दिसम्बर के आख़िरी हफ्ते में किसी दिन फोन पर आवाज आईः ‘सर, मैं रोहिण कुमार हूं—लाल चौक नाम से कश्मीर पर एक किताब लिखी है। आपको भेजना चाहता हूँ। आपका डाक-पता चाहिए था।’ उस समय तक मेरी रोहिण से कभी बातचीत नहीं हुई थी। लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी इस किताब के बारे में मैं देख-सुन चुका था।

रोहिण कुमार की किताब लाल चौक में कश्मीर के समकालीन इतिहास के साथ ही मौजूदा परिदृश्य की जटिलताओं और उलझावों को दर्शाया गया है। कैसी है यह किताब, जानिए पुस्तक समीक्षा में।
कश्मीर मामलों पर लिखने-पढ़ने के चलते इस किताब में मेरी भी रूचि थी कि आख़िर एक युवा-पत्रकार ने अपनी किताब में क्या कुछ लिखा है! रोहिण ने अपना परिचय देते हुए बताया कि वह न्यूजलॉन्ड्री और कुछ अन्य वेबसाइटों के लिए काम कर चुका है। जिन मीडिया संस्थाओं का उसने नाम लिया, वे पत्रकारिता को गंभीरता से लेती हैं, इसलिए रोहिण के पत्रकार होने पर किसी तरह का संदेह नहीं किया जा सकता था। मैंने फ़ौरन उन्हें अपना पता भेजा। हालचाल भी लिया-कहां के रहने वाले हैं? उन्होंने बताया-‘बिहार के गया से हूँ।’