समूचे भारतीय उपमहाद्वीप में इस्मत चुग़ताई का नाम किसी तआरुफ का मोहताज़ नहीं। वह जितनी हिंदुस्तान में मशहूर हैं, उतनी ही पाकिस्तान और बांग्लादेश में भी। उनके चाहने वाले यहाँ भी हैं और वहाँ भी। आज भी उर्दू और हिंदी दोनों ही ज़ुबानों में उनके पाए की कोई दूसरी कथाकार नहीं मिलतीं। इस्मत चुग़ताई ने उस दौर में स्त्री-पुरुष समानता और इन दोनों के बीच ग़ैर बराबरी पर बात की, जब इन सब बातों पर सोचना और लिखना भी मुश्किल था। अपने ही घर में मज़हब, मर्यादा, झूठी इज़्ज़त के नाम पर ग़ुलाम बना ली गई, औरत की आज़ादी पर उन्होंने सख्ती से कलम चलाई और उसके हक़ीक़ी हुकूक के हक और उसकी हिफाज़त में अपनी आवाज़ बुलंद की।
इस्मत चुग़ताई: एक ‘बोल्ड’ औरत जिसने समलैंगिकता पर कहानी लिख दी!
- श्रद्धांजलि
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- 24 Oct, 2020

रूढ़िवादिता के ख़िलाफ़ आवाज़ उठाने और खुले विचारों के लिए प्रसिद्ध लेखिका इस्मत चुग़ताई ने उन मुद्दों को उठाया था, जिन्हें उस समय तक उर्दू साहित्य में 'टैबू' माना जाता था। उनकी मृत्यु 24 अक्टूबर 1991 को हो गई। उनके मृत्यु दिवस पर जानिए उनसे जुड़ी अहम बातें।
वह सचमुच में एक स्त्रीवादी लेखिका थीं। अपने समूचे साहित्य में उन्होंने निम्न मध्यवर्गीय मुसलिम तबक़े की औरतों की समस्याओं, उनके सुख-दुःख, उम्मीद-नाउम्मीद को बड़े ही बेबाकी से अपनी आवाज़ दी। भारतीय समाज में सदियों से दबी-कुचली और रूढ़ सामाजिक बंधनों से जकड़ी महिलाओं के दर्द को न सिर्फ़ उन्होंने संजीदगी से समझा, बल्कि उसे अपने साहित्य के माध्यम से लोगों के बीच ले गईं। उन्होंने उन मसलों पर भी कलम चलाई, जिन्हें दीगर साहित्यकार छूने से भी डरते और कतराते थे।