अपने देश में लोग राजनीति और अर्थतंत्र से जुड़ी पुरानी बातों और ख़बरों को बड़ी जल्दी भूल जाते हैं। इसलिए, मैं 2013 की एक घटना से अपनी बात की शुरुआत करना चाहता हूँ। भारतीय जनता पार्टी 2014 में होने वाले लोकसभा चुनाव की तैयारी में जुटी थी। मीडिया का एक बड़ा हिस्सा उसकी मदद कर रहा था। यूपीए-2 की कांग्रेस की अगुवाई वाली डॉ. मनमोहन सिंह सरकार पर तमाम तरह के आरोप लग रहे थे। मीडिया में अक्सर ही घोटालों, घपलों और बड़े-बड़े भ्रष्टाचार की ख़बरें आ रही थीं। जहाँ कुछ बड़ा मामला नहीं था, उसे भी बहुत बड़ा बनाकर पेश किया जा रहा था। मनमोहन सरकार द्वारा नियुक्त कई बड़े उच्चाधिकारी, ख़ासतौर पर संवैधानिक पदों पर आसीन कुछ अधिकारी भी सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार पर मीडिया को ख़बरें दे रहे थे।

नरेंद्र मोदी के मौजूदा ‘राजनीतिक-उत्थान’ के पीछे सिर्फ संघ नहीं है, बड़े कॉरपोरेट घरानों की भी अहम भूमिका है। गुजरात के मुख्यमंत्री के रूप में वह दंगों के अलावा अपनी कॉरपोरेट-पक्षी नीति के लिए भी जाने गये। अंबानी से लेकर अडाणी, सभी मोदी के मुरीद रहे और आज भी हैं। सच पूछिए तो उनके राजनीतिक व्यक्तित्व का निर्माण संघी कट्टरता और कॉरपोरेट कांइयांपन के मिले-जुले रसायन से हुआ है।