समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में इस्मत चुग़ताई का नाम किसी तआरुफ का मोहताज़ नहीं। वह जितनी हिंदुस्तान में मशहूर हैं, उतनी ही पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी। उनके चाहने वाले यहाँ भी हैं और वहाँ भी। आज भी उर्दू और हिंदी दोनों ही ज़ुबानों में उनके पाए की कोई दूसरी कथाकार नहीं मिलतीं। इस्मत चुग़ताई ने उस दौर में स्त्री-पुरुष समानता और इन दोनों के बीच ग़ैर बराबरी पर बात की, जब इन सब बातों पर सोचना और लिखना भी मुश्किल था। अपने ही घर में मज़हब, मर्यादा, झूठी इज़्ज़त के नाम पर ग़ुलाम बना ली गई, औरत की आज़ादी पर उन्होंने सख्ती से कलम चलाई और उसके हक़ीक़ी हुकूक के हक और उसकी हिफाज़त में अपनी आवाज़ बुलंद की।