क्या नाथूराम गोडसे और सावरकर परिवार अब गांधी हत्या पर नया नज़रिया रखते हैं? उर्मिलेश द्वारा दो दशक पहले लिए गए गोडसे-सावरकर परिवार के साक्षात्कार के इस अंश में जानिए परिवार इस कलंक के साथ कैसे जी रहा है।
क्या मोदी सरकार बचे-खुचे मीडिया को भी ख़त्म कर देगी? साफ़ छवि वाले पत्रकारों को धमकाकर वह क्या हासिल करना चाहती है? क्या वह आम चुनाव के मद्देनज़र ऐसा कर रही है? क्या ऐसा करके उसने इमर्जेंसी से भी बदतर हालात नहीं कर दिए हैं? मीडिया पर इस जानलेवा हमले से विश्व में भारतीय लोकतंत्र की क्या छवि बनेगी?
यूपी में क्या हो रहा है ? किसकी सरकार बन रही है, बस यही सवाल हर ओर गूंज रहा है ? उर्मिलेश जी का दावा है कि बीजेपी की ज़मीन खिसक रही है और वो पहले से कमजोर हुई है मोदी के बावजूद । आशुतोष ने उनसे विस्तार से बातचीत की
उत्तर प्रदेश में समाजवादी पार्टी के नेता अखिलेश यादव और बीएसपी की मायावती पर जातिवादी राजनीति के आरोप क्यों लग रहे हैं और ये आरोप लगाने वाले क्या अपने गिरेबान में झाँक रहे हैं?
रोहिण कुमार की किताब लाल चौक में कश्मीर के समकालीन इतिहास के साथ ही मौजूदा परिदृश्य की जटिलताओं और उलझावों को दर्शाया गया है। कैसी है यह किताब, जानिए पुस्तक समीक्षा में।
वरिष्ठ पत्रकार उर्मिलेश के संस्मरणों की किताब ‘ग़ाज़ीपुर में क्रिस्टोफर कॉडवेल’ की किताब आ चुकी है। नवारुण प्रकाशन ने इसका प्रकाशन किया है। पढ़िए, प्रसिद्ध आलोचक वीरेंद्र यादव से इसकी समीक्षा।
जम्मू-कश्मीर के प्रतिष्ठित पत्रकार और ‘राइजिंग कश्मीर’ के प्रधान संपादक शुजात बुखारी की हत्या को दो साल हो चुके हैं लेकिन अब तक उनके हत्यारों का पता नहीं चल सका है।
सन् 2020 में आई कोरोना महामारी के दौरान देश के करोड़ों मज़दूरों और उनके परिजनों की यंत्रणा, बेहाली और तकलीफ़ के बारे में जब कभी याद किया जायेगा, सत्ताधारियों की ‘हिन्दुत्व-वैचारिकी’ पर भी सवाल उठेंगे।
प्रधानमंत्री ने रात के ठीक नौ बजे अपने-अपने घरों की लाइट नौ मिनट बुझाने और बालकनी या घर के बाहर खड़े होकर दीया, मोमबत्ती या टॉर्च आदि जलाने की अपील की! जिनकी छत के साथ बालकनी नहीं होगी या जिनके पास छत ही नहीं होगी, वे क्या करेंगे?
क्या मोदी सरकार ने लॉकडाउन का एलान करने से पहले राज्य सरकारों से बातचीत तक नहीं की। अचानक हुए इस एलान से ग़रीब वर्ग पर मानो आफत ही टूट पड़ी है।
19 मार्च को जिस वक़्त प्रधानमंत्री मोदी कोविड-19 के गंभीर ख़तरे पर राष्ट्र को संबोधित कर रहे थे, अपने देश में कोरोना वायरस से संक्रमित कुल मामले 173 से ऊपर हो चुके थे। लेकिन इससे मरने वालों की संख्यी अभी तक सिर्फ़ 5 बताई गई है।
मोदी सरकार 28 सरकारी कंपनियों में अपनी हिस्सेदारी बेचने जा रही है। इनमें बीपीसीएल भी है। लेकिन एक बड़े लाभकारी उपक्रम को सरकार निजी हाथों में क्यों सौंप रही है?
