अमिताभ बच्चन और गोविंदा दो ऐसे नाम हैं जिन्होंने राजनीति में उतर कर भारतीय राजनीति के दो कद्दावर नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर ही पूर्ण विराम लगा दिया।
नेता सबसे बड़ा अभिनेता होता है, लेकिन राजनीति में जहाँ आज मुद्दे और विचारधाराएँ गौण हो गयी हैं, ऐसे में अभिनेता तुरुप का इक्का साबित होने लगे हैं। सिने जगत से राजनीति में उतरने वालों की फ़ेहरिस्त काफ़ी लम्बी है।
अमिताभ बच्चन, सुनील दत्त, शत्रुघ्न सिन्हा, विनोद खन्ना, राजेश खन्ना, गोविंदा, हेमा मालिनी, धर्मेंद्र, जया प्रदा से लेकर उर्मिला मातोंडकर के बीच दर्जनों ऐसे अभिनेता-अभिनेत्री हैं जिन्होंने राजनीति में अपनी किस्मत आजमाई, कुछ को यह रास आयी तो कुछ इसे अलविदा कहकर वापस अपनी दुनिया में लौट गए। लेकिन अमिताभ बच्चन और गोविंदा दो ऐसे नाम हैं, जिन्होंने राजनीति में उतरकर दो कद्दावर नेताओं के राजनीतिक भविष्य पर ही पूर्ण विराम लगा दिया।
अमिताभ ने बहुगुणा की सियासी पारी का अंत किया तो फ़िल्मों से राजनीति में आये गोविंदा ने भी ऐसी ही कहानी कांग्रेस के टिकट पर साल 2004 के लोकसभा चुनावों में लिखी। इस बार कांग्रेस उर्मिला मातोंडकर के सहारे वही प्रयोग दोहराना चाहती है।
अमिताभ ने बोफ़ोर्स कांड के घेरे में आने के चलते राजनीति को अलविदा कह दिया तो गोविंदा ने भी पार्टी संगठन में अपनी उपेक्षा के आरोप लगाकर अगला चुनाव लड़ने से इनकार कर दिया।
गोविंदा के बाद संजय निरुपम 2009 के लोकसभा चुनाव में इस सीट से लड़े और जीते लेकिन पिछले चुनाव में इस सीट पर निरुपम क़रीब 4 लाख वोट से हार गए। इसके बाद उन्होंने यहाँ से लड़ने की हिम्मत ही नहीं जुटाई और इस बार पार्टी हाई कमान पर बहुत दबाव बनाकर अपनी सीट बदलवा ली है। लेकिन संजय निरुपम ने फिर वही अभिनेता वाला फ़ॉर्मूला इस सीट पर चलाने के लिए पार्टी में उर्मिला मातोंडकर को प्रवेश दिलाकर टिकट दिला दिया।
इस सीट से वर्तमान सांसद गोपाल शेट्टी पहली बार लोकसभा का चुनाव जीते हैं। इससे पहले वह बोरीवली विधानसभा से विधायक और भारतीय जनता पार्टी के मुंबई प्रदेश अध्यक्ष पद पर भी रहे हैं। लेकिन गत लोकसभा चुनाव में उन्हें मिली 4 लाख से ज़्यादा वोटों की जीत ने राम नाइक के दौर की याद ताज़ा कर दी थी।
कांग्रेस ने मराठी कार्ड खेला
इस लोकसभा क्षेत्र में मराठी मतदाताओं की संख्या क़रीब 28 फ़ीसदी है। वैसे इस सीट पर गुजराती मतदाताओं के साथ-साथ उत्तर भारतीय मतदाताओं का भी बाहुल्य है। पिछले चुनाव में गुजराती मतदाताओं ने मोदी लहर के चलते एकतरफ़ा वोट दिया था, इसलिए भी गोपाल शेट्टी को रिकार्ड मतों से जीत मिली थी।