दुष्यंत कुमार हिंदी साहित्य में बहुत बड़ा नाम हैं जिनकी मिसाल हर कोई देता है। दुष्यंत कुमार अपनी बेहद सरल हिंदी और बेहद आसानी से समझ आने वाली उर्दू में कविताएं लिखकर लोगों के दिलो-दिमाग पर एकदम से छा गए थे। उन्होंने देश के सामने सरल हिंदी भाषा में गजलों को पेश करके, देश के हिंदी साहित्य में एक नई बयार बहाई थी। पुण्यतिथि पर प्रस्तुत हैं उनकी कुछ बेहतरीन रचनाएं -
सत्ता के अन्याय के ख़िलाफ़ बाग़ी तेवरों की दबंग आवाज़ हैं दुष्यंत कुमार
- पाठकों के विचार
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- 31 Dec, 2019

दुष्यंत कुमार ने देश के सामने सरल हिंदी भाषा में गजलों को पेश करके, देश के हिंदी साहित्य में एक नई बयार बहाई थी।
"रहनुमाओं की अदाओं पर फ़िदा है दुनिया,
इस बहकती हुई दुनिया को संभालो यारों,
कैसे आकाश में सुराख़ हो नहीं सकता,
एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।"
महान कवि दुष्यंत कुमार का जन्म 27 सितंबर, 1931 को उत्तर प्रदेश के बिजनौर जनपद की तहसील नजीबाबाद के ग्राम राजपुर नवादा में हुआ था। हालांकि दुष्यंत कुमार की पुस्तकों में उनकी जन्मतिथि 1 सितंबर, 1933 लिखी है। उनके पिता का नाम भगवत सहाय त्यागी और माता का नाम रामकिशोरी देवी था। दुष्यंत कुमार ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी में बीए और एमए किया। कथाकार कमलेश्वर और मार्कण्डेय तथा कविमित्रों धर्मवीर भारती, विजयदेवनारायण शाही आदि के संपर्क में आकर दुष्यंत की साहित्यिक अभिरुचि को एक नया आयाम मिला था।
देश में लगे आपातकाल के समय उनका कविमन बेहद क्षुब्ध और आक्रोशित हो उठा जिसकी अभिव्यक्ति कुछ कालजयी ग़ज़लों के रूप में हुई, जो उनके ग़जल संग्रह 'साये में धूप' का हिस्सा बनीं। सरकारी सेवा में रहते हुए सरकार विरोधी काव्य रचना के कारण उन्हें समय-समय पर सरकार के कोपभाजन का भी शिकार बनना पड़ा था। अपनी ग़जलों से देश के मठाधीशों के सिंहासन को हिलाने वाले दुष्यंत की 30 दिसंबर, 1975 की रात्रि में हृदयाघात के चलते मृत्यु हो गयी। उनकी कुछ और प्रमुख रचनाओं पर नज़र डालते हैं -