हमारे पास इस सवाल का क्या जवाब है कि देश में ही गाँधी के विचारों और आस्थाओं की ‘ज्ञात’ क्षेत्रों के द्वारा रोज़ाना खुलेआम हत्या क्यों हो रही है और दर्ज होने वाली शिकायतों पर क्या कार्रवाई की जा रही है? याद किया जा सकता है कि सात जून 1893 को महात्मा गाँधी को दक्षिण अफ़्रीका के एक रेलवे स्टेशन पर धक्के देकर प्लेटफ़ॉर्म पर फेंका गया था। गाँधी अभी भी प्लेटफ़ॉर्म पर ही हैं। देश बदल गए हैं।
क्या भारत में ऐसा सम्भव है या कभी हो सकेगा कि राष्ट्रपति भवन या प्रधानमंत्री आवास के आसपास या कहीं दूर से भी गुजरने वाली सड़क को करोड़ों प्रवासी मज़दूरों के जीवन के नाम पर कर दिया जाए?