दिसम्बर के आख़िरी हफ्ते में किसी दिन फोन पर आवाज आईः ‘सर, मैं रोहिण कुमार हूं—लाल चौक नाम से कश्मीर पर एक किताब लिखी है। आपको भेजना चाहता हूँ। आपका डाक-पता चाहिए था।’ उस समय तक मेरी रोहिण से कभी बातचीत नहीं हुई थी। लेकिन सोशल मीडिया पर उनकी इस किताब के बारे में मैं देख-सुन चुका था।