प्रशांत भूषण प्रसंग का अभी पटाक्षेप नहीं हुआ है। यह एक ऐसे वैचारिक आंदोलन का बीजारोपण है, जिसके अंकुरण देश भर में फूटेंगे और तब भारतीय न्यायपालिका की चुनौतियाँ बढ़ जाएँगी। अगर अदालतें अपने सम्मान की रक्षा अवमानना के डंडे से करेंगी तो माफ़ कीजिए अब यह देश उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है।
जब इन पवित्र स्थानों से भ्रष्टाचार की बू आने लगे, न्यायाधीश नौकरी छोड़ने पर विवश हो जाएँ तो कहा जा सकता है कि व्यवस्था तंत्र में सड़ांध है।
प्रशांत भूषण अवमानना मामले में देखिए आशुतोष की बात।
इस तथ्य को तो कई पूर्व न्यायाधीश तक उजागर कर चुके हैं कि सेवानिवृत्ति से कुछ महीने पहले कई न्यायाधीशों के फ़ैसले अचानक चौंकाने वाले होते रहे हैं। इनके पीछे छिपी मंशा समझी जा सकती है। इसी प्रकार रिटायर होने के बाद कुछ न्यायाधीश जीवन की दूसरी पारी शुरू कर देते हैं, जिसका आधार उनकी पहली पारी में बन चुका होता है।
ज़ाहिर है कि यह कोई ईमानदार रवैया नहीं कहा जा सकता। एक तरफ़ हमारे नौजवान अधिक उमर के कारण नौकरी नहीं मिलने से कुंठित होते हैं, तो दूसरी ओर बड़ी बड़ी पेंशन लेते हुए इस तरह की दूसरी पारी खेलना बहुत पवित्र तो नहीं ही है। न्यायाधीश सेवानिवृत्ति के बाद अपने अनुभवों पर किताब लिखें, विधि संस्थानों में व्याख्यान दें, अछूते क़ानूनी विषयों पर शोध करें तो यह उनका सम्मान बढ़ाता है। भारत में वैधानिक विषयों पर रिसर्च की हालत वैसे ही बहुत दयनीय है। अफ़सोस कि किसी न्यायाधीश ने इस दिशा में रिटायर होने के बाद अच्छा काम नहीं किया।
प्रशांत भूषण प्रसंग का अभी पटाक्षेप नहीं हुआ है। यह एक ऐसे वैचारिक आंदोलन का बीजारोपण है, जिसके अंकुरण देश भर में फूटेंगे और तब भारतीय न्यायपालिका की चुनौतियाँ बढ़ जाएँगी। अगर अदालतें अपने सम्मान की रक्षा अवमानना के डंडे से करेंगी तो माफ़ कीजिए अब यह देश उसे स्वीकार करने के लिए तैयार नहीं है। अपने कर्मों से न्यायालयों को अपनी निष्पक्षता, निर्भीकता और दाँव पर लगी साख को पुनः स्थापित करना होगा। इसमें ज़रा भी चूक इस गरिमावान संस्थान को लोगों के दिलों से उतार सकती है। जजों को समझना होगा कि वे संविधान की शपथ लेकर कुर्सी पर बैठे हैं। वे राजनेताओं की दया पर निर्भर नहीं हैं। किसी भी न्यायाधीश को यह याद दिलाने की ज़रूरत नहीं है कि आदमी अपना मर जाना पसंद कर सकता है। अपने यश का मर जाना कभी पसंद नहीं करेगा। यश का मर जाना अपने मर जाने से भी अधिक ख़तरनाक़ है।