जाने माने कवि और नारी संवेदना को अपने लेखन का विषय बनाने वाले पवन करण ने एक जोखिम भरा काम किया है। उन्होंने मुगलकाल की सौ स्त्रियों पर गहन शोध करने के बाद उनके दैहिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक शोषण को केंद्र में रखकर कविताएं लिखी हैं। उनके इस काव्य-संग्रह का शीर्षक है—स्त्री मुगल। जब भारत के इतिहास लेखन में मुगलकालीन इतिहास को क्रूर और सांप्रदायिक सिद्ध करने की आंधी चल रही हो और सिर्फ प्राचीन इतिहास को ही स्वर्ण युग की संज्ञा दी जा रही हो तब कोई भी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष कवि और आलोचक इस सवाल से परेशान हो जाता है कि इस संकलन को किस तरह से देखा जाए। हालांकि जब हम प्रेमचंद के इस कथन का स्मरण करते हैं कि—क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न की जाए, तो एक हद तक संशय दूर होने लगता है।
‘स्त्री मुगल’ बनाम इस्लामी नारीवाद
- साहित्य
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- 27 Jul, 2025
पवन करण की चर्चित पुस्तक ‘स्त्री मुगल’ नारीवाद, इस्लामी दृष्टिकोण और ऐतिहासिक कल्पनाशक्ति के बीच एक नया विमर्श रचती है। जानिए इस किताब की समीक्षा और इससे जुड़े विवादों की पड़ताल।

स्त्री मुगल पुस्तक समीक्षा
जब हम इस बात से परिचित होते हैं कि पवन करण ने प्राचीन भारतीय साहित्य से खोजकर दो खंडों में स्त्री शतक नामक ग्रंथ की रचना भी की है, जिसमें दो सौ स्त्रियों के परिचय, पीड़ा और प्रतिरोध का अद्यतन आख्यान है, तब यह संशय भी मिटने लगता है कि वे किसी पूर्वग्रह से ग्रस्त हैं। जैसा कि काव्य संकलन का स्वरूप होता है, उस लिहाज से कवि ने इस संग्रह की कोई भूमिका तो नहीं लिखी है लेकिन फ्लैप मैटर जिसे कवि का ही कथन कहा जा सकता है वह इन दो सौ वर्षों के नारीवादी इतिहास लेखन को कुछ इस प्रकार प्रकट करता हैः—
“दो सौ से अधिक वर्षों के मुगलकाल में मुगल स्त्रियों ने मुगल बादशाहों, शहज़ादों, सेनापतियों और सूबेदारों के साथ उत्तर और दक्षिण की कठिनतम यात्राएँ कीं। किलों के साथ-साथ उनकी जीवन यात्रा शिविरों में शहज़ादियों और शहज़ादों को जनते, उनके निकाह, विवाह होते देखते बीत गया। कोई मुगल बेगम अपनी छाप छोड़ने में सफल हो सकी तो कई बेगमें बादशाहों के हरम में खोकर रह गईं। कोई शहजादी अपने मन की कर सकी तो कोई शहजादी मात्र सत्ता के सूत्र छूने में कामयाब हो सकी। मगर किसी मुगल स्त्री को सुल्तान रजिया की तरह हिंदुस्तान की बादशाहत नहीं मिली। …मुगल स्त्रियों की बिजली सी कौंध से हमारा परिचय इस संग्रह की कविताओं में होता है। मुगल स्त्रियों की पीड़ा, रुदन, तड़प, बेचैनी और समझ जो मुगल इतिहास से एक हद तक गायब है।”
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।