जाने माने कवि और नारी संवेदना को अपने लेखन का विषय बनाने वाले पवन करण ने एक जोखिम भरा काम किया है। उन्होंने मुगलकाल की सौ स्त्रियों पर गहन शोध करने के बाद उनके दैहिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक शोषण को केंद्र में रखकर कविताएं लिखी हैं। उनके इस काव्य-संग्रह का शीर्षक है—स्त्री मुगल। जब भारत के इतिहास लेखन में मुगलकालीन इतिहास को क्रूर और सांप्रदायिक सिद्ध करने की आंधी चल रही हो और सिर्फ प्राचीन इतिहास को ही स्वर्ण युग की संज्ञा दी जा रही हो तब कोई भी लोकतांत्रिक और धर्मनिरपेक्ष कवि और आलोचक इस सवाल से परेशान हो जाता है कि इस संकलन को किस तरह से देखा जाए। हालांकि जब हम प्रेमचंद के इस कथन का स्मरण करते हैं कि—क्या बिगाड़ के डर से ईमान की बात न की जाए, तो एक हद तक संशय दूर होने लगता है।