चुनाव नतीजों के बाद अरविंद केजरीवाल और उनकी पार्टी की कई मुद्दों पर आलोचना की गई है। नफ़रत की राजनीति बीजेपी ने की तो हिंदुत्व के लिए केजरीवाल निशाने पर क्यों?
सीएए-एनपीआर-एनआरसी के विरोध में चल रहे आंदोलनों में शामिल लोगों को इसे व्यापक तो बनाना ही चाहिए, यह भी ध्यान रखना चाहिए कि यह अहिंसक और लोकतांत्रिक हो।
ऐसा लगता है कि मोदी और शाह की जोड़ी ने विकास से पूरी तरह मुंह मोड़ लिया है और देश को नागरिकता और एनपीआर-एनआरसी के सवाल में उलझा दिया है।
क्या कहेंगे, एस जयशंकर? वामपंथी तो जेएनयू में तब भी थे, जब वह वहाँ पढ़ते थे! उन दिनों भी वामपंथी आज की तरह ही आम छात्रों में लोकप्रिय और सक्रिय थे।
सरकार के इस काले क़ानून और क्रूर क़दमों के ख़िलाफ़ जो लोग आज आवाज़ उठा रहे हैं, वे किसी एक समुदाय, जाति या बिरादरी की आवाज़ नहीं है, वह पूरे राष्ट्र और हर आम भारतीय नागरिक की आवाज़ है!
इस बार 81 सीटों वाली झारखंड विधानसभा के चुनाव में मोदी-शाह ने झारखंड के लिए ‘65-पार’ का नारा दिया था। पर झारखंड की अवाम ने बीजेपी को महज 25 पर सीमित कर दिया।
नागरिकता क़ानून के समर्थन-विरोध को हिन्दी भाषी प्रदेशों में ‘हिन्दू-मुसलमान’ में तब्दील करने के सत्ताधारी एजेंडे को लेकर विपक्ष सतर्क नज़र क्यों नहीं आ रहा है?
नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर चल रही बहस अब देश के बंटवारे के लिए कौन जिम्मेदार है, तक पहुंच गई है।
हैदराबाद और उन्नाव जैसी घटनाओं के बाद तुरंता न्याय की माँग जिस तेज़ी से उठी, उससे यह सवाल उठता है कि क्या वाकई इससे इस तरह की वारदात रुक जाएगी?
अभी हाल में देश के प्रतिष्ठित पत्रकार नितिन सेठी ने ‘इलेक्टोरल बॉन्ड’ के शासकीय फ्रॉड का जिन ठोस तथ्यों के साथ पर्दाफ़ाश किया, क्या वह महा-घोटाला नहीं है?
जेएनयू साढ़े पांच सालों से केंद्र की सरकार और सत्ताधारी दल के निशाने पर है। लेकिन ऐसा क्यों है?
अयोध्या के मंदिर-मसजिद विवाद पर सुप्रीम कोर्ट के एकमत फ़ैसले का आधार क्या वाक़ई सिर्फ़ क़ानून है, इसमें आस्था, विश्वास, कथा या इतिहास, किसी भी अन्य पहलू की कोई भूमिका नहीं है?
क्यों चाहिए, एक नयी पार्लियामेंट बिल्डिंग, नया सचिवालय और राजपथ का नया परिदृश्य! सवाल है- क्या नए चमकीले भवनों के निर्माण से हमारी डेमोक्रेसी चमकेगी या लोकतांत्रिक संविधान के तहत काम करने से?
यदि भारतीय जनता पार्टी को सरकार बनाने के लिए गोपाल कांडा के समर्थन की ज़रूरत नहीं होती, तो क्या लोगों का ध्यान इस ओ गया होता? क्या इस तरह के कांड करने वाले अकेले व्यक्ति हैं गोपाल कांडा?