हिंदी समाज में ऐसे लेखक और विचारक कम हैं जिनका सृजन और चिंतन सभ्यतामूलक है। नंदकिशोर आचार्य उन बिरले लोगों में से एक हैं। गांधीवाद और समाजवाद की चिंतनधारा से जुड़ा फिलहाल इस समय एक ही लेखक-विचारक है जिसे उनका सानी कहा जा सकता है और वह हैं सच्चिदानंद सिन्हा। लेकिन सच्चिदानंद सिन्हा का कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश लेखन मूलतः अंग्रेजी में है। हालाँकि अरविंद मोहन ने उनकी रचनावली संपादित करके उसे हिंदी में सुलभ करा दिया है। जबकि नंदकिशोर आचार्य का अधिकतम लेखन हिंदी में है और अंग्रेजी में अपवादस्वरूप है। जो कि यह साबित करने के लिए है कि वे चाहते तो अंग्रेजी में ही लिखते रहते। आचार्य जी एक और मायने में सच्चिदानंद जी से अलग हैं और वो यह कि वे सिर्फ राजनीतिक, सामाजिक और दार्शनिक लेखन ही नहीं करते बल्कि उनकी गति साहित्य में भी है। बल्कि वे अपनी कविताओं और नाटकों के माध्यम से उच्चकोटि के साहित्यकार भी हैं।
नंदकिशोर आचार्य के सृजन का समावलोकन
- साहित्य
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- 2 Feb, 2025

नंदकिशोर आचार्य पर केंद्रित पुस्तक ‘शाश्वत समकालीनः नंदकिशोर आचार्य के सृजन पर एकाग्र’ की समीक्षा। पढ़िए, अरुण कुमार त्रिपाठी की क़लम से....
उन्हीं के लेखन का एक संक्षिप्त परिचय देते हुए छत्तीसगढ़ के प्रतिष्ठित साहित्यकार प्रभात त्रिपाठी ने ‘शाश्वत समकालीनः नंदकिशोर आचार्य के सृजन पर एकाग्र’ शीर्षक से एक पुस्तक तैयार की है। हालाँकि 130 पृष्ठों की इस पुस्तक को लेकर यह दावा तो नहीं किया जा सकता है कि इसमें आचार्य जी के संपूर्ण लेखन का परिचय समा गया है, उसकी समीक्षा और मूल्यांकन की तो बात ही अलग है। लेकिन उनके साहित्यिक और राजनीतिक लेखन की प्रमुख प्रवृत्तियों की झलक इसमें मिल सकती है। नंदकिशोर आचार्य के लेखन के केंद्र में है स्वतंत्रता, समता और बंधुत्व की मूल्य त्रयी की रक्षा और उनका संवर्धन। वे अपनी कविता, नाटक, आलोचना और राजनीतिक, दार्शनिक विमर्शों का ताना-बाना इन्हीं मूल्यों के इर्दगिर्द बुनते हैं। शिल्प और शैली पर तो उन्हें महारत हासिल ही है।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।