पंडित जवाहर लाल नेहरू और नरेंद्र मोदी के राजनीतिक क्षेत्र अवध और पूर्वांचल में एक कहावत चलती है—बैठों तेरी गोद में, उखाडूं तोर दाढ़ी। यह कहावत इंडिया टुडे और सी वोटर्स समूह के मूड ऑफ नेशन के उस सर्वे पर एकदम सटीक बैठती है जिसमें देश के 52 प्रतिशत लोगों ने नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री के रूप में पहली पसंद बताया है। उसके ठीक विपरीत देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू को पहली पसंद बताने वाले महज 5 प्रतिशत हैं। इन दोनों के बीच में 12-12 प्रतिशत की लोकप्रियता पर अटल बिहारी वाजपेयी और डॉ. मनमोहन सिंह हैं और इंदिरा गांधी महज 10 प्रतिशत लोगों की पहली पसंद हैं। नेहरू निंदा और मोदी प्रशंसा की यह नई तरकीब है और इसी में कॉरपोरेट मीडिया की कमाई और भलाई है। यह हाल के लोकसभा चुनाव में लगे सदमे से उबरने की एक कोशिश भी है। जाहिर सी बात है कि यह सर्वे अपने आकलन में बताता भी है कि आज अगर चुनाव हुए तो फिर मोदी प्रधानमंत्री बनेंगे और उनकी सीटें बढ़ेंगी।
पीएम नेहरू बनाम पीएम मोदी: ‘बैठों तेरी गोद में उखाड़ूं तोर दाढ़ी’
- विचार
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- 25 Aug, 2024

देश के पहले प्रधानमंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू और मौजूदा पीएम नरेंद्र मोदी के बीच क्या तुलना हो सकती है? आख़िर ऐसा सर्वे क्यों कराया जा रहा है?
पोस्ट ट्रुथ के दौर में इस तरह के सर्वेक्षण और विश्लेषण की एक खास तिर्यक दृष्टि और उद्देश्य है और उसे वे पूरा करते हैं। संभव है वे इस तरह से आने वाले विधानसभा चुनावों के लिए माहौल बना रहे हों या फिर गठबंधन की राजनीति के दौर में उन दलों को धमका रहे हों जिनके कंधों पर एनडीए की सरकार चल रही है और वे समय समय पर कंधा उचकाते रहते हैं या बदलते रहते हैं। इस प्रकार के सर्वे को देख और सुनकर कुछ नए और पुराने प्रसंग याद आते हैं। हाल में एक मंचीय कवि जो कि अपनी कमाई से करोड़पति बन गए हैं और अब उन्हें राजनीति के बजाय कविता ही रास आने लगी है उन्होंने डिजिटल मीडिया के माध्यम से अपनी लोकप्रियता तुलसीदास से भी ज्यादा सिद्ध करवा दी थी। इस तरह के तुलनात्मक अध्ययन या आलोचनात्मक चाटुकारिता का एक नमूना आज के साठ साल पहले उस समय प्रस्तुत हुआ था जब किसी आलोचक ने एक लेख लिखकर हरिवंश राय बच्चन को भी तुलसीदास से बड़ा कवि बताया था। इस पर हिंदी के एक युवा आलोचक ने टिप्पणी करते हुए लिखा----बांड़ी बिस्तुइया बाघे से नजारा मारे।। वह लेख पढ़ने के लिए बच्चन जी ने इलाहाबाद से विशेष तौर पर पत्रिका बंबई मंगवाई और पढ़कर तिलमिला उठे। यहां बच्चन जी वाला मुहावरा प्रयोग करना नहीं चाहता इसलिए गोद में बैठकर दाढ़ी उखाड़ने वाले मुहावरे का प्रयोग कर रहा हूं। क्योंकि नेहरू के बनाए देश में उन्हीं की ऐसी तैसी करने वाले लोगों के बारे में और क्या कहा जाए।
लेखक महात्मा गाँधी अंतरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में प्रोफ़ेसर रहे हैं। वरिष्ठ पत्रकार हैं।