुखी देवी के दरबार में भी धोक दी है।
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राजनीतिक विश्लेषकों का मत है, ‘मध्य प्रदेश में विधानसभा के चुनाव एक साल बाद हैं और इसमें वक़्त ज़रूर है, लेकिन राहुल गांधी की यात्रा ने मालवा-निमाड़ क्षेत्र के साथ-साथ मध्य प्रदेश में एक वातावरण बनाने का काम तो कर ही दिया है। कांग्रेस का कार्यकर्ता मोबलाइज हुआ है। उसमें उत्साह का संचार हुआ है।’ विश्लेषक आगे कहते हैं, ‘इस यात्रा का लाभ उठाने और भुनाने के लिए मध्य प्रदेश कांग्रेस को जुट जाना होगा। ऐसे कार्यक्रम बनाने होंगे, जिससे कार्यकर्ताओं में उत्साह बना रहे। वे मोबाइलज रहें।’
नेताओं की लंबी फेहरिस्त, मुद्दे भी ढेर हैं
मध्य प्रदेश में कांग्रेस के पास दिग्गज नेताओं की लंबी फेहरिस्त है। कमलनाथ के अलावा पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह, पूर्व केन्द्रीय मंत्री और पीसीसी चीफ़ का दायित्व निभा चुके सुरेश पचौरी, कांतिलाल भूरिया और अरुण यादव के अलावा स्वर्गीय अर्जुन सिंह के पुत्र अजय सिंह हैं। इन नेताओं के अलावा भी बड़ी और बेहतर टीम कमलनाथ के पास है।
मध्य प्रदेश में मुद्दों की क़तई कमी नहीं है। राष्ट्रीय स्तर के मुद्दे महंगाई, नोटबंदी, जीएसटी के साथ-साथ राज्य में क़ानून-व्यवस्था की बदहाल स्थिति, महिलाओं पर अत्याचार, अनुसूचित जाति-जनजाति वर्ग की कठिनाइयाँ, रेप की घटनाएँ, कर्मचारियों में सरकार के ख़िलाफ़ भारी नाराजगी, भ्रष्टाचार और सरकार पर कुशासन के आरोपों को कैश कराने के लिए ‘आकाश’ खुला हुआ है।
केन्द्र और राज्य की सरकार के खिलाफ एंटीइन्कम्बेसी के अलावा मध्य प्रदेश बीजेपी में कलह के कैक्टस भी कांग्रेस के लिए सुखद पक्ष है। भाजपा का कथित तौर पर ज्योतिरादित्य सिंधिया से मोह भंग हो जाना तथा सिंधिया एवं उनके समर्थक विधायकों/मंत्रियों की सत्तापक्ष/शिवराज से कथित अनबन को भी कांग्रेस के लिए शुभ-संकेत माना जा रहा है।
कमलनाथ को एटीट्यूड बदलना होगा?
वरिष्ठ पत्रकार और विश्लेषक राकेश दीक्षित कहते हैं, ‘राज्य की कांग्रेस और कार्यकर्ताओं को यदि सबसे ज्यादा कोई कठिनाई है तो वह, टीम लीडर कमल नाथ के एटीट्यूड से है।’ वे आगे जोड़ते हैं, ‘कमलनाथ को एटीट्यूड छोड़ना होगा। साधारण से साधारण कार्यकर्ता को सुने और उससे मिले बिना पार्टी का राज्य में बेड़ा पार लगना संभव नहीं है।’ दीक्षित कहते हैं, ‘2023 में किला फतह करने के लिए कमलनाथ को रण में कूद जाना होगा। ताबड़तोड़ दौरे करने होंगे। सरकार के खिलाफ ऐसे कार्यक्रम देने होंगे जिससे राहुल गांधी द्वारा बनाया गया माहौल बरकरार रहने के साथ सरकार विरोधी संदेश को बनाये रखा जा सके।’
राकेश दीक्षित यह भी कहते हैं, ‘दिग्विजय सिंह से लेकर सुरेश पचौरी-कांतिलाल भूरिया और युवा चेहरों में अजय सिंह-अरुण यादव के अलावा जीतू पटवारी-जयवर्धन सिंह सहित अन्य उन चेहरों पर भी पूरा भरोसा कर उन्हें मैदान में उतार देना होगा जो पार्टी के कल के प्रमुख चेहरे हो सकते हैं।’
प्रेक्षक यह सवाल उठाते हुए यह भी जोड़ते हैं, ‘कांग्रेस में वंशवाद समस्या नहीं है। यदि अच्छे और ऊर्जावान चेहरे हैं तो उन्हें आगे बढ़ाने में हिचकिचाहट क्यों?’
प्रेक्षक कमलनाथ से भी सवाल करते हुए पूछते हैं, ‘छिंदवाड़ा के सांसद नकुलनाथ को राज्य के रण में उतारकर युवाओं को रिझाने और वोट कबाड़ने का दांव खेलने देने में कमलनाथ असमंजस क्यों दिखलाते हैं?’
मप्र: 2024 में कांग्रेस का भविष्य क्या?
मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव 2023 के बाद 2024 में लोकसभा के चुनाव हैं। राज्य में लोकसभा की कुल 29 सीटें हैं। मध्य प्रदेश में कांग्रेस के लिये अब तक के लोकसभा के चुनावों में सबसे ख़राब प्रदर्शन 2019 का रहा है। पार्टी 2019 के चुनाव में 28 सीटें हार गई थी। महज एक छिंदवाड़ा भर कांग्रेस को मिल पायी थी। ऐसा माना जा रहा है कि 2024 का चुनाव साल 2019 के चुनाव की तरह नहीं होगा। कांग्रेस सीटें बढ़ायेगी। सीट भले ही कम बढ़े, लेकिन पार्टी को गेन ज़रूर होगा।
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