हिंदी समाज में ऐसे लेखक और विचारक कम हैं जिनका सृजन और चिंतन सभ्यतामूलक है। नंदकिशोर आचार्य उन बिरले लोगों में से एक हैं। गांधीवाद और समाजवाद की चिंतनधारा से जुड़ा फिलहाल इस समय एक ही लेखक-विचारक है जिसे उनका सानी कहा जा सकता है और वह हैं सच्चिदानंद सिन्हा। लेकिन सच्चिदानंद सिन्हा का कुछ अपवादों को छोड़कर अधिकांश लेखन मूलतः अंग्रेजी में है। हालाँकि अरविंद मोहन ने उनकी रचनावली संपादित करके उसे हिंदी में सुलभ करा दिया है। जबकि नंदकिशोर आचार्य का अधिकतम लेखन हिंदी में है और अंग्रेजी में अपवादस्वरूप है। जो कि यह साबित करने के लिए है कि वे चाहते तो अंग्रेजी में ही लिखते रहते। आचार्य जी एक और मायने में सच्चिदानंद जी से अलग हैं और वो यह कि वे सिर्फ राजनीतिक, सामाजिक और दार्शनिक लेखन ही नहीं करते बल्कि उनकी गति साहित्य में भी है। बल्कि वे अपनी कविताओं और नाटकों के माध्यम से उच्चकोटि के साहित्यकार भी हैं।