आजकल बाबा साहब आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर और एमआईएम के नेता असदउद्दीन ओवैसी के गठबंधन 'वंचित बहुजन आघाडी' के समीकरण की काफ़ी चर्चा है।
कहते हैं कि इतिहास अपने आप को दोहराता है, कुछ ऐसी ही कहावत राजनीति में गठबंधन के समीकरणों को लेकर भी की जाती है। चुनाव दर चुनाव नए फ़ॉर्मूले बनते हैं और सोशल इंजीनियरिंग के नए समीकरण गढ़े जाते हैं। ऐसा ही एक समीकरण इन दिनों चर्चा का विषय बन रहा है और वह है बाबा साहब आंबेडकर के पोते प्रकाश आंबेडकर और मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुसलमीन (एआईएमआईएम) के सांसद असदउद्दीन ओवैसी के गठबंधन बहुजन वंचित आघाडी का।
हाजी मस्तान-जोगेन्द्र कवाडे जैसा गठबंधन
जेल से बाहर निकले तो हाजी मस्तान ने तस्करी छोड़ राजनीति में भाग्य आजमाने के बारे में सोचा। फिर वह दलित नेता जोगेंद्र कवाडे के साथ आए और दलित सुरक्षा महासंघ नाम की पार्टी की स्थापना की।
दलित सुरक्षा महासंघ ने सन 1985 में हुए लोकसभा चुनाव में दो उर्दू पत्रकारों को टिकट दिया। ये दोनों पत्रकार उर्दू अख़बारों के संपादक थे, लेकिन चुनाव में पार्टी कुछ ख़ास नहीं कर सकी। जिसके बाद 1990 में पार्टी का नाम बदलकर भारतीय अल्पसंख्यक महासंघ कर दिया गया। बंबई, मद्रास और कलकत्ता महानगरपालिका के चुनाव में पार्टी ने हिस्सा लिया लेकिन कोई सफलता हाथ नहीं लगी। अपने फ़िल्मी संबंधों की वजह से हाजी मस्तान प्रचार सभाओं में दिलीप कुमार को बुलाते थे जिससे भीड़ तो जुटती थी लेकिन वह भीड़ वोट में तब्दील नहीं पायी थी।
दलित-मुसलिमों को ख़ींचने की कोशिश
अपनी सभाओं में भीड़ देख प्रकाश आंबेडकर ने कांग्रेस से गठबंधन नहीं करने का फ़ैसला किया और अब वह नए बने ‘वंचित बहुजन आघाडी’ गठबंधन में अपनी पार्टी का विलय करने की घोषणा कर चुके हैं।
असदउद्दीन ओवैसी और प्रकाश आंबेडकर की अलग-अलग राजनीतिक पार्टियाँ हैं, जो क्रमशः महाराष्ट्र और संयुक्त आँध्र प्रदेश में सक्रिय हैं। लेकिन साल 2014 में ओवैसी की पार्टी ने महाराष्ट्र ही नहीं उत्तर प्रदेश-बिहार आदि प्रदेशों में भी चुनाव लड़ा था। उस वक़्त ओवैसी की इस पहल को भारतीय जनता पार्टी के इशारे पर कांग्रेस के वोट काटने का खेल कहा गया था।
वोटों में लगाई सेंध
एआईएमआइएम ने इसके बाद उन महानगरपालिका चुनावों में भी अपने प्रत्याशी उतारने शुरू किये जहाँ मुसलिम मतदाताओं की संख्या ठीक-ठाक है। जिसके बाद औरंगाबाद महानगरपालिका चुनाव में 25 सीटें जीतकर कांग्रेस-राकांपा की ज़मीन खिसका दी। औरंगाबाद महानगरपालिका की 113 सीटों में कांग्रेस को 10 और राकांपा को मात्र तीन सीटों से संतोष करना पड़ा, जबकि शिवसेना-बीजेपी गठबंधन 51 सीटें जीतकर सत्ता हासिल करने में कामयाब रहा।
जलगाँव में जहाँ कांग्रेस और राष्ट्रवादी कांग्रेस का खाता भी नहीं खुल सका वहीं एमआईएम के 3 प्रत्याशी जीतकर आये। सोलापुर में एमआईएम ने 102 में से 9 जगहों पर कब्ज़ा किया जबकि कांग्रेस को 14 व राष्ट्रवादी को 4 सीटें ही मिल सकीं। इसके अलावा मुंबई महानगरपालिका में एआईएमआईएम ने 59 उम्मीदवार खड़े किए थे और दो ने जीत हासिल की। विधानसभा चुनावों से एमआईएम का जो सिलसिला शुरू हुआ था वह महानगपालिकाओं तक पहुँच गया और फिर इसने मुसलिम इलाकों में कांग्रेस के वोट बैंक में बड़ी सेंध लगा दी।
उत्तर भारतीय और मुसलिम मतदाताओं में पैठ बनाने की कोशिश समाजवादी पार्टी ने भी की थी लेकिन जिस तरह एआईएमआईएम मतों में सेंध लगा रही है, वह सपा नहीं कर पायी थी।
ओवैसी या बीजेपी की बी टीम?
ओवैसी की इस सफलता को देख बहुजन नेता प्रकाश आंबेडकर ने उनके साथ गठबंधन किया। अब इस गठबंधन की परीक्षा आने वाले लोकसभा चुनाव में होगी। देखना यह होगा कि क्या वे कोई बड़ी सफलता हासिल कर पायेंगे या कांग्रेस-राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी के गठबंधन का खेल बिगाड़ने तक ही सीमित रह जायेंगे।