महाराष्ट्र की राजनीति में रविवार का दिन तब और बड़े बदलाव का संकेत दे गया जब महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना यानी मनसे के प्रमुख राज ठाकरे ने आधिकारिक तौर पर 13 साल बाद अपने चचेरे भाई और शिवसेना यूबीटी के अध्यक्ष उद्धव ठाकरे के घर 'मातोश्री' में प्रवेश किया। इससे पहले राज 2012 में तब आधिकारिक तौर पर मातोश्री गए थे जब बाला साहेब ठाकरे का निधन हुआ था। हालाँकि उन्होंने जनवरी 2019 में उद्धव और उनके परिवार को अपने बेटे अमित ठाकरे की शादी में आमंत्रित करने के लिए एक संक्षिप्त यात्रा की थी। बहरहाल, राज की यह मुलाकात उद्धव ठाकरे के 65वें जन्मदिन के अवसर पर हुई। राज ने उद्धव को लाल गुलाब का एक बड़ा गुलदस्ता भेंट किया और गर्मजोशी से गले मिलकर बधाई दी। 

मातोश्री ठाकरे परिवार और शिवसेना का प्रतीक रहा है। राज का वहाँ पहुँचना न केवल परिवारिक एकता का प्रतीक है, बल्कि बालासाहेब ठाकरे की विरासत को फिर से जीवंत करने का प्रयास भी है। मातोश्री में राज और उद्धव ठाकरे से मुलाक़ात न केवल एक पारिवारिक पुनर्मिलन है, बल्कि महाराष्ट्र की राजनीति में एक बड़े बदलाव का संकेत भी देता है। यह मुलाकात ठाकरे परिवार की एकता और मराठी अस्मिता की रक्षा के लिए एकजुटता को भी दिखाती है। 

ठाकरे परिवार में था तनाव

राज ठाकरे और उद्धव ठाकरे के बीच तनाव 2005 में तब शुरू हुआ था जब राज ने शिवसेना में उद्धव के बढ़ते प्रभाव से असंतुष्ट होकर पार्टी छोड़ दी थी। 2006 में मनसे की स्थापना के बाद दोनों भाइयों ने अलग-अलग राजनीतिक रास्ते चुने। मनसे ने मराठी अस्मिता और प्रवासियों के ख़िलाफ़ सख़्त रुख अपनाया, जबकि उद्धव की शिवसेना ने बीजेपी के साथ गठबंधन में अधिक समावेशी नज़रिया अपनाया। 2012 में बालासाहेब ठाकरे के निधन के बाद दोनों के बीच दूरी और बढ़ गई और शिवसेना का प्रतीकात्मक केंद्र मातोश्री राज के लिए लगभग वर्जित हो गया था।

हालांकि, हाल में मराठी अस्मिता और हिंदी थोपने जैसे मुद्दों ने दोनों को करीब लाया। 5 जुलाई 2025 की 'आवाज मराठाचा' रैली में दोनों ने एक मंच साझा किया, जिसमें महाराष्ट्र सरकार के हिंदी को तीसरी भाषा बनाने के प्रस्ताव को रद्द करने की जीत का जश्न मनाया गया। इस रैली ने दोनों के बीच सहयोग की नींव रखी और राज की मातोश्री यात्रा ने इसे और मज़बूत किया।

मुलाकात के राजनीतिक मायने

राज ठाकरे की मातोश्री में वापसी केवल एक पारिवारिक मुलाकात नहीं है; यह महाराष्ट्र की राजनीति में एक रणनीतिक कदम के रूप में देखा जा रहा है। महाराष्ट्र में स्थानीय निकाय चुनाव नजदीक है और बीजेपी-शिंदे गठबंधन का बढ़ता प्रभाव विपक्ष के लिए चुनौती बन रहा है। शिवसेना (यूबीटी) और मनसे का संभावित गठबंधन मराठी वोटों को एकजुट करने और बीजेपी, शिवसेना-शिंदे और राकांपा वाले महायुति गठबंधन को टक्कर देने की दिशा में एक अहम क़दम हो सकता है।

इस मुलाक़ात ने मराठी अस्मिता को फिर से केंद्र में ला दिया है। राज और उद्धव दोनों ने हाल के महीनों में मराठी संस्कृति और भाषा की रक्षा के लिए एकजुट होने का संदेश दिया है। 

'आवाज मराठाचा' रैली में उद्धव ने बयान दिया, 'हम एक साथ आए हैं और अब साथ रहेंगे।' राज ने टिप्पणी की कि फडणवीस ने उन्हें एकजुट किया। यह दिखाता है कि दोनों मराठी वोटरों को एक संदेश देना चाहते हैं।

गठबंधन की संभावनाएँ

महाराष्ट्र की राजनीति में ठाकरे बंधुओं का एकजुट होना बीजेपी-शिंदे गठबंधन के लिए ख़तरा बन सकता है। 2019 के विधानसभा चुनाव में मनसे ने 101 सीटों पर उम्मीदवार उतारे, लेकिन केवल एक सीट जीती। वहीं, शिवसेना यूबीटी इंडिया गठबंधन के साथ मिलकर 2024 के लोकसभा चुनाव में प्रभावी प्रदर्शन कर चुकी है। यदि मनसे और शिवसेना यूबीटी गठबंधन करते हैं तो यह मराठी मतदाताओं को एकजुट करने और बीजेपी के खिलाफ एक मजबूत मोर्चा बनाने में सक्षम हो सकता है।

हालाँकि, गठबंधन की राह आसान नहीं है। मनसे की मराठी को लेकर आक्रामकता और प्रवासी विरोधी रुख उद्धव की अधिक समावेशी छवि के साथ पूरी तरह मेल नहीं खाता है। इसके अलावा, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) जैसे इंडिया गठबंधन के अन्य सहयोगी मनसे के साथ गठबंधन पर सहमत हों, यह भी एक सवाल है। राज की बीजेपी के साथ पहले की निकटता और उनकी अप्रत्याशित राजनीतिक रणनीति भी गठबंधन की विश्वसनीयता पर सवाल उठा सकती है।

उद्धव-राज की राह आसान नहीं!

इस मुलाकात के बावजूद दोनों भाइयों के बीच पूरी तरह एकजुटता स्थापित करना आसान नहीं होगा। राज की मनसे का संगठनात्मक ढांचा अपेक्षाकृत कमजोर है, और उनकी पार्टी का प्रभाव मुख्य रूप से मुंबई, ठाणे और नासिक जैसे शहरी क्षेत्रों तक सीमित है। दूसरी ओर, उद्धव की शिवसेना यूबीटी ने ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में अपनी पकड़ बनाए रखी है। दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं के बीच पुरानी कटुता भी गठबंधन की राह में बाधा बन सकती है।

बीजेपी और शिंदे की शिवसेना ने मराठी अस्मिता के साथ-साथ हिंदुत्व के मुद्दे को भी प्रभावी ढंग से इस्तेमाल किया है। ठाकरे बंधुओं को इस गठबंधन के खिलाफ एक मजबूत वैकल्पिक नैरेटिव पेश करना होगा। 

चुनौतियाँ चाहे जो भी हों, लेकिन माना जा रहा है कि राज ठाकरे की मातोश्री में वापसी और उद्धव के साथ उनकी मुलाकात महाराष्ट्र की राजनीति में एक नया अध्याय शुरू कर सकती है।